“चतुर: कुंभाश्चतुर्धा ददामि”– मानव जीवन का परम एवं चरम लक्ष्य है अमृत्व की प्राप्ति। अनादिकाल से अमृतत्व से विमुख मनुष्य उसी अमृतत्व की खोज में सतत प्रयत्नशील है। पुराणवर्णित देवासुर संग्राम एवं समुद्र मंथन द्वारा अमृतप्राप्ति के आख्यान से यह स्पष्ट होता है कि भगवान ने स्वयं मोहिनी रूप धारण कर दैवी प्रकृति वाले देवताओं को अमृतपान कराया था। अमृत-कुंभ की उत्पत्ति विषयक भारतवर्ष में प्रति द्वादश वर्ष में हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयाग में होता रहता है। कुंभ पर्व के माहात्म्य को प्रतिपादित करते हुए कहा गया है कि – कुंभ पर्व में जाने वाला मनुष्य स्वयं दान-होमादि सत्कर्मों के फलस्वरूप अपने पापों को वैसे ही नष्ट करता है , जैसे कुठार वन को काट देता है। कुंभ पर्व की इसी महत्ता से अभिभूत होकर प्राय: समस्त धर्मावलंबी अपनी आस्था को हृदय में संजोए हुए अमृतत्व की लालसा में उन-उन स्थानों पर पहुंचते हैं। उस अनन्त, अव्यक्त अमृत के अभिलाषी कुंभ में पहुंचते रहते हैं। अर्धकुंभ
।। प्रयाग कुंभ ।।
“जो कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ, कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।”
प्रयाग तीर्थराज कहे जाते हैं। समस्त तीर्थों के ये अधिपति हैं। सातों पुरियां इनकी रानियां कही गई हैं। गंगा-यमुना की धारा ने पूरे प्रयाग के क्षेत्र को तीन भागों में बांट दिया है। ये तीनों भाग अग्निस्वरुप यज्ञवेदी माने जाते हैं। इनमें गंगा-यमुना के मध्य का भाग गार्हपत्याग्नि, गंगापार का भाग (अलर्कपुर-अरैल) दक्षिणाग्नि माना जाता है। इन भागों में पवित्र होकर एक एक रात्रि निवास करने से इन अग्नियों की उपासना का फल प्राप्त होता है। प्रयाग के महात्म्य से सारा वैदिक साहित्य भरा पड़ा है।
पद्मपुराण का वचन है –
ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी।
तीर्थानामुत्तमं तीर्थं प्रयागाख्यमनुत्तमम्।।
जैसे ग्रहों में सूर्य तथा ताराओं में चन्द्रमा है, वैसे ही तीर्थों में प्रयाग सर्वोत्तम है।
यत्र वटस्याक्षयस्य दर्शनं कुरूते नर:।
तेन दर्शनमात्रेण ब्रह्महत्या विनश्यति।।
जो पुरुष यहां के अक्षयवट का दर्शन करता है, उसके दर्शन मात्र से ब्रह्महत्या नष्ट हो जाती है।
।।अर्द्धकुंभ 2019।।
गंगा, यमुना सरस्वती की अविरल धारा के पूरब प्रवाह से संगम के तट पर आने वाला हर श्रद्धालु मां की असीम कृपा महसूस करेगा। जीवनदायिनी मां गंगा दिव्य और भव्य कुंभ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को आशीष देने के लिए अपनी धारा बदल रही हैं। सालों बाद संगम की रेती पर मां गंगा की धारा पूरबवाहिनी हो चली हैं। धार्मिक जानकारों की मानें तो गंगा का पूरबवाहिनी होना बहुत ही शुभ संकेत माना जाता है। इस दौरान गंगा में स्नान दर्शन पूजन करने वालों को विशेष पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है। अर्धकुंभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां गंगा के पूर्व दिशा में जाने से पुण्य प्राप्ति के अवसर कई गुना बढ़ गए हैं। इसके साथ ही कुंभ की तैयारी में जुटे प्रशासन के लिए भी यह बड़ा शुभ संकेत है। मां गंगा के पूर्ववाहिनी होने से संगम नोज के क्षेत्रफल में बड़ा खाली स्थान मिलेगा। इससे प्रशासनिक तैयारियों के साथ श्रद्धालुओं के लिए भी अतिरिक्त स्थान मिल सकेगा। अर्धकुंभ
बड़े स्नान महापर्व सोमवार को कुंभ के दौरान होने वाले सभी प्रमुख स्नानपर्व सोमवार को पड़ रहे हैं। यह भी एक शुभ योग है ज्योतिषाचार्य पं राममिलन ने बताया, गंगा की पूरब यात्रा का अर्थात अभ्युदय उन्नति है। पूरब वाहिनी होना जितना सुखदायक है उतना ही सुखदायक है गंगा दर्शन। कुंभ के दौरान गंगा स्नान से अपार पुण्य का सौभाग्य प्राप्त होगा इससे दुनिया में देश की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पतित पावनी गंगा का यह स्वरूप ऐतिहासिक है। अर्धकुंभ
डुबकी लगाने से मिलेगा अपार पुण्य
ज्योतिषाचार्य पं राममिलन के अनुसार कुंभ के दौरान कई वर्षों बाद मां गंगा पूरब वाहिनी हुई हैं। इसके पहले गंगा की दिशा पश्चिम ही हुआ करती थी, लेकिन आगामी कुंभ में त्रिगुणात्मिका शक्ति गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का पूर्वाभिमुख होना देश की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने वाला होगा। गंगा की पावन धारा में पूर्ण डुबकी लगाने वालों को पुण्यफल प्राप्त होंगे।
– अनुराग तिवारी, प्रयागराज
क्यों और कब लगता है प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में कुंभ?
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