क्या कन्यादान सिर्फ खैरात है? क्यों होता है कन्यादान और क्या यह स्त्री का अपमान है? जानिए हिन्दू विवाह संस्कार में कन्यादान का सही अर्थ, उसका सांस्कृतिक और वैदिक महत्व। पढ़ें वरदान बनाम कन्यादान की सच्ची व्याख्या, ब्रह्म विवाह का रहस्य और उन कुतर्कों का उत्तर जो हिन्दू परम्पराओं को गलत साबित करते हैं।
विगत ९० वर्षों में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति बढ़ जाने से भारतीय संस्कृति को बहुत क्षति पहुंची है। अली मौला अल्लाह को ईश्वर के समतुल्य दिखा कर छद्म धर्मनिरपेक्षता ने हमारी मूल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को पंगु बना...
संत रविदास निम्न लेख प्रतिज्ञ @RamaInExile द्वारा लिखित है। संत रविदास
संत शिरोमणि वैष्णवाचार्य संत रविदास जी रामानंदी संप्रदाय के एक महान आचार्य थे। श्री आद्य गुरु रामानंदाचार्य द्वारा दीक्षित संत रविदास तथाकथित निम्न जाति से थे। उनसे संबंधित साहित्यिक इतिहास और...
धर्मराज युधिष्ठिर को जुआरी कहना गलत है ।
धर्मराज युधिष्ठिर ने जीवन में कितनी बार द्यूत खेला?“व्यसनी” कहलाने के लिये कितनी बार खेलना पड़ता है?
द्यूतविद्या को जुआ कहना भी गलत है ।
धर्मराज युधिष्ठिर को ऋषि से द्यूतविद्या क्यों सीखनी पड़ी?ऋषि...
अष्टाध्यायी (१⋅२⋅३४) का कथन है कि “जप,न्यूङ्ख तथा साम के सिवा यज्ञकर्म में एकश्रुति का पाठ किया जा सकता है” । किसी भी वेदमन्त्र में जब दीर्घ “ॐ” (वा ह्रस्व “उ” अथवा “ओ”) को जोड़ना पड़े तो उस “ॐ”...
मेधा और झुण्ड
“जो धर्म की रक्षा करता है,धर्म उसकी रक्षा करता है ।”
धर्म का अर्थ है वैदिक यज्ञ,अर्थात् वैदिक कर्म का काण्ड । धर्म के दस लक्षण हैं — धृति क्षमा दम अस्तेय शौच इन्द्रियनिग्रह धी विद्या सत्य अक्रोध...
कृष्णपक्ष!उसपर अष्टमी!वह भी दक्षिणायन वाली!केवल पूर्णावतार ही इसे झेल सकते हैं,और इसे शुभ बना सकते हैं!
एक महायुग में श्रीविष्णु के दस अवतार होते हैं जिनमें केवल तीन ही पूर्णावतार हैं । उन तीनों में से केवल कृष्णावतार ही दो...
जैसा कि युधिष्ठिर जी आदि पर विवाद देखने को मिलता है तो हमें महाभारत में ही देखना चाहिए कि युधिष्ठिर आदि पाण्डव स्वयं से भी शक्तिशाली या धर्मपुंज थे अथवा नवयुगी दुष्प्रचार अनुसार मात्र श्रीकृष्ण की दया पर ही...
चन्द्रप्रभं पंकजसन्निषण्णं
पाशांकुशाभीतिवरं दधानम्।
मुक्ताविभूषांचितसर्वगात्रं
ध्यायेत् प्रसन्नं वरुणं विभूत्यै।
जिनके शरीर की कांति चंद्रमा के समान है, जो पंकज पर आसीन हैं, जो अपने हाथों में पाश, अंकुश, अभय तथा वरमुद्रा धारण किए हुए हैं। जिनका समस्त शरीर मोतियों के आभूषणों से भूषित...
चातुर्मास्य-व्रतविधान
लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’
मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या
श्रीवृन्दावन धाम
स्वस्थशरीर के साथ ही मन, बुद्धि, चित्त और अहङ्कारादि की परिशुद्धि के लिये शास्त्रों ने चातुर्मास्य व्रत का विधान किया है कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि यह व्रत संन्यासियों के लिये...