प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विपक्ष ये आरोप लगाता है कि वे हर वक्त विदेश यात्रा पर होते हैं। मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अब तक अपने 48 महीने के कार्यकाल के दौरान 41 बार विदेश यात्रा की है जिसके तहत उन्होंने 50 से ज्यादा देशों का दौरा किया है। इन 41 विदेश यात्राओं में कुल 355 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। परन्तु सच क्या है? क्या नरेंद्र मोदी हर वक्त विदेश यात्रा पर रहते हैं? या विदेशी यात्रओं से फायदा भी पहुंचा है! आईए करते हैं पड़ताल।

विदेश यात्राओं से देश को क्या मिला?

प्रवासी भारतीय एकजुट हुए

प्रवासी भारतीयों की विदेश में प्रतिष्ठा बढ़ी। स्वदेश से उनका लगाव बढ़ा। नतीजा ये हुआ कि 2014 में उन्होंने 70 अरब डॉलर भारत भेजे।

प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश बढ़ा

यह प्रधानमंत्री के विदेश दौरों का ही नतीजा है कि देश में FDI में बढ़ोतरी हुई। 2015 में 35 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया, जो दुनिया में सबसे ज्यादा था। जहां 2013 में 34,487 अरब डॉलर FDI था, वहीं तीन साल बाद मोदी सरकार में यह बढ़कर 61,724 अरब डॉलर हो गया।

सेना का आधुनिकीकरण

पूर्ववर्ती सरकार में रक्षा सौदे अटके पड़े थे। एक के बाद एक देशों के साथ रक्षा सौदे हुए। भारत ने इस दौरान अपने रक्षा बजट में 8 फीसदी की बढ़ोतरी की। सेना के आधुनिकीकरण के लिए रोडमैप पर काम चल रहा है। अगले 10 साल की योजना बना ली गयी है। इसमें 15 लाख करोड़ रुपये खर्च कर सेना का आधुनिकीकरण किया जाना है। यह सब अलग-अलग देशों से हुए समझौतों के तहत होगा।

मेक इन इंडिया को बढ़ावा

विदेश यात्राओं से पीएम मोदी ने मेक इन इंडिया के लिए समर्थन जुटाया। चीन समेत दुनिया भर की कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं। राफेल और सुखोई विमान बनाने वाली कंपनियां भारत में अपनी निर्माण इकाई लगाने को तैयार हैं जिससे भारत आने वाले दिनों में रक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भर हो जाएगा।

एनएसजी के लिए लामबंदी

एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए वैश्विक समर्थन जुटा। अकेले चीन को छोड़कर शेष सभी देशों ने भारत का समर्थन किया।

भारत कर सका सर्जिकल स्ट्राइक

सर्जिकल स्ट्राइक को दुनिया भर से मिले समर्थन के पीछे भी इन विदेश यात्राओं का प्रभाव रहा है। भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर पीओके में 60 आतंकियों को मार गिराया और उनके आतंकी कैंपों को नष्ट कर दिया।

मध्य एशिया में पकड़

ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह के विकास और इस्तेमाल पर समझौता। यह चीन-पाक द्वारा ग्वादर बंदरगाह समझौते की काट माना जा रहा है। ईरान से समझौते के बाद भारत की सीधी पहुंच अफगानिस्तान होते हुए मध्य एशिया तक होगी।

SCO की सदस्यता

चीन के प्रभुत्व वाले शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन में भारत को सदस्यता मिल सकी तो इसलिए कि भारत ने इसके लिए अच्छा होमवर्क किया था। विदेश यात्राओं का इस उपलब्धि के पीछे बड़ा महत्व रहा।

अमेरिका-इंग्लैंड के चुनाव में मोदी की नकल- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्रा के दौरान भारतीयों में जो एकजुटता पैदा हुई है उसका असर दिखने लगा है। भारतीयों का वोट पाने के लिए अब मोदी की नकल पर नारे बनाए जा रहे हैं। अमेरिका और इंग्लैंड के चुनाव में ऐसे नजारे खूब देखने को मिले। पीएम मोदी की लोकप्रियता को इन चुनावों में भुनाने की कोशिश की गयी।

42 साल बाद कनाडा पहुंचे पीएम

जब प्रधानमंत्री कनाडा गये तो यह 42 साल में पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा थी। ताज्जुब है जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं, जहां छुट्टियां मनाने भी पंजाब के नेता जाया करते हैं, उस देश में प्रधानमंत्री को जाने में 42 साल लग गये।

