‘बाईबल’ के ‘पुराने नियम’ में मातृत्व को जहाँ अभिशाप माना गया है वहीं हमें होने वाली हर बीमारी को वरदान। इसकी वजह ये बताई गई है कि परमेश्वर हमें बीमारी इसलिये देता है ताकि हम शुद्ध होकर सोने की तरह बन सकें। इसलिये उनके मतप्रचारक रोगियों को अपने खलिहान की उन फसलों में मानतें हैं जिसे सबसे पहले काटना आवश्यक है। ‘मत्ती की इंजील’ ने बड़ा स्पष्ट आदेश देते हुये कहा है कि “बीमार लोगों से मिलना प्रभु से मिलने के समान है।”
‘नया नियम’ तो मत-प्रचार के सबसे बड़े माध्यम के रूप में “चंगाई प्रोग्राम” को रखता है यानि बीमारों की सेवा और उसके माध्यम से उनको अपने मत में लाना। इस आदेश को ‘पुराने नियम’ के ‘बुक ऑफ़ एजेकील’ से ये कहते हुये स्वीकृति दिलाई गई है कि यहोवा उन सेवकों के विरुद्ध है जिन्होंने बीमारों को चंगा नहीं किया।
इसलिये अस्पताल खोलना या फिर बीमारों तक अस्पताल बनकर पहुँचना मिशनरियों के काम का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। परिवार का मुखिया बीमार हो गया तो समझो पूरा परिवार खत्म, वो इसलिये क्योंकि एक तो उस परिवार की आमदनी रूक जाती है, दूसरी समस्त जमा-पूँजी परिवार के उस मुखिया के इलाज में खर्च हो जाती है और पूरा परिवार एक अंधकारमय भविष्य की चिंता में असीम वेदना का शिकार होकर हतोत्साहित हो जाता है, यही तब भी होता है जब किसी गरीब परिवार में बच्चे बीमार होते हैं और प्राइवेट अस्पतालों की लूट उसके बेबस परिवारजनों को अपने बच्चों को तिल-तिल कर मरते देखने पर विवश कर देती है।

सरकारी अस्पताल पर भरोसा कर नहीं सकते, प्राइवेट अस्पताल लूट के अड्डे हैं तो ऐसे में वो गरीब या तो मिशनरी अस्पताल पहुँचता है या फिर मिशनरी की चंगाई बाबा या डॉक्टर बनकर उसके पास पहुँचते हैं और उसके एवज में वो गरीब अपना धर्म गिरवी रख देता है फिर उसकी गरीबी उसे अपने धर्म को बेचने पर विवश कर देती है।
दुनिया भर में मतान्तरण, उसके तरीके और उनके लक्ष्य पर काम करने वाले लोग बतातें हैं कि “सस्ता” या फिर “मुक्त इलाज” ‘मतान्तरण’ का सबसे बड़ा जरिया बनता है। अपने देश में हुये चिंतनीय मतपरिवर्तन की भी सबसे बड़ी वजह यही है कि हम आजादी के सत्तर वर्षों के बाद भी अपने लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधायें नहीं दे पाये, हम गाँवों तक अस्पताल या डॉक्टर नहीं पहुँचा पाये या फिर हमने गाँवों से थोड़ी दूरी पर बसे निकटवर्ती शहरों में भी चिकित्सा सुविधा दिलाना उचित नहीं समझा और न ही हमने इस बात की जरूरत समझी कि चिकित्सीय जाँच और दवाएं कम से कम दामों में लोगों को उपलब्ध हो।
और हमारी यही विफलता उनकी सफलता बन गई।
2014 में “मोदी सरकार” आई और आने के बाद उसने मतान्तरण के इस बुनियादी प्रश्न से जूझने का मन बनाया और अपने संकल्प की सिद्धि “आयुष्मान भारत योजना” के साथ कर दी। इस “हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम” को “प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना” भी कहा जाता है.जिसके दायरे में देश के 10 करोड़ परिवारों यानि लगभग पचास करोड़ लोग आ जाते हैं।
