1. परिश्रमी जनों को आहारग्रहणोपरान्त एक मुहूर्त (48 मिनट) पर्यन्त एवं बुद्धिजीवियों को दो मुहूर्त (एक घण्टा 36 मिनट) पर्यन्त पानी नहीं पीना चाहिए। इस अवधि में जल पीने से पाचक रस तनु (diluted) हो जाते हैं जिससे आहारपाचन भली-भाँति नहीं हो पाता।
2. स्नान के उपरान्त जल पिए बिना तत्काल आहार ग्रहण कर लेना चाहिए। उस समय जल पीना आँतों को दुर्बल और रोगी बनाता है। बुद्धिजीवियों का दिवस का प्रथम आहार फल होना चाहिए। परिश्रमी जनों के लिए यह बाध्यता नहीं है।
3. भीमसेनी एकादशी के उपवास में पानी नहीं पीना चाहिए।
इन तीनों निषेधों का रहस्य अन्त में बताएँगे।
पानी कब पीना चाहिए?
इसका उत्तर अति सहज है –
प्यास लगते ही!
प्रातःकाल जागते ही मूत्रविसर्जन करें और पुनः लेटकर 10 मिनट का अलार्म लगाएँ। अलार्म बजने पर “उकड़ूँ बैठकर” अत्यन्त शनैः शनैः पानी पिएँ। रातभर की लार को पेट और आँतों में पहुँचाना स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। उसे थूकने की मजहबी मूर्खता न करें। दिनभर पानी पीकर ही मूत्रविसर्जन करें न कि इसका विपरीत। अधिक तीव्र मूत्रवेग हो तो मूत्रविसर्जन करके 10 मिनट का अलार्म लगाएँ और अलार्म बजने पर पानी पिएँ। इस नियम का पालन न करने से मूत्राशय और प्रोस्टेट को हानि होती है।
जल कितना पीना चाहिए?
इसका उत्तर है –
पानी के स्पर्श व स्वाद को अनुभव करते हुए मात्रा का लोभ किए बिना तृप्ति पर्यन्त पानी पीना चाहिए।
जल कैसे पीना चाहिए?
सामान्यतः शनैः शनैः पानी पीना चाहिए ताकि लार पानी में मिलती जाए। इस प्रकार पिए गए जल की अल्प मात्रा भी तेजी से पिए गए पानी की अधिक मात्रा की अपेक्षा अधिक लाभप्रद होती है। वमन करने हेतु उकड़ूँ बैठकर किञ्चित् तेज गति से जल पिया जाता है किन्तु यह अपवाद है न कि समान्य नियम।
अब उपर्युक्त तीनों निषेधों का रहस्य उद्घाटित करते हैं।
इन तीनों निषेधों का निहितार्थ है कि तब सामान्य ढंग से जल पीने का निषेध है किन्तु मुख सूखने का अनुभव हो तो विशेष ढंग से जल पीने का विधान है। वह विधान है – आचमन।
आचमन हेतु अञ्जलि में जल लेकर किञ्चित् आगे को झुककर कलाई की ओर से मुख लगाते हुए अल्प जल सुड़क लेना चाहिए। अञ्जलि के शेष जल को गिरा देना चाहिए। एक बार में 3 से अधिक आचमन नहीं करने चाहिए। अन्तिम आचमन के उपरान्त करतल धो लेना चाहिए।
– श्री प्रचण्ड प्रद्योत
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