बात 1999 की है मुझसे बड़े भईया को खुनी पाईल्स हुए। और हर स्तर का इलाज कराते हुए इस पाइल्स ने Hemorrhoids(गुदचीर) का रूप ले लिया। इसमें गुदा छिल जाती है। कल्पना जी जा सकती है ये कितनी कष्ट कर बीमारी है। दिल्ली के यूनानी तिब्बिया कॉलेज में गुदा सम्बन्धी तमाम बीमारियों का सॉलिड इलाज होता है। लेकिन वहां भी इलाज फायदा नहीं कर पाया। 8 महीने का कष्ट झेल हर पैथी को आजमा कर भईया ऑपरेशन कराने की तैयारी कर ही रहे थे कि यूँ ही एक मिलने वाले ने एक इलाज बताया।

इलाज बड़ा अजीब सा लगा। श्मशान से अस्थियों के फूल लाकर उनको पीसकर, कपड़े में छानकर, असली घी में मिलाकर, उसका लड्डू सा बनाकर, लंगोट की सहायता से गुदा द्वार पर बाँध कर रखना था। हम परिजन पहले तो इस इलाज को तैयार नहीं हुए। आखिर हमारे यहाँ उठावनी में जाने पर भी घर के दरवाजे पर ही कपड़े उतार कर प्रवेश कर स्नान करना होता है। या भयंकर जाड़े में कम से कम गंगा जल के छींटे तो मारने ही मारने होते थे। वहाँ शंशान से दूसरे के अस्थि फूल से तमाम भूत प्रेत भटकती आत्माओं के प्रकोप या यूँ ही आफत लगने की आशंका प्रगट होना स्वाभाविक ही था। पर हमारे एक मित्र ने अस्थी फूल ला हमारे ही यहां पीस छानकर जब दे दिया तो उस मित्र के इस स्नेह को हम लोग इग्नोर नहीं कर पाये। और वो अस्थि और घी का लड्डू भैया ने बाँध ही लिया।

चमत्कार हो गया जी!! पहले ही दिन आधा फायदा दीखा और एक सप्ताह में उस Hemorrhoids का नामो निशान नहीं रहा। इसके बाद तो हम लोगों ने ना जाने कितने लोगों को वो औषधी बिना राज खोले ही बना बना कर दी। और वे ठीक हुए। भैया को जो बीमारी साल में दो बार परेशान करती थी वो आज तक फिर नहीं हुयी। एक बार जब बाबा रामदेव पर मानव और पशु अस्थियों की भस्म का आरोप लगाया जा रहा था। तब मैं चीख चीख कर अपना ये अनुभव बताना चाह रहा था। लेकिन तब मैं फेसबुक व्हाट्सऐप को जानता ही नहीं था।

 

एक बात और याद आती है। जब हमारे घरों में शौच के हाथ धोने से लेकर रसोई और पूजा तक के बर्तन राख से मांजे जाते थे। एक बार नकली हिजड़े बनाने का किस्सा धर्मयुग में पढ़ा कि उनका गुप्तांग काट कर घाव पर राख भर दी जाती थी। मुसलमानों में खतने के बाद आज भी राख थोपी जाती है। किसान खेत पर काम करते और उनके फांवड़े या खुरपी से चोट लग जाती तो किसान या मजदूर तुरत फुरत वहीं कहीं अगिहाने की राख लेकर उस कटे पर थोप लेता था। किसान छोटी पौध को बीमारी से या दीमक से बचाने को राख का छिड़काव करते रहे हैं। राख से बड़ा कोई Germicide, Anti pesticide, या Anti septic कुछ होता ही नहीं था।

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्या गांवों के देशी इलाज पुराण लेकर बैठ गया। लेकिन मेरा ये सब बताने का कारण है नरेन्द्र मोदी जी के मंत्री सत्यपाल सिंह का गंगा जी में अस्थि और भस्मी विसर्जन को लेकर आपत्ति दिखाने वाला बयान। आखिर गंगाजी में औषधीय गुण से पूर्ण अस्थियों या राख के विसृजन से कौन सी गन्दगी होगी? जिस अग्नि में ताप कर सब कुछ पवित्र हो जाता है, उस अग्नि के अवशेषों से मंत्री जी को क्यों आपत्ति हो रही है? क्या मंत्री जी कभी श्रद्धापूर्वक गंगा जी के स्नान को गए हैं?

अभी मैं कुछ दिन पहले गंगा जी गया था। काफी कुछ साफ़ हो चुकी गंगा जी में तमाम बच्चे बड़े बीच धार में स्नान कर रहे थे। तभी एक डैड बॉडी के अवशेष भी वहां बहते हुए आ गए। विश्वास कीजिये वहां कोई भी महिला बच्चे उस डैड बॉडी को देख कर डरने की बजाय कौतुहल से उसे देखते रहे फिर स्नान आचमन में लग गए। गंगाजी स्थान ही एसा है कि जहां पर पहुँचते ही नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति के मन आध्यात्म का भाव, तो सांसारिक आसक्ति वाले भौतिकवाद में फंसे लोगों के मन में विरक्ति या मोक्ष जैसा भाव स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है। एक ओर जलते शव वहीं समीप ही स्नान या आचमन करने में कोई भी भय या हेय भाव पैदा नहीं होता। वरन उल्टे उस समय तो मृत्यु से भय ही खत्म हो जाता है।

हर की पौड़ी

मंत्री जी ने कहा कि शास्त्रों में गंगा में अस्थि विसर्जन कोई वर्णन नहीं है। तो हे मंत्री! जी गंगाजी का अवतरण तो, हुआ ही राजा सागर के 60हजार पुत्रों की अस्थि विसर्जन के लिए था। और तब से हिन्दू धर्म में गंगाजी का महत्व केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए ही तो बना हुआ है। यही एसा स्थान है जो मृतक के परिजनों को उनके प्रिय की सद्गति के लिए आश्वस्त करता है।

हमको स्वच्छता चाहिए। अपनी मोक्षदायिनी गंगा माँ के उस अंक की। जिसमें कुछ देर के लिए हम अपने सांसारिक दुख दर्दों को भूल आध्यात्मिक अनुभूति कर सकें। ना कि, किन्हीं धनिक और विदेशीयों के लिए पारदर्शी जल में किसी बोटिंग या उड़ान भरते सी प्लेन, ड्रग्स लेते और हिप्पियों के डवलप होने वाले घाटों वाले किसी पिकनिक स्पॉट के लिए।

जय हो गंगा मैया की!

श्री गिरधारी लाल गोयल, लेखक ‘राष्ट्रीय अग्रवाल महासभा’ के अध्यक्ष व हिन्दू अधिकारों एवं राष्ट्रीय हितों के लिए सजगता से आवाज़ उठाते हैं।

यह भी पढ़ें, 

कोर्ट के भी पहले से हिन्दू क्यों मानते हैं गंगा-यमुना को जीवित
आधुनिक विज्ञान से भी सिद्ध है पितर श्राद्ध की वैज्ञानिकता

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here