पाश्चात्य संस्कृति के प्रसार−प्रचार में नोबेल पुरस्कार जैसे हथकण्डों का खुलकर प्रयोग होता रहा है। रूस के ज़ार को बुरा न लगे इस कारण तॉल्स्तॉय को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया,हालाँकि पश्चिम में भी हर कोई मानता आया है कि उनसे श्रेष्ठ साहित्यकार विश्व में कोई नहीं था। नोबेल पुरस्कार के बारे में ऐसी बहुत सी घटनायें हैं।

अर्थशास्त्र जैसे विषय में तो नोबेल पुरस्कार मिलना ही नहीं चाहिये। कार्ल मार्क्स की नास्तिकता तथा अन्य कई बातें बुरी है,हालाँकि उनकी नास्तिकता भी ईसाईयत की गन्दगी देखकर पनपी थी,हिन्दुत्व का तो उनको कोई ज्ञान ही नहीं था। दास कापिताल” में एक महत्वपूर्ण बात उन्होंने लिखी — एडम स्मिथ और रिकार्डो के काल में अर्थशास्त्र का लक्ष्य था राष्ट्र की सम्पत्ति में वृद्धि के उपाय ढूँढना,परन्तु जेम्स स्टुआर्ट मिल के काल से अर्थशास्त्र का लक्ष्य ही बदल गया — राष्ट्र के स्थान पर ज्वॉइण्ट स्टॉक कम्पनियों के मुनाफे में वृद्धि के उपाय ढूँढना अर्थशास्त्रियों का प्रमुख धन्धा बन गया।

किन्तु कार्ल मार्क्स के काल में पूँजीवाद ने श्रमिक संगठनों पर पाबन्दी लगा रखी थी,हड़तालियों पर पुलिस फायरिंग करायी जाती थी,बच्चों से अमानुषिक कार्य कारखानों में कराये जाते थे,काम के घण्टों की कोई सीमा नहीं थी,बिना सूचना के नौकरी से निकाल दिया जाता था। आज पूरे विश्व में परिस्थिति बदल चुकी है। अब तो मार्क्सवाद का मुखौटा लगाकर पूँजीवाद कार्य करता है,ताकि असली मार्क्सवादियों को ठिकाने लगाया जा सके। अमर्त्य सेन और उनके अनुयायी अभिजीत बनर्जी जैसों के विचार सतही तौर पर देखने में वामपन्थी लगते हैं,क्योंकि “डिवेलपमेण्ट इकानॉमिक्स” के अन्तर्गत गरीबी हटाओ के मुद्दे पर वे लोग लिखते आये हैं। किन्तु गरीबी हटाओ का नारा सबसे पहले अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने न्यू डील के नाम से दिया था,अभिजीत बनर्जी तब पैदा भी नहीं हुये थे। और ब्रिटेन में “डिवेलपमेण्ट इकानॉमिक्स” पढ़ने वाले अभिजीत बनर्जी के शिष्य राहुल विन्सी भी तब पैदा नहीं हुये थे जिनको “न्याय” योजना पढ़ायी गयी — वह 72000 रूपया कहाँ से आता?मार्क्सवाद तो कमानेवाला खायेगा का नारा लगाता है!कमाने वालों पर टैक्स ठोककर निठल्लों में बाँटना “न्याय” है!यह तो रेगिस्तानी मज़हब का फलसफा है जो कमानेवाले काफिरों को लूटकर रेगिस्तानी निठल्लों में बाँटने को सरिया का ‘न्याय’ कहता है।

उसी रेगिस्तान से अभिजीत बनर्जी की “डिवेलपमेण्ट इकानॉमिक्स” निकली यह भारतीय मीडिया नहीं बतलायेगी। सउदी अरब के सबसें बड़े उद्योगपति शेख अब्दुल लतीफ जमील के पैसे से Abdul Latif Jameel Poverty Action Lab की स्थापना 2003 में MIT में की गयी — जिसके तीन संस्थापक थे अभिजीत बनर्जी,उनकी छात्रा−प्लस−(रखैल शब्द मुझे अच्छा नहीं लगता किन्तु कोई सभ्य शब्द उस सम्बन्ध के लिये मुझे नहीं पता जो अभिजीत बनर्जी का अपनी छात्रा के साथ था) एस्थर डुफ्लो जिनको अभी अभिजीत बनर्जी के साथ नोबेल पुरस्कार मिला,और तमिल अमरीकी गणितज्ञ सेन्धिल मुल्लइनाथन जिन्होंने अभिजीत बनर्जी के कार्यों को गणितीय आधार दिया किन्तु पुरस्कार से वञ्चित रह गये ,Abdul Latif Jameel Poverty Action Lab में भी उनको कोई महत्वपूर्ण पद नहीं मिला जिसके निदेशक और सह−निदेशक उपरोक्त गुरु−शिष्या थे।

