तीन तलाक से जुड़ा नया विधेयक गुरुवार को करीब 5 घंटे चली चर्चा के बाद लोकसभा से पारित हो गया। विधेयक के पक्ष में 245 और विरोध में 11 वोट पड़े। वोटिंग के दौरान कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, द्रमुक और सपा के सदस्यों ने वॉकआउट कर दिया। अब यह विधेयक राज्यसभा जाएगा। सरकार 8 जनवरी तक चलने वाले शीतसत्र में ही इसे पारित कराना चाहती है। इसी साल सितंबर में तीन तलाक पर अध्यादेश जारी किया गया था।
आइये समझते हैं क्या है तीन तलाक, और जानते हैं क्या इस बिल से मुस्लिम औरतों की राह हो गयी है आसान? या हम आज भी आधा सच ही देख रहे हैं। इस्लाम के अंदर पारिभाषिक रूप से विवाह संबंध एक समझौता है और इसलिये इस समझौते को तोड़े जाने की गुंजाइश भी रखी गई है जिसे तलाक़ कहा जाता है। अब तलाक़ दिया कैसे जाये इसको लेकर मुस्लिम समाज के अंदर कई तरह की विधियाँ प्रचलन में रहीं है :-
मुसलमानों की बीच सामान्यतया तीन किस्म की तलाकें वजूद में हैं:-
1. तलाके-बिदअत- जिसमें तीन तलाकें एक बार में दी जाती है।
2. तलाके-हसन- इसमें तलाक देकर एक महीने रुका जाता है (हैज के लिये) फिर तलाक दी जाती है, फिर एक महीना रुका जाता है और फिर तीसरा बार तलाक दी जाती है।
3. तलाके-अहसन- ये तलाक देने का वो तरीका है जो कुरान और हदीस में उल्लिखित है। इसमें ये है कि अगर कोई तलाक दे देता है तो उसे तीन माह तक रुकना चाहिये और अगर उस तीन महीने के अंदर उसे लगता है कि उसने गलती की या उसे तलाक़ नहीं देना चाहिये था तो वह अपनी बीबी के साथ रुजु (प्रायश्चित) हो सकता है।
इस तीन महीने के अंदर अगर वो रुजु न हुये फिर वो मियां-बीबी नहीं रहते। लेकिन उसके बाद भी अगर शौहर चाहे तो वो अपनी पुरानी बीबी से दुबारा निकाह कर सकता है। कुरान में आता है- “और जब तुम स्त्रियों को तलाक दे चुकें और वो इद्दत पूरी कर लें तो फिर उन्हें उनके पति के साथ निकाह करने से न रोको।” (सूरह बकरह, 2:232) मगर इस निकाह में फिर से नया मेहर तय किया जायेगा। दुबारा निकाह होने के बाद फिर से कोई समस्या हुई और तलाक देना पड़ गया तो फिर से तीन महीने की मुद्दत है जिसमें वो बीबी के साथ रुजु कर सकता है। तीन बार ऐसा जायज है, उसके बाद फिर से उसे अपनी बीबी से निकाह करने के लिये हलाला विधि का सहारा लेना पड़ेगा जिसके अंदर ये है कि उसकी बीबी किसी और मर्द के साथ निकाह में रहेगी (अरबी में निकाह का एक मतलब “विवाह” है और दूसरा मतलब है “जिस्मानी-ताअल्लुकात”) और फिर अगर वो मर्द उसे तलाक़ दे देता है तभी वो अपने पहले शौहर से फिर से निकाह कर सकेगी।
तलाके-हसन का तरीका भी वही है, फर्क बस इतना है कि वहां (तलाके-अहसन) रुजू की मुद्दत तीन महीने की है और यहाँ एक महीने की। माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया था उस फैसले में केवल और केवल एक बात थी कि इकट्ठे दी गई तीन तलाक़ (यहाँ तीन तलाक़ माने “एक साथ एक ही वक़्त” में दी गई तीन तलाक़) को असंवैधानिक घोषित किया गया था। यानि सुप्रीम कोर्ट ने तलाक़ के एक विधि जिसे “तलाके-बिदअत” कहा है, को खत्म किया है।

