भारत में सहकारी बैंकों का प्रारम्भिक उद्देश्य ग्रामीण एवं दूर-दराज़ के क्षेत्रों तथा आर्थिक रूप से कमजोर शहरी जनता को छोटे ऋण उपलब्ध कराना एवं सूदखोरों तथा बिचौलिये से मुक्त रखना रहा है। सहकारी बैंकों की इस भिन्न प्रकृति के कारण उनका नियमन वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न होता था। लोगों का प्रायः यह विश्वास रहता है कि बैंक में उनका पैसा सुरक्षित है। और वाणिज्यिक बैंकों पर आए संकटों में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों से यह विश्वास और भी दृढ़ हुआ है। इसका हालिया उदाहरण येस बैंक संकट का है जिसमें आरबीआई के हस्तक्षेप द्वारा जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा हो सकी। बैंक घोटाला बैंक घोटाला
वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न नियमों द्वारा संचालित होने और वित्तीय संकट की अवस्था में भी आरबीआई के नियमन से मुक्त होने के बावजूद भी सहकारी सोसाइटी अपने नाम के साथ ‘बैंक’ शब्द का प्रयोग करते हैं और बैंकिंग के कार्य करते हैं, चूंकि उनमें अपना पैसा जमा करने वाले अधिकांश लोग आर्थिक रूप से कमजोर तबके से आते हैं, उनमें यह विश्वास रहता है कि उनका पैसा वाणिज्यिक बैंकों की भाँति ही सुरक्षित है।
परंतु हाल ही में हुये पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाला से यह विश्वास डगमगा गया। चूंकि सहकारी बैंकों का नियमन भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र में नहीं था अतः उस प्रकार के शीघ्रगामी कदम नहीं उठाए जा सके जैसे कि येस बैंक के संकट के दौरान उठाए गए। 2019 में 277 शहरी सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति बहुत खराब थी, 105 शहरी सहकारी बैंक न्यूनतम अवश्यक नियामक पूंजी उपलब्ध रखने में भी असमर्थ थे, 47 शहरी सहकारी बैंकों की नेट वर्थ नकारात्मक थी और 328 शहरी सहकारी बैंकों का सकल एनपीए 15% से अधिक था। मार्च 2020 में यह सकल एनपीए मार्च 2019 के 7.2% से बढ़कर 10% हो गया। इस प्रकार की घटनाओं से यह महसूस किया गया कि सहकारी बैंकों के जमाकर्ताओं के हित का संरक्षण अति आवश्यक है। तात्कालिक निर्णय के रूप में 26 जून 2020 को सरकार ने बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को लागू किया था जिसे संसद के इस सत्र में कानून का रूप दे दिया गया।
इस नए कानून के अंतर्गत:
सहकारी बैंकों पर बैंकिंग कंपनियों (वाणिज्यिक बैंकों) पर लागू प्रावधानों का विस्तार किया गया , ताकि आरबीआई के मध्यम से सहकारी बैंकों का बेहतर प्रशासन और स्थायी बैंकिंग का नियमन किया जा सके और जमाकर्ताओं का हित सुरक्षित हो।
आरबीआई को यह अधिकार दिया गया है कि वह जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा, बैंकिंग कंपनी के उचित प्रबंधन की दृष्टि से बिना ऋण-स्थगन (moratorium) का आदेश किए, समामेलन और पुनर्निर्माण (reconstruction/ amalgamation) जैसे कदम उठा सके ताकि किसी प्रकार की वित्तीय अस्थिरता न उत्पन्न हो।
केंद्रीय बैंक को अब इन सहकारी बैंकों को अपने शासन में सुधार करने और भविष्य के संकट को रोकने के लिए किसी भी वित्तीय कमजोरियों की समय पर पहचान करने के उद्देश्य से ऑडिटर्स की नियुक्ति को मंजूरी देने और ऑडिटर को हटाने की सिफारिश करने का अधिकार होगा।
जमाकर्ताओं के हित को संरक्षित करने हेतु आरबीआई के पास सहकारी बैंकों के बोर्ड का अधिक्रमण करने का अधिकार होगा। ऐसा नियम पहले केवल वाणिज्यिक बैंकों पर लागू था।
इस विधेयक में इस बात का भी प्रावधान किया गया है कि प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, राज्य सहकारी समितियों की स्वायत्तता बनी रहे और वे पूर्व की भाँति कार्य करती रहें। साथ ही साथ विधेयक इस बात का भी उल्लेख करता है कि सहकारी बैंक के बोर्ड का अधिक्रमण करने से पूर्व आरबीआई संबन्धित राज्य सरकार से परामर्श करेगा।
इस विधेयक के लागू होने के बाद सहकारी बैंकों के किसी भी वित्तीय संकट में आरबीआई के हस्तक्षेप द्वारा जमाकर्ताओं का हित सुनिश्चित किया जा सकेगा जिस प्रकार वाणिज्यिक बैंकों के विषय में किया जाता रहा है। अब पीएमसी बैंक जैसा बैंक घोटाला भविष्य में नहीं हो सकेगा।