एस्थर डुफ्लो से अभिजीत बनर्जी का जब पहला परिचय हुआ तब एस्थर डुफ्लो 22 वर्ष की छात्रा थी और मास्को में इतिहास पर शोधकार्य करके उसी समय लौटी थी। तभी एस्थर डुफ्लो का झुकाव अर्थशास्त्र की ओर हुआ,उन्होंने स्वीकारा कि “अर्थशास्त्र” ही ऐसा विषय है जो महत्व रखता है (अर्थात् बड़े लोगों तक पँहुच बनाता है)। एस्थर डुफ्लो ने अर्थशास्त्र में अभिजीत बनर्जी के निदेशन में उसके बाद शोधकार्य किया जिसे 1999 में MIT ने स्वीकृति दी जहाँ अभिजीत बनर्जी प्रोफेसर थे,और डिग्री मिलते ही उसी MIT में एस्थर डुफ्लो को सहायक प्राध्यापक की नौकरी मिल गयी। MIT अमरीका की सबसे प्रसिद्ध टेक्नालॉजी संस्था है,उसके पूरे इतिहास में इतनी कम उम्र में किसी को ऐसी नौकरी नहीं मिली थी। एस्थर डुफ्लो सचमुच मेधावी थी!उस शोध के दौरान शोध के नाम पर मिले धन से अठारह मास तक एस्थर डुफ्लो और अभिजीत बनर्जी भारत में होटलों में एक साथ रहकर गरीबी हटाने पर शोध करते रहे। एक ही कमरे में रहते थे या अलग−अलग कमरों में यह मैं नहीं बताऊँगा,किन्तु आगे की घटनााओं से आप समझ जायेंगे।

अभिजीत बनर्जी अपने युवावस्था की ‘सहेली’ अरुन्धती तुली के पति थे जिनसे एक पुत्र हुआ — कबीर,जो मर गया। अरुन्धती तुली भी उसी MIT में प्रोफेसर थी और है। किन्तु एस्थर डुफ्लो के साथ अभिजीत बनर्जी के खुल्लमखुल्ला सम्बन्ध के कारण अरुन्धती तुली से तलाक हो गया। अरुन्धती तुली से तलाक से पहले ही अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो एक साथ रहते थे और सन्तान भी पैदा कर चुके थे। अरुन्धती तुली से तलाक के बाद एस्थर डुफ्लो से विवाह हुआ। अभिजीत बनर्जी यदि भारतीय नागरिक होते तो व्यभिचार के आरोप में जेल चले गये रहते और उनकी सन्तान अवैध कहलाती जिसे कोई उत्तराधिकार नहीं मिलता।

अभिजीत बनर्जी ने अर्थशास्त्र में गरीबी हटाने पर शोधकार्य किया। उनकी अपनी गरीबी तो हट गयी। शेख अब्दुल लतीफ जमील के बेटे शेख मुहम्मद लतीफ को फुसलाकर उसके बाप के नामपर Poverty Action Lab भी MIT में खुलवा लिया और उस धन से क्लासरूम में पढ़ाने से अवकाश लेकर दुनिया भर में एस्थर डुफ्लो के साथ घूम−घूम कर “शोध” करते रहे!क्या शोध किया?

