आज प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी चौथी बार केदारनाथ पहुंचे हैं, पर आश्चर्य की बात नहीं है कि धर्मद्रोही हिन्दुओं को ही इससे सबसे ज्यादा आपत्ति हो रही है, किसी को दस्त तो किसी को उलटी हो रही है। अपने धार्मिक स्थान पर अपने इष्ट देवता की पूजा करने जाने वाला भक्त भी स्वधर्मियों द्वारा दुत्कार और तिरस्कार का पात्र बनता है यह केवल जाहिल कौम में ही संभव है। दरअसल सालों से अपने नेताओं को मस्जिदों और चर्चों में देखने की आदत पड़ी हुई है, इसलिए कट्टर हिन्दू का आवरण ओढने पर भी मन्दिरों से घृणा की दबी हुई मानसिकता रक्तार्श की तरह उभरकर सामने आ जाती है। मोदी को ढोंगी कहने वाले अपने निजी जीवन में हिन्दू कर्मकांड और साधना की कितनी अहमियत समझते हैं, इसके लिए किसी बड़े परिक्षण की आवश्यकता नहीं है। मोदी की तपस्या को ढोंग और पाखंड कहने वाले नास्तिक और शास्त्र को कूड़ा समझने वाले हिंदुवादियों को मोदी का साधना बल सहन नहीं हो रहा है जैसे सूरज का तेज मच्छरों को सहन नहीं होता। मोदी का पूरा जीवन उनकी तपस्या की गवाही दे रहा है, इतना भारी राजयोग यूँ ही फलित नहीं हो गया है। केदारनाथ
अभी हाल ही में मोदी ने अक्षय कुमार को एक इंटरव्यू दिया था, हालाँकि हास्यास्पद बुद्धि वालों तो सुईं के छिद्र में भी योनी का दर्शन हो सकता है। इंटरव्यू में मोदी ने बताया था कि दिवाली के पांच दिन मैं निर्जन जंगल में गुफा आदि में चला जाता था और केवल पानी पीकर उपवास पर रहता था, केवल पानी पर। विशेष साधना के लिए दीपावली साल की सबसे बड़ी चार तांत्रिक रात्रियों में शामिल है, ये है, होली – दारुण रात्रि, दिवाली – काल रात्रि, शिवरात्रि – महा रात्रि, जन्माष्टमी – मोह रात्रि। दीपावली जैसे समय जब उत्तर भारत में हर कोई परिवार के साथ त्यौहार के आनंद लेना चाहता है, क्या उस समय कोई सामान्य या ढोंगी व्यक्ति साधना करने की सोच सकता है? साधन कोई जंगली घास नहीं है, वर्षों की खादपानी से परिपक्व होने वाला पुष्प है।
आपने देखा होगा मोदी ने प्रयागराज में स्नान के समय काले वस्त्र व रुद्राक्ष माला पहनी थी, जिसका लोगों ने काफी निंदा की थी। जो मोदी त्रिपुरा, अरुणाचल से लेकर देश की सभी संस्कृतियों के वस्त्र पहनने से नहीं हिचकते क्या उन्हें काले कपड़ों पर उत्तर भारत की मान्यता का ज्ञान नहीं होगा? पर मोदी का ऐसा कोई भी कदम बिना सोचे समझे नहीं होता| मोदी ने उस दिन काले कपड़े में स्नान का राज ये है कि मोदी शैव है, इसलिए ज्यादातर शिवमंदिरों में जाते दिखते हैं। उत्तर भारत में तो कम प्रचलित है पर दक्षिण के अनेक मन्दिरों में साधनाकाल में काले कपड़े अनिवार्य होते हैं, जिसमें सबरीमाला मन्दिर भी शामिल है। रामेश्वरम समेत अनेक शिवालयों में दक्षिण में साधक काले कपड़े पहनकर जाते हैं, और मोदी की महादेव भक्ति किसी से छुपी नहीं है, हालाँकि मानने वालों ने तो इस कारण महादेव को ही दुश्मन मान लिया! केदारनाथ
