“अयोध्या” का अर्थ है जिसे युद्ध द्वारा जीता न जा सके। बाबर ने आक्रमण करके मन्दिर तोड़ा,मस्जिद बनाया,तीन दूसरे प्राचीन मन्दिर वहाँ औरंगजेब ने तोड़े,किन्तु 1858 तक वहाँ हथियारबन्द साधुओं का कब्जा रहा जिन्होंने कभी किसी मुसलमान को रामलला की जन्मभूमि में नमाज नहीं पढ़ने दिया। रानी विक्टोरिया का शासन 1858 में आरम्भ हुआ तो उसी वर्ष अयोध्या में साधुओं के शस्त्र छीन लिये गये। 1858 से 1949 के बीच वहाँ ब्रिटिश संरक्षण में नमाज पढ़वाया गया किन्तु हिन्दुओं द्वारा पूजा भी चलती रही। अतः “अयोध्या” तो “अयोध्या” ही बनी रही!
भारत की सबसे बड़ी पञ्चायत ने स्वीकारा है कि मन्दिर ईंट−पत्थर से नहीं बल्कि पूजा से बनता है और हिन्दुओं ने रामलला की पूजा कभी बन्द नहीं की तो रामलला के मन्दिर का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हुआ,जबकि बाबर के बाद भी 491 वर्षों में से केवल 91 वर्षों तक नमाज पढ़ी गयी,वह भी ब्रिटिश शस्त्रों के बल पर। बाबर से लेकर औंरंगजेब की तलवारें भी वहाँ एक बार भी नमाज अदा नहीं करा सकीं। भूमि पर कब्जा तो हिन्दु साधुओं का ही रहा,जिस आधार पर आज निर्णय हुआ। आदि शङ्कराचार्य ने साधुओं को अखाड़ों में बाँटकर सशस्त्र प्रशिक्षण का आदेश दिया था जिस कारण अखाड़ों ने मुग़लों से लोहा लिया।
1853 ईस्वी में अवध के सामन्त अमीर अली के नेतृत्व में लाखों मुसलमानों ने रामलला की पूजा बन्द कराने के लिये आक्रमण कर दिया जिनके विरुद्ध लाखों हिन्दू युद्ध में उतर आये। अंग्रेजों का नवाब से कलह चल रहा था,अतः एक बटालियन अमीर अली के विरुद्ध उस लड़ाई में उतरा,लगभग पूरी बटालियन का सफाया मुसलमानों ने कर दिया। किन्तु हिन्दुओं की संख्या बहुत थी,उनकी जीत हुई और अमीर अली मारा गया। अंग्रेजों द्वारा इस सहायता के कारण ही 1858 में अंग्रेजों ने जब साधुओं का निरस्त्रीकरण कराया तो हिन्दुओं ने विरोध नहीं किया। 1770 के संन्यासी विद्रोह के पश्चात से जहाँ−जहाँ अंग्रेजों का राज स्थापित होता वहाँ−वहाँ साधुओं के शस्त्र छीन लिये जाते,केवल नाम के ही अखाड़े रह गये।
1934 में भी मस्जिद का गुम्बज तोड़ा गया किन्तु अंग्रेजों ने सरकारी खर्चे पर मरम्मत करा दिया। 1949 में मूर्ति भीतर भी स्थापित हो गयी तो अपवित्र कहकर मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बन्द कर दिया और जिलाधीश नय्यर साहब ने मुसलमानों के प्रवेश पर पाबन्दी लगा दी तथा केवल हिन्दुओं को ताला खोलकर भीतर पूजा करने का आदेश जारी किया। इस कारण नेहरू ने नय्यर साहब को बर्खास्त कर दिया!राजीव गाँधी ने ताला खुलवाया ताकि मुसलमान भी भीतर जा सके,और अब काँग्रेसी प्रचार करते हैं कि राजीव गाँधी ने हिन्दुओं के लिये ताला खुलवाया था!
