जाति और हिन्दू संगठन पर दोनों वाक्यों को ध्यान से पढिये और अंतर समझिए।
1. “जब तक हिन्दू में जातिभाव समाप्त नहीं होता, हिन्दू संगठन और हिन्दू जागरण असम्भव है।”
– वीर सावरकर
2. “यदि हिन्दू जागृत हो गया तो वह स्वतः संगठित हो जाएगा और जातिभेद की चुनौती को बहुत अच्छे से प्रत्युत्तर दे देगा!”
– गुरु गोलवलकर
वीर सावरकर ने हिन्दू संगठन व हिन्दू अभ्युत्थान के लिए जातिभेद समाप्त होने की शर्त रख दी, यदि उसका इंतजार करते तो हम कभी के निराश होकर बैठ जाते। ऐसे ही सूक्ष्म वैचारिक अंतर के कारण संघ कभी भी हिन्दू महासभा के पीछे नहीं चला।
पूज्य श्री वीर सावरकर निश्चय ही बहुत बड़े क्रांतिकारी थे लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वैचारिक अधिष्ठान उन पर आश्रित नहीं है। पूज्य श्रीगुरुजी गोलवलकर, एक बहुत उच्च कोटि के ऋषि थे। वे गत शताब्दी के सबसे बड़े चिंतक थे। हम दूसरे वाक्य की क्रियान्विति के युग में जी रहे हैं। यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विश्वास है जिस पर हम चलते हुए यहाँ तक पहुंचे हैं। संघ ने राजनीति की गरज रखे बिना निरन्तर हिन्दू जागरण का कार्य किया और आज स्थिति यह है कि उसका जरा सा अंश ही जागृत हुआ है किंतु बड़ी बड़ी चुनौतियों को मात दे रहा है।
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