बुलंदशहर की घटना के बाद वामपंथी विचारधारा के अराष्ट्रीय तत्वों की बांछे खिल उठी हैं| दोनों की संयुक्त कोशिश है अखलाक प्रकरण के बाद एक बार फिर से हिंदूओं को बदनाम किया जाए| इस कोशिश में वामपंथी मीडिया का भी साथ मिल चुका है। हिंदूओं को बदनाम करने की यह खबर देश की सीमा के सात समंदर पार अमेरिका और ब्रिटेन तक पहुंचा दी गयी है। हिंदू आतंकवाद का ताना-बाना शब्दों के जाल से फिर से बुना जाने लगा है| इस शोर में सच्चाई दब गई है या वामपंथ प्रायोजित मीडिया द्वारा चालाकीपूर्वक दबा दी गई है| दोनों एक ही बात है। देश से लेकर विदेश तक केवल एक ही शोर मचा हुआ है कि हिंदूओं ने एक पुलिस अधिकारी की हत्या कर दी।
यह सच्चाई कोई नहीं बता रहा है कि कैसे महाव गांव के ईख के खेत में बर्बरता पुर्वक 40 गाय काट दी गईं? यह सच्चाई कोई नही बता रहा है कि गोवंश की हत्या करने वाले सुदेफ चौधरी, इल्यास, शराफत, अनस, साजिद, सरफुद्दीन और परवेज को जब प्रत्यक्षदर्शी शिखर कुमार और सौरभ ने देखा तो इसी आधार पर आरोपियों का नाम बताया गया| तो पुलिस उनको पकड़ने के लिए फौरन नयागांव की ओर रवाना क्यों नही हुई ? यह सच्चाई कोई नही बता रहा है कि बुलंदशहर में आए दिन गाय को काटकर हिंदूओं को भड़काने का काम पिछले अनेक महीनों से कौन कर रहा है?
महीनों तक गौहत्यारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई
शांतिपसंद हिंदू तो 6 जुन को भी शांत रहे जब कोतवाली देहात के नयी मंडी में अनेक गायों की हत्या कर दी गई थी। वे 17 जुलाई को भी चुप थे जब नयी मंडी के इमलिया गांव में गोकशी की गई थी। वे 30 जुलाई को भी चुप ही रहे जब रिढावली के एक बगीचे में अनेक गायों को निर्ममतापूर्वक मार दिया गया था और बेचारे हिंदू 31 जुलाई को भी चुप ही रहे जब दौलतपुर और 17 नवम्बर को इस्लामाबाद गांव में गोकशी की गई थी।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार इंस्पेक्टर और सुमित को लगी एक ही पिस्टल से गोली
स्याना बुलंदशहर के चिंगरावटी, महाव व नया गांव की घटना को अब मीडिया को मैनेज करके पुलिस प्रशासन बेशक इसे विक्टिज्म कार्ड की तरह यूज करके सहानुभूति व कहानी को अलग मोड़ देने की कोशिश कर रही है। लेकिन असलियत यह है कि पुलिस की यह बहुत बड़ी गलती थी कि उसने पब्लिक पर लाठीचार्ज किया| इस बीच अफरातफरी में अज्ञात द्वारा चलाई गयी गोली से बीस वर्ष के सुमित की मृत्यु हो गई। उसके बाद ही उग्र होकर भीड़ ने पथराव किया|
विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और हिंदूवादियों को कोई बेशक बदनाम करो|लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुमित और इंस्पेक्टर सुबोध दोनों की लगी गोली .32 बोर की ही होना पूरे मामले की साफ तस्वीर बयां कर रही है| असलियत यह कि उस भीड़ पर गोली तो छोड़िए लाठी डंडे तक नहीं थे।
जब पुलिस ने गौकशी की रिपोर्ट लिखने में आना कानी की तो स्थानीय ग्रामीणों में रोष बढ़ गया और कुछ लोगों ने गौकशी करने वालों के खिलाफ एफ.आई.आर लिखे जाने तक रोड़ जाम करने का ऐलान कर दिया| भीड़ गोवंश से लदे ट्रेक्टर को राजमार्ग पर ले जाकर रोड जाम करना चाह रही थी, वहां से तबलीगियों के वाहन गुजर रहे थे|पुलिस ने टकराव की आशंका से भीड़ को रोका|
यदि यहां पुलिस द्वारा भीड़ को अपनापन दिखा विश्वास में लेके रोका जाता तो ये घटना नहीं घटती| पर इंस्पेक्टर द्वारा पहले से ही कार्रवाई न होने से नाराज भीड़ को और कठोरता से रोककर बात बढा दी| रोड को क्लियर करने के प्रयास में ही पुलिस या अज्ञात ने सीधी गोली चला दी जिसके कारण सुमित की मृत्यु हुई और कई घायल हुए तब उग्र होकर भीड़ ने पथराव किया। यदि प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो पुलिस ने गोली चलाई जो सुमित को लगी और पुलिस की गोली से एक युवा लड़के की मौत हो गयी| पुलिसिया लापरवाही और उपर से पुलिसिया हत्या से भीड़ का आक्रोश बढ़ गया पर तब भी किसी प्रदर्शनकारी ने पुलिस पर हमला नहीं किया क्योंकि प्रदर्शनकारियों के पास कोई हथियार था ही नहीं| पर उसी समय एक फौजी जितेन्द्र मलिक उर्फ़ जीतू ने इंस्पेक्टर पर गोली चला दी, जिसकी सम्भवतया इंस्पेक्टर से पुरानी रंजिश हो सकती है और वह प्रदर्शन का हिस्सा नहीं था| इस रंजिश का सारा इल्जाम हिन्दुओं के उपर आ गया|