वास्तुशास्त्र के अनुसार नगर के पश्चिमी भाग के मध्य में राजा का आवास होना चाहिये। वर्तमान अयोध्या में भी वैसे ही स्थल को “दशरथ महल” कहा जाता है जिसके बगल में रामलला की जन्मभूमि है जहाँ भूतपूर्व बाबरी मस्जिद का केन्द्रीय गुम्बज था। वर्तमान अयोध्या के ठीक नीचे प्राचीन अयोध्या है। पुरातत्व की रिपोर्ट है कि 700 ईसापूर्व से पहले मनुष्यों के वास का साक्ष्य नहीं मिला। ऐसे ही “साक्ष्य” सम्पूर्ण गंगा घाटी में मिलते हैं जिसके आधार पर आर्य−आक्रमण सिद्धान्त को सही ठहराया जाता है और सारे प्राचीन भारतीय ग्रन्थों को काल्पनिक कहा जाता है।
जानबूझकर इस तथ्य को छुपाया जाता है कि 700 ईसापूर्व से पहले के स्तर भूगर्भजल में डूबे हैं जिसके लिये विशेष पद्धति द्वारा उत्खनन करना पड़ता है जो भारत में अनुपलब्ध है और रहेगी क्योंकि मैकॉलेवादी नौकरशाही की न तो मानसिकता है और न ही उनके विदेशी आका करने देंगे।
मुआँ−य़ो−दड़ो के बारे में भी पढ़ाया जाता है कि सबसे नीचे का पुराना स्तर ही सबसे विकसित था,लगभग 2350 ईसापूर्व का,जिससे सिद्ध है कि बनी−बनाई विकसित सभ्यता कहीं से आकर वहाँ स्थापित हो गयी!यह तथ्य छुपाया जाता है कि ३० स्तरों की खुदाई हो पायी जो भू्गर्भजल से ऊपर हैं,नीचे के 39 स्तर डूबे हुए हैं जिनकी खुदाई नहीं हो पायी। यदि ऊपर के 30 स्तरों का सम्मिलित काल लगभग 700 वर्षों का है तो नीचे के 39 स्तरों का सम्मिलित काल लगभग 910 वर्षों का होना चाहिये और तब सबसे पुराने स्तर का काल 3260 ईसापूर्व का होना चाहिये जैसा कि कालीभंगा ( छिन्नमस्ता ) में प्राप्त हुआ है।
मेरे जिले मधुबनी के “बलिराजगढ़” के बारे में भारतीय पुरातत्व विभाग ने संसद में झूठी रिपोर्ट प्रस्तुत की कि सबसे पुराना स्तर ईसापूर्व 150 का है। उस क्षेत्र के तत्कालीन सांसद को विश्वास नहीं हुआ,विस्तृत रिपोर्ट मँगाने पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने लिखकर स्वीकारा कि सबसे पुराना स्तर NBPW ( Northern Black Polished Ware ) काल का है जो ईेसापूर्व 650 से 150 के बीच का है और उससे पहले के निचले स्तरों की खुदाई सम्भव नहीं है क्योंकि भूगर्भजल है!सम्पूर्ण गंगा घाटी का निचला स्तर NBPW वाला ही है जिसके नीचे भू्गर्भजल है!कहीं−कहीं पुराना टीला थोड़ी ऊँचाई पर होने से कुछ शती पहले तक खुदाई हो पायी,जैसे कि हस्तिनापुर या अहिच्छत्र में। मैंने भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) की वे सारी रिपोर्टें पढ़ी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में वामपन्थी इतिहासकार सुवीरा जयसवाल ने कहा कि अयोध्या का प्राचीनतम स्तर ईेसापूर्व 200 − 300 का है। अर्थात् रामजी काल्पनिक हैं!न्यायाधीश का उत्तर था — आपकी बात मान भी लें तो ईसा से पहले का है न!अर्थात् बाबर से पहले का!जितने भी वामपन्थी “विशेषज्ञों” को मुस्लिम पक्ष ने गवाही के लिये बुलाया उन सबसे न्यायालय ने पूछा कि आपलोगों ने जो कुछ बयान दिया उसका आधार क्या है,क्या पुरातात्विक रिपोर्ट पढ़ी?सबने कहा कि नहीं पढ़ी,दूसरे लोगों के बयानों और अखबारों के माध्यम से सूचना मिली। न्यायालय ने कहा कि जब पढ़ी ही नहीं तो विशेषज्ञ कैसे बन गये?गवाही खारिज!(सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में यह सब लिखा है)
अर्थात् फूटो यहाँ से,न्यायालय का वक्त बर्बाद करने चले आये!मुझे रिटायर होने से पहले निर्णय सुनाना है,तुम लोगों के झाँसे में पड़कर मामले को लटकाना नहीं है!रञ्जन जी ने रामलला का रञ्जन कर दिया!
