देश की सांस्कृतिक राजधानी जयपुर के नाहरगढ़ अरण्य की दुर्गम पहाड़ियों में से बहती थी एक नदी। इसपर बना आथुनिया बांध जब छलकता था तो सुरम्य आमेर पहाड़ियों के झरने फूट पड़ते थे। जयपुर बसाते समय हरमाड़ा की पहाड़ी तोड़कर बांडी नदी से द्रव्यवती में पानी लाए थे महाराजा सवाई जयसिंह। नाहरगढ़ की घनी पहाड़ियों के अथाह जल को रोकने के लिए 200 साल पहले जयपुर के महाराज रामसिंह ने इसपर बांध का निर्माण करवाया था। यह जल झरनों से गिरकर पहले 200 फीट गहरे कुंड को भरता। और फिर द्रव्यवती की 50 किमी लम्बी धारा में बहता हुआ पूरे शहर को पार कर ढूंढ नदी में जा मिलता। द्रव्यवती की स्वच्छ धारा बारह महीनों बहती थी। शहर का भूगर्भ जल से भरा रहता था। नाहरगढ़ की पहाड़ियां साल भर हरी रहती थीं। और कोई जन्तु प्यासा नहीं रहता था। सच में “द्रव्य” से भरपूर होने के कारण ही द्रव्यवती थी यह नदी।

पर रियासत काल के अनेक बांध जुलाई 1981 की विनाशकारी बाढ़ में टूट गए और तब से अब तक किसी ने उनकी सुधि नहीं ली। 1947 से कांग्रेस की सरकारों द्वारा की गई जलक्षेत्र की भयंकर अनदेखी के कारण बाढ़ में द्रव्यवती के सभी तटबन्ध टूट गए और नदी ने विकराल रूप ले लिया। कांग्रेस की सरकारों द्वारा बाढ़ के बाद भी अव्यवस्था, अनदेखी और भ्रष्टाचार से एक जीती जागती नदी गन्दे नाले में तब्दील हो गयी। और अपना नाम खोकर “अमानीशाह नाला” कहलाने लगी। जो नदी कभी शहर की सुंदरता थी और जिससे निकली नहरें जयपुर के घर घर में पानी पहुंचती थीं वह अब एक बदबूदार कीचड़ से भरा अमानीशाह नाला बनकर सुंदर जयपुर शहर पर एक धब्बे जैसी दिखाई पड़ती थी।
इतने वर्षों में कोर्ट के तमाम फैसलों, तमाम कमेटियों की रिपोर्ट, पर्यावरण संरक्षकों की चिंताओं और शहर की समस्या पर कांग्रेस ने ध्यान देना तक भी उचित नहीं समझा और नदी का क्षेत्र अंधाधुंध अतिक्रमण, गन्दगी, कचरे, बदबू और बदहाली का अड्डा बन गया। जयपुर के तमाम कचरा, दर्जनों नाले, बूचड़खानों से लेकर केमिकल फैक्ट्रियों का कचरा अमानीशाह नाले में गिरता था। अमानीशाह नाले के आसपास गुजरते हुए नाक पर रुमाल रखना पड़ता था। एक समय शहर यह भी भूल चुका था कि जयपुर में एक नदी भी बहती है। जिसका नाम द्रव्यवती है। हालात यह थे कि अमानीशाह नाले की एक धारा का औपचारिक नाम “गन्दा नाला” पड़ चुका था।

पर 2013 के चुनाव के बाद राजस्थान भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री श्रीमती Vasundhara Raje ने जयपुर की इस बदहाल नदी का उद्धार करने की कमर कसी। और नदी क्षेत्र के पूरे परीक्षण के बाद 2015 में टाटा ग्रुप को द्रव्यवती रेजुविनेशन प्रोजेक्ट सौंपा गया। युद्धस्तर पर नदी के 47 किमी बहाव क्षेत्र के पुनरुत्थान का काम शुरू हुआ। और आज 90 फीसदी से अधिक कार्य पूर्ण होकर द्रव्यवती नदी अपने वैभवशाली रूप में आ चुकी है। दशकों से द्रव्यवती को जीवित करने के लिए संघर्ष कर रहे हज़ारों पर्यावरण प्रेमियों का सपना साकार रूप ले चुका है। भाजपा सरकार द्वारा 16 किमी द्रव्यवती रिवरफ्रंट का उद्घाटन कर दिया गया है। व बचा हुआ अंतिम चरण का काम कुछ ही महीनों में पूरा होने वाला है।

1676 करोड़ की लागत के द्रव्यवती प्रोजेक्ट को गुजरात में अहमदाबाद के साबरमती फ्रंट की तर्ज पर विकसित किया गया है। इसमें साफ पानी के लिए 5 एसटीपी लगाए गए हैं। जिसमें प्रतिदिन 17 करोड़ लीटर पानी स्वच्छ कर नदी में डाला जाएगा। इसके साथ 47 किमी नदी के दोनों तरफ़ लगभग 20 हज़ार पेड़ लगाए गए हैं। जॉगिंग व साइकिलिंग के लिए 40 किमी का ट्रैक बना है जिससे शहर का पर्यावरण स्वच्छ होगा। इस नदी में बोटिंग भी होगी। इतने वर्षों में हुए नदीक्षेत्र के सभी अतिक्रमण हटाकर नदी के प्राचीन व 1981 की बाढ़ का बहाव क्षेत्र पूर्ण सुरक्षित किया गया है ताकि जयपुर बड़ी से बड़ी बाढ़ भी झेल सकता है। जयपुर शहर पर धब्बा बना हुआ अमानीशाह गन्दा नाला अब द्रव्यवती नदी के रूप में जयपुर के वैभव में चार चांद लगा रहा है।

जयपुर में पिछले 4 साल में विकास के अनेक कार्य हुए जिसमें द्रव्यवती नदी का जीवित होना एक ऐतिहासिक कार्य है। कांग्रेस की सरकारों के कारण यह गन्दा नाला जयपुर के लिए अभिशाप बन गया था। पर भाजपा की इच्छाशक्ति के कारण स्वच्छ नदी बन पाया है। ऐसे अनेक कारणों से जयपुरवासी कमल पर बटन दबाना पसन्द करेंगे।

यह भी पढ़ें,
कुंभ और प्रयागराज