3 C
Munich
Saturday, December 13, 2025

जबाला, सत्यकाम और महर्षि गौतम ने सिखाया हिन्दू धर्म का मर्म

Must read

Abhijeet Singh
Abhijeet Singh
लेखक भारतीय एवं अब्राहमिक इतिहास, साहित्य व संस्कृति के गहन जानकार एवं राष्ट्रवादी विचारक हैं

छान्दोग्योपनिषद् के चौथे अध्याय में जबाला, सत्यकाम और हरिद्रुमत के पुत्र महर्षि गौतम की कथा मिलती है। जबाला उस भारत का प्रतिनिधित्व करती है जहाँ नारी हर रूप में नारायणी है, सत्यकाम सत्य के उस प्रहरी के रूप में खड़े हैं जो कहता है कि जो धीर मनुष्य सत्य-पथ से कभी नहीं हटता, वही ब्रह्म-विद्या प्राप्त करने का अधिकारी है और महर्षि गौतम हिन्दू धर्म के उस स्वरुप के प्रदर्शक हैं जहाँ केवल और केवल स्वीकार्यता और समावेश है और जो ये मानता है कि जन्म, गोत्र, कुल या जाति किसी का ब्राहमण होना या ब्रह्म-विधा का अधिकारी होना तय नहीं करती।

भारत और हिन्दू धर्म को समझना है तो इन तीन चरित्रों का पारायण कर लीजिये लिये बहुत कुछ समझ में आ जायेगा। जबाला स्त्री जाति और वंचित वर्ग की प्रतिनिधि है, दैवयोग या किसी दुर्भाग्य से उसे कई-कई पुरुषों की सेविका रूप में काम करना पड़ा था और उसी के नतीजे में पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र जब पढ़ने योग्य हुआ तो एक दिन माँ के पास आया और कहाँ, माँ मैं शिक्षा प्राप्ति के लिये गुरुकुल जाना चाहता हूँ। जबाला प्रसन्न होकर पुत्र को अनुमति देती है पर पुत्र का एक सवाल उसे संकट में डाल देता है। पुत्र उस समय की गुरुकुल की रीति को जानता है इसलिये वो अपनी माँ से पूछता है, महर्षि मुझसे पूछेंगे, तुम्हारा नाम और गोत्र क्या है, तब मैं उन्हें क्या उत्तर दूँगा? माँ संकट में पड़ गई क्योंकि पुत्र का गोत्र तो पिता का गोत्र होता है पर इसके पिता का तो मुझे पता ही नहीं है, अब इसे क्या उत्तर दूं? अगर झूठ बोलती हूँ तो झूठ के बुनियाद पर प्राप्त शिक्षा उसके बालक को क्या संस्कारित करेगी, इसलिये निडर और निर्भीक जबाला अपने पुत्र से कहती है, तात ! निराश्रित होने के कारण यौवनावस्था में मुझे अनेक गृह स्वामियों की परिचर्या करनी पड़ी, वृत्ति बनाये रखने के लिए मुझे उनको शरीर भी अर्पित करना पड़ता था। उनमें से तू किसका पुत्र है मैं यह नहीं जानती? इसलिए तेरा गोत्र भी कैसे निर्धारित करूं? हाँ मेरा नाम जाबाला है और तू अपने जीवन में सत्यकाम (सत्य से ही प्रयोजन रखने वाला) है, इसलिए जब वे तेरा नाम पूछें तो अपना नाम सत्यकाम जाबाल बताना। वत्स ! तेरे जीवन का सत्य तेरी आत्म-कलुषता की निवृत्ति ही तुझे ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दर्शन करेगी ऐसा मुझे विश्वास है।“

सत्यकाम जबाला

बालक अपनी माँ के चरणों में सर नवाकर गौतम ऋषि के आश्रम में जाता है और जब ऋषि उससे उसका गोत्र पूछ्तें हैं तो वो निर्भीक होकर वही जबाब देता है जो उससे उसकी माँ ने कहा था। ऋषि स्तंभित रह जाते हैं, सोचते हैं लोग ब्रह्मज्ञान पाने के लिये न जाने कितने झूठ गढ़तें हैं और ये बालक इतना साहसी कि सारा सत्य यथावत बयान कर दिया, उधर सारा आश्रम हतप्रभ ये सोचता है कि अब तो गौतम इस कुलटा के पुत्र को यहाँ से निकाल देंगें पर ऋषि गौतम सत्यकाम से कहतें हैं, पुत्र, तूने सत्य का परित्याग न कर अपनी विशिष्टता प्रतिपादित की है, मैं तुझे ब्रह्म विद्या का शिक्षण दूँगा। जा पुत्र ! जा कर यज्ञ के लिये समिधा लेकर आ, आज ही तेरा यज्ञोपवीत संस्कार करना है।

डॉक्टर अशोक कुमार डबराल संस्कृत नाटकों के रचयिता है, जबाला, सत्यकाम और ऋषि गौतम के चरित को लेकर उन्होंनें ‘प्रतिज्ञानम’ नाम से एक नाटक की रचना की थी ये पूरा नाटक इन तीन पात्रों के उज्जवल चरित्र को उजागर करते हुए भारत को कई सन्देश देता है। इस नाटक का सन्देश है कि अवैध रिश्तें होतें हैं उस रिश्ते से जन्मीं संतान नहीं, गोत्र या जाति किसी का मान या योग्यता निर्धारित नहीं करती, इसे निर्धारित करती है ‘आत्मा का पूर्ण निष्कलुष और निष्कपट होना तथा सत्य को यथारूप में स्वीकार करने का साहस’।

उस काल में जन्मी एक महिला का अपने बारे में ऐसी स्वीकारोक्ति, पुत्र ब्रह्म-ज्ञानी बने इसकी अभिलाषा, ऋषि गौतम का अवैध रिश्ते और अज्ञात पिता से जन्में बालक को ब्राह्मण मानते हुये ब्रह्म-ज्ञानी बनाने का फैसला, सत्यकाम का खुद के बारे में वैसी पहचान जाहिर होने के बाबजूद विचलित न होना और न ही अपनी माँ के प्रति कोई कलुष भाव इन सबको जोड़िये और कल्पना करिये हमारा भारत, और हमारे पूर्वज और उनके आदर्श कितने ऊँचे थे। आज के भारत, आज की महिलायें और आज के धर्म के कथित ठेकेदार इनके साथ खुद का मूल्यांकन करें, भारत की अवनति का कारण स्पष्ट हो जायेगा।

– श्री अभिजीत सिंह, लेखक भारतीय संस्कृति, हिन्दू, इस्लाम, ईसाईयत के गहन जानकार, ज्योतिर्विद और राष्ट्रवादी लेखक हैं. 

यह भी पढ़ें, 

माँ मदालसा की कहानी सिद्ध करती है हिन्दू संस्कृति में माँ का सर्वोच्च स्थान

दतिया के स्वामीजी, जिनके यज्ञ से युद्ध से पीछे हट गया था चीन

कैसे बचाया था गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिन्दूओं को मुसलमान बनने से?

- Advertisement -spot_img

More articles

1 COMMENT

  1. मैंने आपकी website पर काफी material read करा और काफी गुड लगा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest article