संसार भर में जगत पिता ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर पुष्कर में स्थित है। लोगों के अनुसार इस श्राप के कारण परमपिता ब्रह्मा की केवल एक जगह पूजा होती है वो है पुष्कर और हम मान भी लेते हैं। पर क्या सच में ब्रह्माजी की पूजा सिर्फ पुष्कर में होती है? क्या उसके अलावा उनका कहीं कोई मंदिर नहीं है ? —
जवाब है — नहीं!!!
पुष्कर के अलावा ब्रह्माजी की पूजा कई जगहों पर होती है और पहले विस्तृत होती थी लेकिन कुछ लोगों द्वारा ऐसा षडयंत्र रचा गया कि हम अपनी रचना करने वाले को ही कम नजर से देखने लगे। आइये आपको कुछ जगहों पर ले चलते हैं जहाँ परमपिता ब्रह्मा की पूजा होती है—
पुष्कर – पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को “तीर्थराज” कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को “पुष्करराज” कहा जाता है। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्माजी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियाँ हैं, तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति। एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं।

चेनाकेस्वा – कर्नाटक के सोमनाथपुरा में १२ वीं शताब्दी के चेनाकेस्वा मंदिर में ब्रह्मा की मूर्ति। यहाँ पे ब्रह्माजी का एक प्राचीन मंदिर है जो 12वी सदी का बताया जाता है इसके अलावा 8 मंदिर आसपास और भी है जिनमे शारदा व अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां है जिनकी पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है।
आसोतरा मन्दिर – आसोतरा एक गांव है जो राजस्थान राज्य के बाड़मेर ज़िले में स्थित है। ये बालोतरा शहर के नज़दीक है। आसोतरा बालोतरा से १० किमी ,पचपदरा से १७ किमी ,उमरेली से १७ किमी और मेली से १८ किमी की दूरी पर स्थित है तथा यह जोधपुर हवाई अड्डे से १०० किमी की दूरी पर है। यहाँ भी ब्रह्माजी का मन्दिर है। जिनका निर्माण ब्रह्मऋषि संत खेतारामजी महाराज ने करवाया था।(महावीर सिंह एवम मंगल सिंह जी)

कुंबाकोणाम मंदिर( तमिलनाडु) – इस मंदिर को अब वेदनारायणपेरुमाल के नाम से भी जाना जाता है ये भी एक प्राचीन मंदिर है जहाँ ब्रह्माजी के साथ विष्णु और पार्वती(देवी भगवती) की भी पूजा की जाती है।

छींच का ब्रह्मामंदिर( बांसवाड़ा) – ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार 26 अप्रैल 1537 ईस्वी गुरुवार के दिन महारावल द्वारा उसी वेदी पर प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। सभा मंडप के खंभों पर उत्कृष्ट कारीगरी की छाप दिखाई देती है। इनमें से एक स्तम्भ पर विक्रम संवत 1552 का एक शिलालेख हैं, जिस पर लिखा हैं कि कल्ला के पुत्र देवदत्त ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। मंदिर के बाहर चौक पर विक्रम संवत 1577 का एक लेख खुदा है, जिसमें जगमाल को महारावल लिखा है। ब्रह्मा मंदिर के गर्भगृह में मौजूद ब्रह्मामूर्ति तीसरी है।
ब्रह्मा मंदिर, छींच, बांसवाड़ा
बांदनवाड़ा (अजमेर) – बांदनवाड़ा/अजमेर कस्बे के रामदेव गौरा बाग के नजदीक खुदाई के दौरान ब्रह्माजी की प्राचीन मूर्ति निकली। जो संभवत 10 से 12 वीं शताब्दी की होना माना जा रहा है। इसके अलावा खुदाई में एक खम्बा भी मिला है, जो मंदिर का अवशेष बताया जा रहा है।इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन काल मे ब्रह्माजी की पूजा बड़े पैमाने पर की जाती थी
थाईलैंड का ब्रह्मा मंदिर – थाईलैंड में ब्रह्माजी की पूजा का विशेष महत्व है ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी की पूजा करने से जादू टोना और बुरी शक्तिओ से रक्षा होगी।
ब्रह्मा मंदिर, थाईलैंडसारंगपुर (भोपाल) – कालीसिंध नदी से रेत खोदते समय मजदूरों को रेत के साथ एक पत्थर की एक चतुर्भुज प्रतिमा मिली । आश्चर्य की बात यह है कि पुरातत्व विभाग की अति सुंदर एवं प्राचीन प्रतिमा को लोगों ने अपने गांव धीनका जिला शाजापुर ले जाकर एक वृक्ष के नीचे स्थापित भी कर दिया ।
बैंकाक का इरावन ब्रह्मा मंदिर – बैंकाक का इरावन ब्रह्मा मंदिर भी ब्रह्माजी की पूजा करने के लिए प्रसिद्ध है।
ब्रह्मा मंदिर, बैंकॉकजावा के प्रम्बनान तथा पना

इसके अलावा काशी घाट का ब्रह्माघाट का ब्रह्मा मंदिर और गुजरात में भी खेडब्रहमा कस्बे का अवशेष हो चले मंदिर खुद ब्रह्मा के पूजे जाने का बयान देते हैं। ऐसे बहुत से मंदिर और पुरातत्व सर्वेक्षण के अवशेषों से पता चलता है कि विश्व मे पुष्कर ही इकलौता ऐसा मंदिर नही है जहाँ ब्रह्मा जी की पूजा होती थी और है।
– अजेष्ठ त्रिपाठी, लेखक मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया निवासी हैं और हिन्दू धर्म, संस्कृति, इतिहास के गहन जानकार और शोधकर्ता हैं।