6 दिसम्बर 1992, अयोध्या में बाबरी विध्वंस कई सदियों में हिंदुओं व हिन्दुत्व की सबसे बड़ी गौरवशाली स्मृति है। पर इस गौरवशाली घटना में हिन्दूओं की सहिष्णुता, संयम, अनुशासन और शांतिप्रियता की पराकाष्ठा परिलक्षित हुई उसको दुष्टों ने ऐसे ओझल कर दिया मानो शातिर चोर ने चोरी के सब सबूत मिटा दिए हों। मलेच्छ मुसलमान बामियान के बुद्ध को गिराके, देश के देशों का तलवार की नोंक पर धर्म परिवर्तन करके, मानवता का दारुण बलात्कार करके भी, पूरे विश्व में दयनीय हो गए। अफ्रीका महाद्वीप को ईसाइयों ने बाइबिल दिखाकर ऐसा हैवानियत का नंगा नाच दिखाया कि वह आज भी उससे उबर नहीं पाया और मृत्यु की गोद में करवटें बदलता है। फिर भी दोनों मलेच्छ शांति दूत रह गए पर वह दयनीय प्राणी हिन्दू दुश्मन का घाव देखकर भी जो भरने लगता है वह हिन्दू आतंकवादी हो गया, साम्प्रदायिक हो गया।
अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर को तोड़कर मलेच्छ बाबर और मीरबाकी ने मस्जिद बना डाली। जहाँ रामायण वेद पुराण का गान होता था वहाँ कुरान की अजान बजवा दी गई। तुलसीदास जी का हृदय छलनी हो गया और तभी उन्होंने राममंदिर के विध्वंस का प्रमाण भी लिख दिया। 1528 से 1949 तक हिन्दूओं ने अनेक अनेक प्रयास और बलिदान अयोध्या की पावन जन्मभूमि पाने के लिए किए। सफलता नहीं मिली पर आतताइयों को भी चैन से नहीं बैठने दिया।
तुलसी अष्टक, 1590, बाबर द्वारा अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर विध्वंस का तुलसीदास जी द्वारा प्रमाणन
(1) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।
जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया।
(2) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवित से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया।
(3) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।
हने पचारि पचारि जन जन तुलसी काल कराल ॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की। यह समय अत्यन्त भीषण था।
(4) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥
(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध अयोध्या में वर्णनातीत अनर्थ किये। (वर्णन न करने योग्य)।
(5) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी किन्ही हाय ॥
जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई। साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की। इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये।
(6) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।
तुलसी रोवत ह्रदय हति हति त्राहि त्राहि रघुराज ॥
मीरबकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदिर्ण ह्रदय तुलसी रोये।
(7) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनाई।
(8) रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।
तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥
श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।
बाबर की स्वीकारोक्ति
मंदिरों को तोड़कर उसपर मस्जिद बनाना यह इस्लामिक धार्मिक पद्धति है। इस्लाम एक राजनीतिक धर्म है। जिसकी कुरान में वर्णित काफिर, जिहाद, गाजी की संकल्पनाएं ही मंदिर विध्वंसों या इस्लाम विरुद्ध संस्कृति उच्छेदन का मूल हैं। बाबरनामा में स्वयं बाबर कहता है,
“इस्लाम की खिदमत में मैं मारा मारा फिरा, हिन्दू और गैर मजहबियों से सदा युद्ध में तत्पर रहा, शहीद होने को पूरी तरह तैयार था पर ख़ुदा का शुक्र है कि मैं ग़ाज़ी बन गया।”
इस्लाम ने ये अश्लील काम केवल भारत में नहीं किया बल्कि जैसे वेश्या कहीं भी जाए व्यभिचार नहीं छोड़ती वैसे ही इस्लाम ने यह दुष्कर्म संसार भर में किया। जब 12वीं सदी में मुसलमानों ने मुअर्स को पराजित कर स्पेन पे कब्जा किया तो सम्पूर्ण स्पेन के चर्च जमींदोज करके मस्जिदें निर्मित कीं और बलात सब स्पैनिशों को मुसलमान बनाया। परन्तु राष्ट्रगौरव के धनी स्पैनिशों ने 400 साल बाद पुनः जब स्वतंत्र हुए तो सब मस्जिदें ध्वस्त कर दीं और पुनः चर्च निर्माण किए और ईसाई बन गए। स्पेन पुर्तगाल पूर्ण इस्लामी हो गए थे किंतु देखो आज वहाँ मुसलमान गिनती के भी नहीं बचे।
हाय भारत! तूने कभी अपने उन मंदिरों को नहीं छीना जो लम्पट मलेच्छों द्वारा हवस का शिकार बना लिए गए। हाय भारत! अपने इष्ट आराध्यों महादेव की ज्ञानवापी, श्रीराम-श्रीकृष्ण की जन्मभूमि, और भी न जाने असंख्य मंदिर, जिनके ध्वस्त होने से उत्तर भारत तो प्राचीन मंदिर विहीन सा दिख पड़ता है, पर कभी झपट्टा मारकर वापस न ले लिया। पशु पक्षी भी उनके घर आदि छीनने पर यथाशक्ति युद्ध करते हैं, हम मनुष्य होकर भी अपना एक अपहृत मंदिर हासिल न कर सके।