एक दिसंबर से बुलंदशहर के दरियापुर में करोड़ों मुस्लिमों का जमावड़ा लगा हुआ था उनको खाने के लिए मीट की व्यवस्था करने के लिए मुस्लिमो द्वारा आस पास के गांवों के जंगलों में अवैध रूप से गाय काटने की घटनाएं हो रही थी। जिनकी सूचना लगातार पुलिस प्रशासन को स्थानीय ग्रामवासियों द्वारा दी जा रही थी लेकिन पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर रही थी। इसी कारण से आस पास के कई गांवो के लोग इकट्ठा होकर प्रशासन से कार्यवाही करने व गौ हत्यारों से निपटने की मांग कर रहे थे।
लेकिन भोले हिंदू कल महाव गांव के 25-30 गोवंशों के हत्या के बाद थोड़ा बावले होकर पुलिस चौकी में रिपोर्ट लिखवाने की गलती कर गये| हिन्दुओं की गलती है कि उन्होंने बूचड़खाना मालिकों से डरने वाली पुलिस से कोई कार्रवाई की उम्मीद की| और पुलिस ने भी ये ख्याल नहीं किया कि सामने वाले उत्तेजित लोग हैं| जिसका परिणाम हुआ कि उनके माथे पर जबरन हिंदू आतंकवाद का शब्द लिख दिया गया। क्या देश की पुलिस बूचड़खानों के कसाइयों का डर छोडकर कभी कानून का साथ देगी? अब पुलिस प्रशासन द्वारा गलत तरीके से पास के गांवों के निवासी 27 जाट, त्यागी, लोधी, राजपूत व अन्य कई समाज के लोगों के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज कर अपना दामन बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
जबकि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर ADG इंटेलिजेंस SB शिरडकर द्वारा उक्त प्रकरण की की गई जांच की रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि, “बुलंदशहर हिंसा के लिए पुलिस प्रशासन जिम्मेदार है|” शिरडकर की रिपोर्ट में इंस्पेक्टर सुबोध की मृत्यु को एक दुर्घटना करार दिया गया है और किसी भी प्रकार की मॉब लिंचिंग की घटना से साफ इनकार किया गया है| फिर भी हिन्दू विरोध करने के लिए मीडिया द्वारा ये मामला तुरंत लपक लिया गया और विहिप व संघ के नेताओं को बदनाम करने का भरपूर प्रयास किया गया| बरखा दत्त, और रवीश कुमार जैसे नक्सल और वामपंथी पत्रकारों द्वारा हिन्दुओं को आतंकी की तरह पेश किया गया| जबकि सच बिल्कुल इसके विपरीत निकला है| अब बड़ा सवाल ये है कि क्या हिन्दू विरोधी मीडिया अपने झूठे दुष्प्रचार के लिए हिन्दुओं से माफ़ी मांगेगी?
गौहत्या पर प्रशासनिक लापरवाही पर योगी आदित्यनाथ की फटकार

उत्तरप्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरी घटना को षड्यंत्र बताया| योगी आदित्यनाथ ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि जब 19 मार्च 2017 से अवैध बूचड़खाने बंद कर दिए गए हैं तो यह अवैध कार्य कैसे हो रहा था। मुख्यमंत्री आला पुलिस अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि बुलंदशहर में गोकशी कब से चल रही थी। यह सब कुछ अचानक तो हुआ नहीं। मुख्यमंत्री ने इस घटना के मद्देनज़र सभी जिलों के डीएम व एसपी को निर्देश दिए कि जिन जिलों में इस तरह की अवैध काम होंगे, वहां के अधिकारी सीधे व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार होंगे। उन्होंने कहा कि बुलंदशहर कांड की गंभीरता से जांच की जाए। गोकशी में संलिप्त सभी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। उन्होंने गोकशी से संबंध रखने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सभी लोगों को समयबद्ध तरीके से गिरफ्तार करने के निर्देश दिए।
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