संलग्न चित्र में केन्द्र सरकार द्वारा अधिकृत 67 एकड़ अभी निर्जन हरा−भरा क्षेत्र है जिसके उत्तर में विवादित स्थल है जो अब विवादित नहीं रहा। अब 70 एकड़ रामलला के “विश्वासपात्रों” अर्थात् ट्रस्टियों को सौंपा जायगा जो सरकारी नियन्त्रण में नहीं रहेंगे। निर्मोही अखाड़ा को भी प्रबन्धन में प्रमुख भागीदारी देने का आदेश हुआ है।
सुन्नी वक्फ़ बोर्ड ने मस्जिद माँगा तो उसकी माँग भी पूरी हो गयी किन्तु वहाँ से हटकर,क्योंकि वह सिद्ध नहीं कर सका कि 1858 से पहले वहाँ कभी नमाज पढ़ी गयी और 1858 के बाबरी मौलवी के भी दस्तावेज में दर्ज है कि उस मस्जिद का नाम था “जन्मभूमि मस्जिद” जो औरंगजेब द्वारा तोड़े गये “रामकोट” के भीतर था — पुराना मन्दिर तोड़े जाने के बाद भी हिन्दुओं द्वारा पूजा और परिक्रमा की प्रथा कभी बन्द नहीं हुयी जिस आधार पर निर्णय हुआ है। गुरु नानक की गवाही भी काम आयी जो बाबर के आने से दो दशक पहले रामजन्मभूमि का दर्शन करने गये थे — गुरु नानक हिन्दू थे तभी तो गये थे!
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बँटवारे को सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध करार दिया,क्योंकि किसी पक्ष ने बँटवारे की माँग नहीं की थी। पराशरन् जी ने कई तर्क और साक्ष्य प्रस्तुत किये कि जो रिलीफ किसी पक्ष ने माँगा ही नहीं वह देने का अधिकार न्यायालय को नहीं है!उनकी बात मानी गयी। और न ही रामलला इनलोगों के पिता थे जिनकी विरासत को ये बाँट सकते थे।
आजकल सेक्यूलरों द्वारा झूठा प्रचार किया जाता है कि के⋅के⋅ मुहम्मद ने श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का उत्खनन किया!सर्वोच्च न्यायालय का पूरा निर्णय मैंने अपलोड कर दिया है,1045 पृष्ठों की रिपोर्ट में एक बार भी के⋅के⋅ मुहम्मद की चर्चा नहीं है। जिन विशेषज्ञों ने उत्खनन किया और न्यायालय में गवाही दी सबका उल्लेख है।
अयोध्या के एक महन्थ पर कौन दवाब डाल रहा है कि इक़बाल अन्सारी से गले मिलकर गंगाजमुनी तहजीब का प्रचार करे?दर्जी का बेटा साइकिल पंचर की दूकान खोलकर समाजवादी पार्टी से इतना “कमाता” है कि एम्बेस्डर कार पर चढ़ न्यायालय जाता था। अब न्यायालय के निर्णय से “सन्तुष्ट” है क्योंकि गाँवों में कहावत है कि “मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी”!
“अयोध्या” तो “अयोध्या” है,उसके आगे सब मजबूर है!मैंने तो पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि ग्रहयोग शुभ हैं,अतः न्यायालय ने रामलला के पक्ष में निर्णय सुनाया तो शुभ होगा और यदि विरोध में निर्णय सुनाया तो अतिशुभ होगा क्योंकि हिन्दू तब जाग जायेंगे!न्यायालय केवल कानून को लागू करती है,कानून बनाती है संसद और उसे बनाती है जनता। और जनता को सद्बुद्धि देते हैं शुभग्रहयोग। मोदी है तो मुमकिन है क्योंकि मोदी के पीछे जो जनता है वह मोदी को भी मुमकिन बनाती है!मोदी के साथ डटे रहें ताकि मोदी नामुमकिन को भी मुमकिन बनाता रहे। अभी तो यह अँगड़ायी है⋅⋅⋅
– आचार्य श्री विनय झा
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6 दिसम्बर 1992, अयोध्या, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक निहितार्थ