उनके समस्त शोधकार्यों का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यही है कि पोलियो की टीका लगवाने के लिये यदि एक किलोग्राम दाल प्रोत्साहन में दी जाय तो अधिक बच्चे टीका लगवाते हैं!अभिजीत बनर्जी जब 5 वर्ष के बच्चे थे तब मैंने देखा था कि दिल्ली के कई सरकारी प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को मुफ्त सेब और दूध दिया जाता था ताकि अधिक बच्चे स्कूल आयें,जब भारत सरकार का राजस्व बढ़ा तो पूरे देश में मध्याह्न भोजन की योजना लागू की गयी। गरीबी उन्मूलन की कल्याणकारी परियोजनायें तो 1931 में अमरीकी राष्ट्रपति ने आरम्भ की थी। ऐसे सिद्धान्तों को खोज का श्रेय तो अभिजीत बनर्जी को नहीं दिया जा सकता!तब अभिजीत बनर्जी ने ऐसा कौन सा नया तीर मार लिया?उनकी नयी खोज यही है कि विकासशील देशों में सरकारें जो धन गरीबी हटाने या शिक्षा या स्वास्थ्य आदि पर खर्च करती हैं उसका अधिकांश बर्बाद होता है,उस धन को शेख अब्दुल लतीफ पॉवर्टी एक्शन लैब या फोर्ड फाउण्डेशन जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से अभिजीत बनर्जी जैसे कुशल विद्वानों के निदेशन में खर्च किया जाय तो देश का विकासदर बढ़ेगा!

फोर्ड फाउण्डेशन का नाम मैंने क्यों लिया?क्योंकि फोर्ड फाउण्डेशन के धन से स्थापित पद पर ही MIT में अभिजीत बनर्जी को नौकरी मिली। फोर्ड फाउण्डेशन का अमरीकी गुप्तचर संस्था सी⋅आइ⋅ए⋅ से गहरा सम्बन्ध रहा है। अरविन्द केजरीवाल ने नौकरी छोड़कर जब “कबीर फाउण्डेशन” खोलकर अपना सार्वजनिक “कैरियर” आरम्भ किया तो उसका रजिस्ट्रेशन होने से एक मास पहले ही “कबीर फाउण्डेशन” के नाम से फोर्ड फाउण्डेशन ने डॉलर भेज दिये थे — गैर−रजिस्टर्ड संस्था के लिये अवैध विदेशी मुद्रा लेने के कारण अरविन्द केजरीवाल को जेल में होना चाहिये था किन्तु तब काँग्रेस की सरकार थी,और केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने तक अरविन्द केजरीवाल को मीडिया “राष्ट्रीय नेता” बना चुकी थी — ताकि काँग्रेसी भ्रष्टाचार के विरुद्ध पनपे भयङ्कर जनाक्रोश को सुनियोजित तरीके से भाजपा के विरुद्ध मोड़ा जा सके।

सी⋅आइ⋅ए⋅ ने ही फोर्ड फाउण्डेशन को लिखा था कि केजरीवाल की सहायता की जाय।

सी⋅आइ⋅ए⋅ और फोर्ड फाउण्डेशन को भारत की आर्थिक विकास−दर बढ़ाने की बहुत चिन्ता है,जो संसार के सभी प्रमुख देशों में सबसे तेज है। उनको अपने प्रिय देश अमरीका की आर्थिक विकास−दर बढ़ाने की चिन्ता क्यों नहीं है जो विकास की दर में बहुत पीछे है?

कोलकाता को आज गर्व है कि चार कलकत्तियों को नोबल पुरस्कार मिल चुका है — टैगोर,टेरेसा,अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी। आपलोग पता करें कि इनमें से कौन हिन्दू था तथा गोमांस नहीं खाता था। आपलोग पता करें कि इनमें से कौन नोबल पुरस्कार का वास्तविक हकदार था। टैगोर ने स्वंय कहा था कि उनको यदि शरत् चन्द्र चटर्जी की तरह कथा लिखना आ जाय तो वे बदले में अपना हाथ काटकर देने के लिये तैयार हैं!

