पिछले दिनों राजा भैया की लखनऊ में रैली हुई थी। इसलिए मेरे मन में विचार आया कि सोशल मीडिया के माध्यम से सर्वे किया जाए कि रैली में जो लोग शामिल हुए थे वह किस पृष्ठभूमि से आते हैं। कल से लेकर आज तक यानि दो दिनों के कठिन परिश्रम के बाद इसी फेसबुक पर सौ लोग मिले जो राजा भैया के लखनऊ रैली में शामिल हुए थे। मैंने उन सभी से एक-एक कर अपने अंदाज में बात की। बातचीत के बाद जो रिजल्ट आया उससे मैं पुरी तरह हैरान हो गया।

उन सौ लोगों में से सिर्फ 10 इंटर तक पढ़े थे और 10 दसवीं तक पढ़े थे बाकी अस्सी लोग दसवीं तक भी नहीं पढ़े थे। यानी आप इस आधार पर यह आकलन लगा सकते हैं कि राजा भैया की रैली में जो लोग शामिल हुए थे उसमें से 70 प्रतिशत लोग कम पढ़े-लिखे थे।

बात केवल राजा भैया की ही रैली की ही नही है बल्कि सारी जातिवादी दलों का यही हाल है। चूंकि मैं पटना का रहने वाला हूँ और राजधानी के उस इलाके में मेरा मकान है जहां दक्षिण की ओर से बाईपास रोड है तो पूर्व की ओर से गांधी मैदान जाने का रास्ता है। गांधी मैदान में आए दिन छोटी-बड़ी रैली होती रहती है। इसलिए गांधी मैदान में आने-जानेवालों का मुख्य मार्ग हमारे मकान से मात्र 150 मीटर की दूरी पर है।

लालू यादव की रैली में आने वाले 80 फिसदी लोगों की भेष-भूषा, कपड़े और बोल-चाल से आप स्वयं ही अंदाजा लगा लेगें कि बेचारे गरीब और अशिक्षित तबके के लोग हैं। लालू यादव की रैली में शामिल होने वाले लोगों की आर्थिक दशा कितना बदतर होता है यह जानने के लिए विरचंद पटेल पथ पर जाना होगा जहाँ लालूप्रसाद यादव के अधिकतर विधायकों का आवास है।

रैली समाप्त होने के बाद इन विधायकों द्वारा भोजन आयोजित किया जाता है। सभी को यह जिम्मेदारी दी जाती है कि अपने-अपने क्षेत्र के लोगों को भोजन करवाएं। भोजन जो तैयार होता है उसका आप जाकर नजदीक से निरीक्षण करेंगें तो आप कह उठेंगे क्या यह भोजन इंसानों के लायक है? कच्ची पूड़ियाँ, अधपके चावल, सब्जी के नाम पर आलू के बड़े-बड़े फांक वाला पानी जैसा सब्जी।

इस दोयम दर्जे के खाने पर टूटते लोग और मचलती भीड़ को जब आप एक कोने में खड़े होकर देखेंगे तो आपका रोम-रोम सिहर उठेगा। स्वत:ही हाथ ईश्वर की ओर उठ कर उनसे प्रार्थना करने लगेगा, “हे प्रभो! इन बेचारों को गरीबी से मुक्त करो।” इससे भी अधिक गरीबी का दर्शन करना है तो वामपंथी और नक्सलियों की रैली में अवलोकन करना पड़ेगा।

वहीं भाजपा की रैली जब गांधी मैदान में होती है तो इस पार्टी के 70 फिसदी कार्यकर्त्ताओं में आपको किसी भी दृष्टि से गरीबी का लेश मात्र नही दिखाई देगा और न ही भाजपा द्वारा आए हुए लोगों को भोजन करवाया जाता है। वे लोग जैसे आते हैं वैसे ही गाड़ी में सवार होकर चले जाते हैं।

अतः आप जब सारी जातिवादी पार्टियों के कार्यकर्ताओं के आर्थिक और शैक्षणिक स्तर का मनोवैज्ञानिक रूप से विश्लेषण करेंगें तो इनमें आपको हर जातिवादी दलों के 70-75 प्रतिशत कार्यकर्ताओं को गरीब और अशिक्षित पाएंगे। हां कोई दल में इसका प्रतिशत घट सकता है लेकिन 60 फिसदी से नीचे नहीं हो सकता है। यह मेरा वर्षों से रैली में आने-जाने वाले लोगों पर किया गया शोधपूर्ण आकलन है।

लालू यादव, मुलायम यादव, मायावती, राजा भैया हो या फिर रामविलास पासवान और हनुमान बेनीवाल, इन सभी की राजनीति जातिवादी है। कहने को तो यह सभी पार्टियां कहती हैं कि हम अमुक विचारधारा में विश्वास करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि जातिवादी पार्टियों की कोई भी विचारधारा नहीं होती और न ही कोई सिद्धांत होता है।

lalu-rabdi जातिवादी नेता

इन जातिवादी पार्टीयों के विचारधारा केवल सत्ता होता है तथा इनका सिद्धांत परिवार होता है।सत्ता के लिए इनके विचार पल-पल बदलते रहता है। तो इनके पार्टी का सिद्धांत अपने परिवार के इर्द-गिर्द ही नाचता रहता है। ये गरीब और भोलीभाली जनता को सालोंसाल मूर्ख बनाए रखते हैं और उनकी स्थिति बद से बदतर करते जाते हैं। और आरोप दूसरों पर थोप देते हैं। 

अपनी बात को दमदार बनाने के लिए आवश्यकता उदाहरण की तो मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, अजित सिंह और मायावती यह सभी वें चेहरे हैं जो सभी के सभी पहली बार मुख्यमंत्री भाजपा के समर्थन से ही बनें थे। भाजपा की कृपा से ही इनलोगों कों सत्ता का स्वाद चखने को मिला था। सवाल यह उठता है भाजपा के समर्थन से जब आप लोगों ने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा तो उस समय भाजपा अच्छी थी तो आज बुरी कैसी है? यदि भाजपा आज बुरी है तो निसंदेह कल भी बुरी थी। फिर आप सब जनता के सामने जाकर यह माफी मांगों की हमने भाजपा के सहयोग से पहली बार जो मुख्यमंत्री बना था वह हमारी ऐतिहासिक भूल थी।

इसलिए लालू-मुलायम हों, रामविलास अथवा मायावती हों, हनुमान बेनीवाल, उद्धव और राज ठाकरे या ममता बनर्जी हों, ये सभी की पार्टियाँ जाति या क्षेत्र आधारित पार्टी हैं जिससे न तो समग्र समाज का विकास हो सकता है और न ही प्रदेश का क्योंकि न तो इनका कोई विचारधारा होती है और न ही सिद्धांत होता है। ये लोग कभी जाति तो कभी क्षेत्र के नाम पर भोली भाली गरीब और अशिक्षित जनता की भावनाओं से खेलकर सत्ता तक पहुंचते हैं पर वहां पहुंचने के बाद खुद मलाई खाते हैं और जनता का खून चूसने लगते हैं। उन्हें गरीब और अशिक्षित बनाए रखते हैं और अगले चुनाव में फिर उनको जाति की दुहाई देते हैं।

अतः पढ़े-लिखे शिक्षित नागरिकों को चाहिए कि वें इन जातिवादी पार्टियों का बायकॉट करें क्योंकि जब आप देखेंगे तो पाएंगे कि देश में आधी समस्याओं की जन्मदाता यही जातिवादी और क्षेत्रीय पार्टियाँ ही हैं।

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