उसी इंटरव्यू में मोदी ने बताया था कि वह केवल जो साढ़े तीन घण्टे सोते हैं उसका राज 20 साल की साधनाकाल में छुपा है। कहा 20-22 साल जो मैं किया उस समय से आदत पड़ी। योगसूत्र में निद्रा को मल बताया गया है। साढ़े तीन घण्टे सोना केवल योगी कर सकते हैं, है कोई साधनहीन व्यक्ति जो केवल साढ़े तीन घंटे में नींद पूरी कर सकता हो? जिसके चित्त में तमस ज्यादा होता है उसे नींद ज्यादा आती है, और योग साधना से चित्तशुद्धि होती है, जिससे निद्रा घटती है। जैसे अर्जुन को गुडाकेश कहा जाता है क्योंकि उन्होंने निद्रा को जीत लिया था| मोदी के नवरात्रि व्रत के बारे में सब जानते ही हैं। अक्षय कुमार पूछा जुखाम हो जाता है तो क्या करते हो, तो मोदी बोले केवल गर्म पानी पीकर उपवास करता हूँ। पर पिज्जा देखकर दांत चियारने वाले मोदी को धर्म का पाठ पढ़ा रहे हैं। केदारनाथ
मोदी का राममन्दिर जाना न जाना भी मोदी का निजी विषय है, वहां जाने से ही कुछ नहीं हो जाएगा। प्रधानमन्त्री मोदी पूरी तरह अटल बिहारी जी के मार्ग पर चल रहे हैं जो कि स्वयं 2003 में पहली बार महंत रामचन्द्रदास जी के निधन में अयोध्या गए थे व तब भी श्रीरामजन्मभूमि नहीं। पूरी जन्मभूमि आंदोलन में दो दशक तक एक बार भी अटलजी अयोध्या नहीं गए थे। तो क्या इस कारण अटलजी रामद्रोही हो गए? गठ्बन्धन सरकार में तो मजबूरी समझ सकते हैं पर उससे पहले 15 साल अयोध्या नहीं गए तब क्या वे रामद्रोही कालनेमि थे? श्रीरामजन्मभूमि पर शीघ्र मन्दिर निर्माण होना चाहिए पर हिंदुत्व की कीमत पर नहीं, जिस पर मैं विस्तृत पोस्ट लिख चूका हूँ, जन्मभूमि किसी मोदी की मोहताज नहीं है, वह तो उस ज्वार से उठेगी जब गिलहरी भी अपनी पूंछ से गारा घोलने लगे।
आज शायद सदियों बाद कोई शासक देश के लिए साधना कर रहा है, 70 की उम्र में बिना थके, बिना रुके, लगातार प्रचार करते हुए, सीधे केदारनाथ पहुंचा है, तो कुछ लोगों को फोटो से दिक्कत हो रही है। सवा सौ करोड़ का प्रतिनिधि व्यक्तिगत जीवन नहीं जी सकता। शुरुआती फोटो लेने से मोदी ढोंगी हो गया, और फोटो नहीं दिखाता तो रामायण काल के धोबी की बुद्धि वाले हिन्दू छाती पीटकर प्रमाण प्रमाण का मुहर्रम मनाते| राजा का जीवन राजा का नहीं होता, चन्द्रगुप्त का दुःख उचित ही था। जिस देश का जनमानस इतना गया बीता है कि केदारनाथ के दर्शन करने पर दारू गुड़कता हुआ प्रधानमन्त्री को गालियों से तोल दे, फिर उसे नियति उसकी औकात से बेहतर विकल्प ही दे रही है। केदारनाथ
करोड़ों करोड़ गालियाँ खाकर, षड्यंत्रों, आरोपों को झेलकर, एक निराशा के गर्त में जा रहे सवा सौ करोड़ लोगों के देश में उत्साह की अपूर्व उमंग फूंककर, करोड़ों हिन्दुओं को हीनभावना से निकालकर यदि मोदी ने पूर्ण बहुमत और अपरिमित यश पाया है तो उसके पीछे बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद जरुर है, क्योंकि जिसको शिव तारे, उसको फिर कौन मारे, और महाकाल का यही आशीर्वाद विरोधियों और मोदी के तथाकथित अपनों के लिए जीवन मृत्यु की कसौटी बन पड़ी है।
हर हर महादेव
जय श्री राम