38 साल बाद UAE पहुंचे प्रधानमंत्री

संयुक्त अरब अमीरात ऐसा देश है जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। यहां भी प्रधानमंत्री को पहुंचने में 38 साल लग गये। पीएम नरेंद्र मोदी ने वहां पहुंच कर नये सिरे से द्विपक्षीय संबंधों को गढ़ा।

28 साल बाद श्रीलंका का दौरा

श्रीलंका से भारत के प्राचीनकाल से संबंध रहे हैं लेकिन यहां भी पिछले 28 साल से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं पहुचे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दूरी को खत्म कर दिया।

नेपाल पहुंचने में लग गये 17 साल

नेपाल से भारत का रिश्ता रोटी-बेटी का रहा है। बावजूद इसके दोनों देशों के बीच दूरी इतनी बढ़ गयी कि 17 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का दौरा हुआ जब नरेंद्र मोदी वहां पहुंचे। भारत-नेपाल संबंध अब नये सिरे से परवान चढ़ रहा है।

अरब देशों के साथ पहली साझा बैठक

अरब स्टेट के साथ भारत ने पहली बार बैठक की। इससे पहले ऐसी कोशिश कभी नहीं की गयी थी।

अफ्रीकी देशों के साथ पहला आयोजन

IAFS-III में अफ्रीकी देशों के साथ सामूहिक व्यस्तता भी पहली बार हुई। भारत इससे पहले ऐसे आयोजन में कभी शरीक नहीं हुआ था, जबकि अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंध महात्मा गांधी के जमाने से रहे हैं। मोदी की विदेश यात्रा को लेकर विपक्ष से लेकर आम लोगों तक सवाल उठाते रहे, लेकिन मोदी ने सबको नजरअंदाज करते हुए देश की ताकत बढ़ाने के लिए विश्वभर में यात्रा की।

आइये नजर डालते है मोदी की इस साल 2018 की विदेश यात्राओं पर

श्रीलंका: इस साल विदेश यात्रा की शुरुआत श्रीलंका से की। 10 से लेकर 12 मई तक मोदी श्रीलंका यात्रा पर रहे। श्रीलंका की उनकी यात्रा दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों का एक प्रतीक है और यह बौद्ध धर्म की साझा विरासत को सामने लाई।

 

जर्मनी रुस फ्रांस और स्पेन का दौरा:

इसके बाद मोदी 29 मई से लेकर 3 जूव तक चार देशों की यात्रा पर रहे। इन चारों देशों में जाने के पीछे मोदी का एक ही मक्सद थी कि वो द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत कर सके।

कजाकिस्तान दौरा:

पीएम मोदी ने कजाकिस्तान में भारत शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में दिस्सा लिया। शंघाई सहयोग संगठन में शामिल देशों के नेता दुनिया की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस बैठक का दिस्सा भारत को इसलिए बनाया गया क्योंकि मोदी के प्रधानमंत्रई बनने के बाद भारत दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई एक सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरा है।

अमेरिका पुर्तगाल नीदरलैंड दौरा:

पीएम मोदी का ये दौरे भारत-अमेरिकी संबंधों को लेकर बेहद अहम था। पहली बार मोदी और डॉनल्ड ट्रंप के बीच मुलाकात हुई। इस दौरान मोदी और ट्रंप ने साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ एकजूट होकर लड़ने का फैसला किया। साथ ही ट्रंप ने समुद्री व्यापार तथा सहयोग को मजबूत करने पर भी सहमति जताई है।

पुर्तगाल दौरा:

इस विदेश दौरे के दौरान मोदी ने 33 कार्यक्रमों और मीटिंग में हिस्सा लिया। पुर्तगाल दौरे से भारत के लिए एक सौगात मिली इस के दौरान भारत-पुर्तगाल अंतर्राष्ट्रीय स्टार्ट-अप हब का उद्घाटन किया गया।

नीदरलैंड दौरा:

मोदी के नीदरलैंड दौरे के बाद दोनों देशों के बीच जल समझौते को लेकर ज्ञापन सहित तीन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। मोदी ने इस विदेश दौरे के बाद कहा था कि नीदरलैंड आर्थिक विकास के लिए हमारी जरूरतों तथा प्राथमिकताओं का एक स्वाभाविक भागीदार है।

इज़राइल दौरा:

इसके बाद मोदी 4 से 8 जुलाई तक इज़राइल और जर्मनी के विदेश दौरे पर रहे। 70 साल में पहली बार कोई भारतीय पीएम यरुशलम गया था। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान भारत और इजरायल अपने संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए कई कदम उठाए।

चीन और म्यांमार दौरा:

