मुसलमानों की स्वाभाविक प्रवृत्ति व तद्जनित आसन्न राष्ट्रीय संकट के बारे में श्रीगुरुजी की स्पष्ट धारणा उनकी पुस्तक “विचार नवनीत” (Bunch of Thoughts) से मिलती है, श्रीगुरुजी कहते हैं,
“विभाजन के बाद यह कहने वाले अनेकों लोग मौजूद हैं कि अब मुसलमान समस्या बिल्कुल नहीं रही। पाकिस्तान को प्रश्रय देने वाले वे सब दंगाई तत्व सदा के लिए चले गये है। शेष मुसलमान हमारे देश के भक्त हैं। अब उनके लिए जाने को कहीं कोई स्थान नहीं है और वे निष्ठावान बने रहने के लिये बाध्य हैं।
किन्तु तथ्य क्या है?
क्या सत्य है कि सभी पाकिस्तान-समर्थक तत्व पाकिस्तान चले गये? प्रत्यक्ष में वह हिन्दू बहुल प्रान्त उत्तर-प्रदेश के ही मुसलमान थे जो आरम्भ से ही पाकिस्तान के लिए किए गए आन्दोलन के प्रमुख रहे और विभाजन के पश्चात भी वे सभी यही बने रह गए हैं। वास्तव में पंजाब, बंगाल, सिन्ध तथा उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्तों के मुसलमान जो पाकिस्तान में चले गये, 1937 के निर्वाचन में मुस्लिम लीग को बिलकुल अमान्य कर चुके थे। बाद के वर्षों में हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व की गलत नीतियों के कारण वे मुसलमान पुनः मुस्लिम लीग की गोद में ढकेल दिए गए।
और फिर, विभाजन के पूर्व, कान्स्टीटुएण्ट एसेम्बली की स्थापना के लिए निर्वाचन हुए। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण को अपने चुनाव का आधार बनाकर वे निर्वाचन लड़े। कांग्रेस ने भी सम्पुर्ण देश में अपने मुसलमान प्रत्याशी खड़े किए किन्तु ऐसे प्रत्येक स्थान पर मुसलमानों ने मुस्लिम लीग के प्रत्याशियों को ही वोट दिये और कांग्रेस के मुसलमान प्रत्याशी बुरी तरह परास्त हुए। उत्तर-पश्चिमी सीमा-प्रान्त एक अपवाद था। इसका अर्थ यही है कि, जो करोड़ों मुसलमान यहाँ अब रह रहे है, उन सभी ने पाकिस्तान के लिए वोट दिया था।
क्या विभाजन के बाद भी जो यहाँ रह गये उन्होंने अपने में परिवर्तन किया है? क्या अब भी उनका वही पुराना विरोध और खूनी भाव जिसका परिणाम. 1946-47 में व्यापक दंगे, लूट, अग्निकाण्ड, बलात्कार तथा अत्यन्त बड़े परिणाम में और भी इसी प्रकार के उन्मादपूर्ण कार्यों में हुआ था, समाप्त हो गया है? विभाजन के पश्चात् क्या एक रात में ही वे परिवर्तित होकर देशभक्त हो गये हैं? इस प्रकार के विश्वास के धोखे में रहना आत्मघाती होगा।
इसके विपरीत पाकिस्तान के निर्माण से यह मुस्लिम विभीषिका सैकड़ों गुनी बढ़ गई है जिसका निर्माण ही हमारे देश पर भावी आक्रमण की योजनाओं के आधार रूप में हुआ है। बारह सौ वर्ष पूर्व से जब मुसलमानों ने यहां पैर रखा है, उनकी यही आकांक्षा रही है कि इस सम्पूर्ण देश को धर्मान्तरण करके गुलाम बनाया जाय। किन्तु शताब्दियों तक राज्याधिकार उनके हाथ में रहते हुए भी उनकी यह आकाक्षां फलवती नहीं हुई, क्योंकि राष्ट्र की विजयिष्णु भावना समय-समय पर महान पराक्रमी पुरूषों के रूप में जागृत होती रही जो यहां उनके साम्राज्य की मृत्यु का कारण बनी।
विश्व के प्रख्यात इतिहासज्ञ प्रो० अर्नाल्ड टायनबी ने विभाजन के शुद्ध ऐतिहासिक यथार्थ चित्र को प्रस्तुत करने वाला एक निबन्ध लिखा। जिसमें उन्होंने असंदिग्ध रूप से कहा है कि पाकिस्तान का निर्माण इस बीसवीं शताब्दी में मुसलमानों का इस देश को पूर्णतया अधीन करने के 1200 वर्ष पुराने स्वप्न को साकार करने की दिशा में प्रथम सफल पग है।
हमारे देश के सामाजिक महत्व के भागों में अपनी जनसंख्या वृद्धि करना उनके आक्रमण का दूसरा मोर्चा है। कश्मीर के पश्चात उनका दूसरा लक्ष्य आसाम है। योजनाबद्ध रीति से आसाम, त्रिपुरा और शेष बंगाल में बहुत दिनों से उनकी संख्या की बाढ़ आ रही है। हमारी अपनी सरकार द्वारा मुसलमानों को हर जगह उनकी विघटनात्मक और विध्वसंक क्रियाओं में प्रोत्साहन मिलता है। इस कार्य में हमारे नेता तथा राजनीतिक दल भी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं।
वास्तव में सम्पूर्ण देश में जहाँ भी एक मस्जिद या मुसलमानी मुहल्ला है, मुसलमान समझते है कि वह उनका अपना स्वतंत्र प्रदेश है। यदि वहाँ हिन्दुओं को कोई जुलूस गाते-बजाते जाता है तो वे यह कहते क्रोधित होते हैं कि उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस लगती है। यदि उनकी धार्मिक भावनाएं इतनी नाजुक हो गई है कि मधुर संगीत से भी क्षुब्ध हो जाती है तो वे अपनी मस्जिदों को जंगलों में स्थानान्तरित करके वहाँ चुपचाप आराधना क्यों नहीं करते।
अधिक विलम्ब होने के पूर्व ही इस ईप्सित धारणा के लम्बे और आत्मघाती सम्मोहन को हमें तुरन्त रोक देना चाहिए और राष्ट्र की सुरक्षा एवं समग्रता के हितों को सर्वोच्च स्थान देते हुए स्थिति की कठोर वास्तविकताओं को दृढ़तापूर्वक ग्रहण करना चाहिए।”
– विचार नवनीत, श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (श्रीगुरुजी)
यह भी पढ़ें,
खतरनाक ईसाई चरित्र पर श्रीगुरुजी गोलवलकर के विचार
कम्युनिज्म (वामपंथ) के खोखलेपन पर श्री गुरुजी गोलवलकर के विचार
जिन्होंने संघ को देशव्यापी बनाया : पूर्व सरसंघचालक बालासाहब देवरस
Basis of Hindu Muslim Unity According to Veer Savarkar