किन्तु शरत् चन्द्र चटर्जी किसी अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार के लिये कभी नामाङ्कित भी नहीं किये गये — क्योंकि गोमांस नहीं खाते थे। और अंग्रेजी में नहीं लिखते थे।

अभिजीत बनर्जी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शोध−निष्कर्ष यह है कि गरीबी हटाने के लिये सरकार द्वारा सीधे तौर पर खर्च की गयी राशि से गरीबी नहीं हटती,गरीबी तब हटती है जब उस राशि को (अभिजीत बनर्जी और अरविन्द केजरीवाल जैसे सुयोग्य लोगों की निजी संस्थाओं को देकर) “सही तरीके” से खर्च की जाय। तब प्रश्न उठता है कि कमाने वाले परिश्रमी लोगों पर अतिरिक्त टैक्स लगाकर निठल्ले लोगों को 72000 रूपया बाँटने वाली काँग्रेसी “न्याय” के सूत्रधार अभिजीत बनर्जी ने यह क्यों नहीं बताया कि देश के विकास में योगदान देने वाले परिश्रमी लोगों को दण्डित करके निठल्लों को पुरस्कृत करने वाली योजना से भारत का विकास दर कैसे बढ़ेगा?

सउदी शेख मुहम्मद लतीफ के नौकर को पता है कि भारत में मज़हबियों का जो अनुपात जनसंख्या में है उससे बहुत अधिक अनुपात निठल्लों में है। सात सौ वर्षों से निठल्लों ने केवल लूटपाट बलात्कार हत्या आदि ही सीखा जिस कारण अब कानून का राज स्थापित होने पर विकास में पिछड़ गये — जिसका रोना काँग्रेस की सच्चर कमीशन रोती थी।

जवाहरलाल नेहरू की भाँजी नयनतारा ने अपनी पुस्तक “रिलेशनशिप” में लिखित रूप में स्वीकारा था कि अपने पति को धोखा देकर वह परपुरुष के साथ संबंध करती थी,वह जो करती थी वह नेहरूवादी कानून के अन्तर्गत “व्यभिचार” की श्रेणी में नहीं आता,क्योंकि भारतीय कानून के अनुसार पति ऐसा करे तो व्यभिचार है और पत्नी ऐसा करे तो उसका मौलिक अधिकार है। जवाहरलाल की पत्नी बहुत पहले मर चुकी थी,अतः जब ऐसा कानून उन्होंने लागू कराया तब जवाहरलाल पर पत्नी को धोखा देने का कानून लागू ही नहीं होता। बहन और उसकी बेटी नयनतारा की रक्षा के लिये ऐसा कानून बना। इस कानून में अभिजीत बनर्जी जेल चले जाते,अतः भारत की नागरिकता त्यागकर जान बचायी। तो भारत उनपर क्यों गर्व करे?

JNU में कन्हैया के नेतृत्व में जब “भारत तेरे टुकड़े होंगे” वाला हंगामा खड़ा हुआ था तब अभिजीत बनर्जी ने बयान दिया था कि भाजपा सरकार छात्रों पर जो पुलिसिया कठोरता कर रही है वैसी ही कठोरता अभिजीत बनर्जी के साथ हुयी थी जब वे JNU में छात्र थे (अर्थात् कन्हैया−प्रकरण पर अभिजीत बनर्जी का बयान मोदी सरकार के विरुद्ध था) और छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष के निष्कासन को रुकवाने के लिये कुलपति को उनके आवास में ही घेराव करके जबरन नजरबन्द कर दिया था — उस गुण्डागर्दी के लिये अभिजीत बनर्जी दस दिन तक जेल में रहे परन्तु दयावान कुलपति ने मुकदमा उठा लिया। कुलपति ने गुण्डे पर दया नहीं दिखाकर समुचित कार्यवाई की होती तो पूरा कैरियर खराब हो गया रहता और फोर्ड फाउण्डेशन या किसी शेख का बाप भी इनको अमरीका में नौकरी नहीं दिला पाता।

अन्धभक्तों से पूछें कि हिन्दू−हृदय−सम्राट ने किस बात पर कहा कि “अभिजीत बनर्जी पर देश को गर्व है!” मोदी जी को समझाइये कि देशद्रोहियों,हिन्दू−विरोधियों और भाजपा−विरोधियों पर गर्व न करें। राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में हारने के बाद मोदी सरकार की नीतियाँ सुधरी है और उनसे नाराज समर्थक पुनः उनकी ओर लौटे हैं। आजकल अच्छी नातियों पर चल रहे हैं। पिछली गलतियाँ न दुहरायें।

(उपरोक्त सारे तथ्य नेट पर मिल जायेंगे।)

– आचार्य श्री विनय झा

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