इसका अर्थ ये है कि :-
- तलाक़ की बाकी दो विधियाँ यानि तलाके-हसन और तलाके-अहसन का तरीका अभी भी मौजूद है।
- अगर कोई फोन या whatsapp पर अपनी पत्नी को तलाक़ कह देता है तो उसके मान्य होने की भी गुंजाइश है क्योंकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसके ऊपर कुछ नहीं कहा है।
- मुस्लिम महिलाओं को केवल फौरी तलाक़ से मुक्ति मिली है जिस तरीके को पाकिस्तान समेत दुनिया के कई मुस्लिम देश पहले ही अमान्य कर चुके हैं।
- इन तीनों ही विधियों में एक बात कॉमन है कि तलाक़ देते वक़्त औरत से उसकी मर्जी पूछना अनिवार्य नहीं है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तलाक की जिस विधि को खत्म किया है उसे कहा जाता है “तलाक़े-बिदअत”। इस्लाम में बिदअत का अर्थ है “दीन में कोई नई या अलग बात शामिल कर लेना” जाहिर है इसे मुस्लिम समाज अच्छा नहीं मानता। इसका मतलब ये है कि “तलाक़े-बिदअत” का तरीका पैगंबर साहब के जमाने में वजूद में नहीं था, इसके प्रमाण भी हैं। मसलन, पैगंबर साहब के जमाने में हजरत रुकाना ने अपनी औरत को एक मस्जिद में इकट्ठे तीन बार तलाक दे दी। नबी ने इस पर फरमाया, यह तो एक ही बार है, अगर चाहो तो रुजु कर लो। चुनांचे उसने रुजु कर लिया और अपना घर आबाद कर लिया। (मस्नदे इमामे, 1/265)।
एक हदीस में आता है जिसके अनुसार नबी को एक आदमी की खबर दी गई कि उसने अपनी बीबी को तीन तलाक़ें दे दी थी, पैगंबर साहब इस खबर को सुनते ही गुस्से की वजह से खड़े हो गयें और फिर फरमाया कि क्या मेरी मौजूदगी में अल्लाह की किताब के साथ खेल किया जाता है।
इसका अर्थ है कि नबी का स्पष्ट फरमान था कि एक साथ चाहे तीन बार तलाक़ कहो या तीन सौ बार उसे एक ही माना जायेगा। बाद में हजरत उमर फारुख की खिलाफत के दौर में कुछ महिलाओं के अनुरोध पर उन्होंने एक फतवा देते हुए कहा था कि अगर कोई एक साथ तीन तलाक दे देता है तो वो तीन ही मानी जायेगी, कहतें हैं कि बाद में हजरत उमर फारुख ने अपने इस फतवे पर रुजू भी किया था पर ये हो गया था इसलिये मुस्लिम समाज में तलाक देने के इस विधि को भी स्वीकार्यता मिल गई जो आज तक चली आ रही है।
इस्लाम के जो अधिकृत विद्वान हैं कोर्ट का और सरकार का फैसला उनके लिये बड़ा सुकून देने वाला है। खैर, अनुत्तरित प्रश्न अब भी ये खड़ा है कि एक झटके के तीन तलाक़ को छोड़कर मुस्लिम बहनों को क्या और कोई फायदा हुआ है? जबाब है नहीं। दुनिया आज भी गोल नहीं है!!!!
[…] तीन तलाक पर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाया है, जिसका लंबे समय से विरोध किया जा रहा था. सरकार ने लोकसभा में कई संशोधन प्रस्ताव खारिज होने के बाद ‘मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज बिल’ पास करवाने का अहम कार्य किया है. वहीं सरकार ने हज पर दी जाने वाली वाली सब्सिडी इसी साल से खत्म कर दी है, यानी 2018 से हज पर जाने वालों को पूरा खर्च खुद ही वहन करना होगा। […]