इस योजना के माध्यम से मोदी सरकार गाँव और शहरों के गरीब, उपेक्षित और कमजोर लोगों को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करायेगी। गौरवशाली ‘आयुष्मान भारत योजना’ में हर परिवार को सालाना पांच लाख रुपये का मेडिकल इंश्योरेंस मिलने का प्रावधान है जिसका अर्थ ये है कि कोई गरीब परिवार इलाज जैसे बुनियादी अधिकार के लिये अब अपने धर्म को गिरवी रखने को मजबूर नहीं होगा, इसका अर्थ ये भी है कि वो उन बड़े अस्पतालों में जा सकता है जहाँ के गेट उसकी जेब ने उसके लिये कभी न पहुँचने लायक बना दिया था, इसका अर्थ ये भी है कि उसे अब अपनी आस्था बेच कर स्वास्थ्य खरीदने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा, उसे अपनी हनुमानी, अपनी तुलसी माला और अपने तिलक न ही हटाना होगा और न ही मिटाना होगा।
आयुष्मान भारत योजना की सबसे शानदार बात ये है कि इसकी जद में भिखारी, कूड़ा बीनने वाले, दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी-पटरी दुकानदार, मोची, फेरी वाले, मजदूर, प्लंबर, राजमिस्त्री, पेंटर, वेल्डर, सिक्योरिटी गार्ड, कुली और भार ढोने वाले, स्वीपर, सफाई कर्मी, घरेलू काम करने वाले, हेंडीक्राफ्ट का काम करने वाले, दर्जी, ड्राईवर, रिक्शा चालक, दुकान पर खटने वाले लोग शामिल है जो मजहबी बाजीगरों के निशाने पर सबसे अधिक रहते हैं।

जब महाभारत का युद्ध हुआ तो कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि मैं युद्ध में स्वयं नहीं लडूंगा पर अगर तुम लड़ने को तैयार हुये तो रास्ता जरूर दिखाउंगा। ईश्वर भी उन्हीं का सहायक होता है जो अपनी मदद करना जानता है। दुर्भाग्य है कि आज हिन्दू जाति केवल और केवल कोसोवाद में लिप्त है जिसका शिकार दुर्भाग्य से कमोबेश हम सब हैं।
समाधान ये है कि आप आपके यहाँ प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगने आने वाले हर नेता और कार्यकर्ता से पूछिये कि क्या तुम्हें पता है कि पी.एम. मोदी की “आयुष्मान भारत योजना” क्या है? अगर हाँ तो फिर तुमने कितने लोगों को इस योजना का लाभ दिलाया है? और अगर नहीं दिलाया है तो फिर तुम्हारे इस अपराध की सजा क्या दी जाये? उससे ये भी पूछिये कि क्या तुम्हारे यहाँ काम करने वाले नौकर, ड्राईवर, माली या अपने दूसरे स्टाफ को तुमने इस योजना का लाभ दिलवाया है या फिर ये काम भी मोदी ही आकर करेंगे?
सवाल पूछिये, कार्यकर्ताओं को दौड़ाइये, खुद भी आयुष्मान भारत योजना के मिशनरी प्रचारक बन जाइए वर्ना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस योजना को भी मसीही योजना बताकर बेच लेने वाले आपसे अधिक शातिर भी हैं और मेहनती भी। जब मिशनरी अस्पताल किसी को बीमारी से चंगा कराती है तो अंत में एक प्रार्थना करने को कहती है जिसकी चंद पंक्तियाँ है: –
“प्रिय भाई ! आपने यीशु मसीह के द्वारा चंगाई को प्राप्त किया है, उसके परामर्श को ग्रहण करें, जो कहता है:- अब पाप न करना कहीं इससे भी बुरी कोई बात तुझ पर आ पड़े।”
और जाहिर है जिस पाप को अब और न करने की मनाही है वो पाप चंगा होने के बाद भी उसका अपने पुराने धर्म पर चलना है। सोचना हमें और आपको है…
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