स्पेन से लेकर रोम तक सर्वोच्च मृत्यु के लिए कहते हैं,
“To every man upon this earth
Death comes soon or later.
And how can a man die better
Than facing fearful odds,
For the ashes of his fathers,
And the temples of his gods”
और हम गीता के उपासक “हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग: जितो वा भोक्ष्यसे महीम्” को भूलकर अपने सारे अधिकार गंवाते रहे। सावरकर को भी कहना पड़ा, “हमारा देश गया, ध्वज गया, यश गया । अब जाने को बाकि क्या बचा है?”
लुट पिटकर सदियों एड़ी घिसके भी आज रामलला के मंदिर के लिए कोर्ट के सामने कटोरा लेकर भिक्षा की याचना कर रहे हैं। 1949 से 1986 तक तो हमारी लड़ाई कोर्ट के दरवाजे पर खड़ी रही। 6000 ध्वस्त मंदिरों के अधिकार से हम मात्र 3 मंदिरों के लिए गिड़गिड़ाने लगे। तब भी उन नीच मलेच्छों ने हमें औकात दिखाकर एक इंच जमीन कब्जे नहीं करने दी। हमने 1949 से ही शांतिपूर्ण समाधान की एक भी बात अमल में लाने से नहीं छोड़ी। पर इसके जवाब में हमें हमेशा भिखारी समझ के टरका दिया गया। इस सहिष्णुता को क्या कहूँ? क्या हमारी शक्ति कह दूं? फिर भी हिन्दुत्व उस पतिव्रता स्त्री की तरह बदनाम हो जिसे गांव की खाप ने डायन कहकर जला डाला।
1986 के बाद…
पर 1986 के बाद हिन्दूओं में पता नहीं कैसे महाभारत का सूत्रधार और रावण के अत्याचार से भूमण्डल का भार उतारने वाला भगवान जाग उठा और अपने इष्ट अपने प्राणप्रियतम भगवान रामचन्द्र का जन्मस्थान प्राप्त करने के लिए बेचैन हो गया। फिर भी इस शांति ने हमारा साथ नहीं छोड़ा। 1989 अक्टूबर में विहिप धर्मसंसद के आह्वान पर 5 लाख कारसेवक पहुंचे। हिन्दुत्व का ज्वार उठा। पर एक भी बाबर की औलाद को हमने हूर नहीं मिलने दी। दलित कामेश्वर चौपाल ने अयोध्या में मंदिर का शिलान्यास एकदम शांतिपूर्वक कर दिया।
अक्टूबर 1990 में फिर कारसेवा का आह्वान हुआ। अयोध्या के सब मार्ग बंद। रेलगाड़ी रद्द। अपने ही आराध्य की जन्मभूमि तक पुलिस के सात बैरियर। पर श्रीराम की औलादों ने वानर की तरह गुम्बद पर भगवा गाड़ दिया। नीच मुलायम की सरकार ने नरसंहार करा दिया। कोठारी बन्धु समेत कारसेवा स्थल लाशों से पट गया। पर एक हिन्दू ने पत्थर भी उठाया हो ये संसार के इतिहास में नहीं लिखा। रामधुन गाते गए, कीर्तन करते गए, हनुमान चालीसा गाते गए, पर एक कंकड़ एक नए नहीं उठाया और शहीद हो गए। उन गाय जैसे मासूम हिन्दूओं के लिए गौमांस भक्षकों ने जरा सहानुभूति के एक अक्षर इतिहास में नहीं कहे और नीच पशु रोहिंग्याओं के लिए इन नराधमों की माँएं सेक्स स्लेव बनने को तैयार बैठती हैं।
धर्मसंसद ने पुनः 92 दिसम्बर गीता जयंती पर कारसेवा बुलाई पर तब भी हिन्दू रामनामी कीर्तन करते रहे। 10 दिन तक डटे रहे। रोज पूरे दिन कीर्तन में मग्न रहते। 6 दिसम्बर को भी अयोध्या में बाबरी विध्वंस का किसी ने नहीं सोचा था। 5 -5 साल के राम के बच्चे धरना करते हुए गिरफ्तार हुए। पर श्रीराम ने कुछ नल नीलों को इस बार हिन्दू उत्कर्ष के नए रामसेतु निर्माण के लिए गुम्बद पर चढ़ा भेजा और धड़ धड़ाधड़ फिर तो दो तीन चार गिनती गिनते गिनते गुलामी का, अपमान का, बर्बरता का वो मातमी स्मारक मलबे समेत अदृश्य हो गया।

आगे का युद्ध..
यह चमत्कार हुआ था हिन्दूओं के पुरुषार्थ से, निडरता से, सर पर पत्थर गिरे तो गिरे हम तो गुम्बद पर चढ़ेंगे। न कि हाथ फैलाने से कि कोई कोर्ट आदेश दे तब ढांचा तुड़वाएँगे। कोर्ट के आदेश से मंदिर कभी नहीं बनेगा। कोर्ट आदेश दे भी देगा तो बाबर की औलादें क्या चुप बैठी रहेंगी। अयोध्या में मंदिर निर्माण तभी होगा जब कोई अशोक सिंहल, कोई साध्वी ऋतम्भरा, कोई आचार्य धर्मेंद्र, कोई आडवाणी, कोई बाल ठाकरे, और सबसे महत्वपूर्ण लाखों कारसेवकों के सब्र का बांध टूट जाएगा। हिन्दुत्व की क्रांति के बिना परिवर्तन सम्भव नहीं है। कोर्ट कोई समाधान नहीं दे सकती, न ही राम नाम बेचकर सत्ता पाने वाले मतलबी। इस संकल्प की ज्योति जलती रहे, “मंदिर भव्य बनेगा”, श्रीराम जल्द ही इस ज्योति को ज्वाला बनाएं….

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