25 जून 1983…. क्रिकेट इतिहास की सबसे महान और डॉमिनेटिंग टीम और एक उभरती हुई टीम के बीच क्रिकेट की सबसे बड़ी ट्रॉफी उठाने के लिए खेला गया एक मैच….. तीसरे क्रिकेट विश्वकप का फाइनल..
वेस्ट इंडीज़ इससे पहले के दोनों विश्वकप जीत चुकी थी… कप्तान क्लाइव लॉयड 1975 के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ विजयी शतक लगा चुके थे, वहीं 1979 में वन डे इतिहास के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी सर विवियन रिचर्ड्स ने कॉलिस किंग के साथ मिलकर इंग्लैंड के गेंदबाजी आक्रमण की खाल उधेड़ कर रख दी.
यह टीम 1983 में भी फेवरेट थी… हो भी क्यों न ओपनर गॉर्डन ग्रीनिज और डेस्मंड हेन्स जैसे, इनके बाद स्वयं सर विव, लैरी गोम्स और करिश्माई कप्तान क्लाइव लॉयड.. और माइकल होल्डिंग, एंडी रॉबर्ट्स, जोएल गार्नर और मैल्कम मार्शल की “Fearsome Foursome” …. कौन सोच सकता था इस टीम के सामने जीतने का.
वेस्ट इंडीज़ और भारत एक ही ग्रुप में थे, चार टीमें थीं ग्रुप में… विंडीज़, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जिम्बाब्वे… हर टीम को अन्य 3 टीमों से 2 मैच खेलने थे… ग्रुप स्टेज में हमने वेस्ट इंडीज़ और ऑस्ट्रेलिया को एक एक मैच हराया और उनसे एक एक मैच हारे…. इसके बाद कपिल देव की 175 रन की पारी आई… जो वर्ल्ड कप इतिहास की सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक है…. 6 में से 5 मैच जीतकर वेस्ट इंडीज़ टॉप पर रही और 6 में 4 जीतकर भारत दूसरे स्थान पर. सेमीफाइनल में भारत के सामने थी इंग्लैंड… संदीप पाटिल और यशपाल शर्मा की बदौलत भारत ने 214 रन का लक्ष्य बड़ी आसानी से प्राप्त कर लिया….
अब आया फाइनल…. भारतीय टीम के लिए विश्वकप का फाइनल खेलना ही बहुत बड़ी उपलब्धि थी, सामने स्पोर्ट्स इतिहास की सबसे डोमिनेटिंग टीमों में से एक….फुटबॉल में पेले की ब्राज़ील, बास्केटबॉल में माइकल जॉर्डन की शिकागो बुल्स का जो रुतबा था वही क्रिकेट में क्लाइव लॉयड की वेस्ट इंडीज़ का था…. यदि 25 जून को हम फाइनल हार भी जाते तो भी कोई न पूछता कि क्यों हार गए, कैसे हार गए क्योंकि सामने वेस्टइंडीज़ थी…
लॉर्ड्स का मैदान, तीस हजार दर्शक… वेस्टइंडीज़ ने टॉस जीता और भारत को बल्लेबाजी करने उतारा…. मात्र 2 रन के स्कोर पर माइकल होल्डिंग ने सुनील गावस्कर को चलता कर दिया.. श्रीकांत और मोहिंदर अमरनाथ ने पारी को संभाला. श्रीकांत ने 38 रन बनाए जो उस मैच में किसी खिलाड़ी का सबसे बड़ा स्कोर था… 54.4 ओवरों में 183 रन पर पारी सिमट गई … उसके बाद प्रश्न इतना ही बचा था कि वेस्ट इंडीज़ कितनी जल्दी इस स्कोर को चेज़ करके मैच खत्म कर देगी और विश्वकप की हैट्रिक लगाएगी….
बलविंदर सिंह संधू की गेंद अंदर आई और गॉर्डन ग्रीनिज के बैट को बीट करके सीधा ऑफ स्टंप के टॉप पर लगी.. थोड़ा उत्साह आया जो सामने से आते विव रिचर्ड्स को देखकर बड़ी जल्दी खत्म भी हो गया. विव रिचर्ड्स ने क्रीज़ पर आने के बाद पिच को बैट से थोड़ा ठोका और उसके बाद तय किया कि 183 में से 150 रन वे स्वयं बना देंगे… आते ही चौकों की झड़ी लगा दी, मदन लाल ने कप्तान कपिल देव से एक ओवर और देने को कहा…. कपिल देव ने मदनलाल की ओर देखा और कहा “कर ले”… उसी ओवर में मदन लाल की एक शॉर्ट पिच गेंद को दर्शक दीर्घा में पहुंचाने के प्रयास में गेंद विव रिचर्ड्स के बल्ले के टॉप एज पर लगी और बीच मैदान में उठ गई….. कपिल देव ने उल्टी दौड़ लगानी शुरू की… करीब 20 यार्ड की दौड़ के बाद जब उन्होंने गेंद को लपका तो उनके चेहरे पे एक मुस्कान थी, मानो कह रहे हों “बच गए” ….
अब धीरे धीरे उम्मीदें बढ़नी शुरू हुईं… एक के बाद एक लैरी गोम्स, क्लाइव लॉयड, डुजोन पवेलियन लौटने लगे…. किसी को विश्वास नहीं हो पा रहा था कि क्या हो रहा है, मैल्कम मार्शल के आउट होने के बाद स्कोर 124 पर 8 हो चुका था… 140 रन का स्कोर….. मोहिंदर अमरनाथ की गेंद माइकल होल्डिंग के पैड पर लगी….. स्टेडियम में मौजूद सारे दर्शक स्तब्ध थे, ये क्या हुआ… वेस्ट इंडीज़ 43 रनों से मैच हार गई थी…. 24 साल के कपिल देव के हाथ में विश्वकप था.. हमने क्लाइव लॉयड की वेस्ट इंडीज़ को विश्वकप फाइनल में पराजित कर दिया था…