पीएम मोदी ने चीन में ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए गए थे। उसके बाद मोदी म्यांमार पहुंचे। ब्रिक्स में पीएम नरेंद्र मोदी के विदेश दौरे को कामयाब दौरा बताया गया। इस दौरे से पहली बार पाकिस्तान के आतंकवाद संगठनों पर अंगुली उठाई गई थी। पीएम मोदी का म्यांमार का यह पहला द्विपक्षीय दौरा था। मोदी के इस दौरे का मकसद एक्ट ईस्ट पालिसी के तहत पूरब के इस पड़ोसी देश के साथ विभिन्न क्षेत्रों में आपसी संबंधों को बढ़ावा देना था। भारत के इस पड़ोसी देश में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए मोदी का यह दौरा काफी अहम था।

फिलीपींस दौरा:

बीते 36 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली फिलीपींस की यात्रा थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15वें आसियान शिखर सम्मेलन और 12वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने फिलीपींस गए थे। इस सम्मेलन में जाने के बाद से भारत के एक्ट ईस्ट पॉलिसी के बढ़ावा मिला।

और बातें भी बनाती हैं खास-

प्रधानमंत्री मोदी ने 10 फीसदी वक्त विदेश में बिताया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार साल में 41 विदेशी यात्राएं की हैं। सम्मेलनों में मौजूदगी को मिलाकर प्रधानमंत्री अब तक 56 देशों की यात्रा कर चुके हैं। पीएम ने इन यात्राओं के दौरान 3.4 लाख किमी की दूरी तय की है। विदेश में उन्होंने 119 दिन बिताए हैं। इसका मतलब ये हुआ कि हर साल पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 देशों की यात्राएं कीं और करीब 39 दिन सालाना विदेश में रहे। यानी 10 फीसदी वक्त उन्होंने विदेश में बिताए।

पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में 11 विदेश यात्राएं कीं। दूसरे वर्ष यह संख्या नौ पर आ गयी और तीसरे वर्ष अब तक सिर्फ छह विदेश दौरे ही किए हैं। वहीं मनमोहन सिंह ने पहले साल 6, दूसरे साल 9 और तीसरे साल 6 यात्राएं की थीं। तीन साल में मनमोहन सिंह ने 21 विदेश यात्राएं की थीं। यानी नरेंद्र मोदी से महज 5 यात्राएं कम।

विदेश यात्रा में सफर के दौरान ही सोते हैं मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश यात्राएं बढ़ाई हैं लेकिन तरीका ऐसा विकसित किया है कि कम समय में अधिक से अधिक देशों की यात्राएं की हैं। पीएम मोदी विदेश यात्रा के दौरान विमान में ही नींद लेते हैं। रास्ते में किसी देश में रुक कर वे आराम नहीं करते। इससे काफी समय बच जाता है।

होटल का खर्च भी बचा लेते हैं पीएम

प्रधानमंत्री इस तरह से अपने विदेश दौरे की योजना बनाते हैं कि उन्हें ठहरने के लिए होटलों में कम से कम रुकना पड़े। वे उड़ान के दौरान ही नींद पूरी कर लेते हैं। इसलिए इस उद्देश्य से कहीं ठहरने की परंपरा से उन्होंने खुद को अलग कर लिया। बचे हुए समय का उपयोग अधिक देशों को कवर करने में वे करते हैं।

इतिहास हो गया पीएम के साथ लंबा चौड़ा क्रू

पीएम मोदी अपने साथ पत्रकारों या अधिकारियों की भारी-भरकम फौज लेकर नहीं चलते। जाता वही है जिसकी दौरे में कुछ भूमिका होती है। बगैर भूमिका के लोगों को साथ ले चलने की चापलूस परंपरा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंद कराकर दरअसल विदेश यात्रा खर्च को बहुत सीमित कर दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश यात्राओं के जरिए देश की साख को मजबूत किया है, भारतवासियों का विश्वास बढ़ाया है और विभिन्न देशों के साथ रिश्तों को नयी ऊंचाई दी है। इसका फायदा भारत को मिल रहा है। ये कहना भी सही नहीं है कि प्रधानमंत्री हमेशा विदेश दौरों में रहते हैं। आंकड़ों के जरिए देखा कि चीन, अमेरिका के राष्ट्र प्रमुख भारतीय पीएम की तुलना में अधिक समय तक विदेशों में रहते हैं लेकिन भारतीय पीएम अधिक मेहनती हैं। आज भारत को इन्हीं विदेशी दौरों की मदद से 15600 करोड़ की FDI विदेश से मिला है, जो भारत में रोजगार सृजन करने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। इसलिए कम समय में देश को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाते हैं। ये विदेश दौरे दरअसल भारत के लिए वरदान साबित हुए हैं।

 – मनीष प्रकाश, लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं।

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