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Friday, December 12, 2025
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Hinduism

आयुर्वेद – आयु का वेद – सम्पूर्ण रोगमुक्तपद्धति

लेखक:- आचार्य वासुदेव मिश्र वेद विज्ञाता यत्रौषधीः समम्मत राजानः समिताविव । विप्रः स उच्यते भिषग् रक्षोहामीवचातनः ॥ ऋग्वेदः १०-९७-६ ॥ राजा जिसप्रकार सङ्ग्राममें अपने सैनिकोंके साथ विराजते हैं, उसीप्रकार...

“गावो जगन्मातरः” – आचार्य गंगाधर पाठक | डाउनलोड करें

'गावो जगन्मातरः' लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’ मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या मार्गदर्शक:-  श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर   'गावो जगन्मातरः' - ग्रन्थ परिचय वेदादिशास्त्रों में गोमाता की महिमा का सर्वाधिक वर्णन किया...

“श्रीसुरभिस्तोत्रावलिः” – आचार्य गङ्गाधर पाठक | डाउनलोड करें

श्रीसुरभिस्तोत्रावलिः लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’ मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या श्रीवृन्दावन धाम मार्गदर्शक:-  श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर 'श्रीसुरभिस्तोत्रावलिः' - ग्रन्थ परिचय वेदादिशास्त्रों में गोमाताकी महिमाका सर्वाधिक वर्णन किया गया है ।...

“श्रीसुरभियागपद्धति” – आचार्य गंगाधर पाठक | डाउनलोड करें

'श्रीसुरभियागपद्धति:' लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’ मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या मार्गदर्शक:-  श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर   'श्रीसुरभियागपद्धति:' - ग्रन्थ परिचय वेदादिशास्त्रों में गोमाताकी महिमाका सर्वाधिक वर्णन किया गया है । गोमाता...

हिन्दू धर्म में विदेश यात्रा : इतिहास और शास्त्र

सनातन धर्म के सभी शास्त्रों में भारतभूमि को साक्षात देवभूमि माना गया है, जहाँ ईश्वर के अवतार हुए, असंख्य ऋषि मुनि, तपस्वी हुए। समस्त...

महामारी जनित उपसर्गों का शास्त्रोक्त विवरण एवं शमन

॥ नमः प्रकृत्यै ।। लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’ मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या मार्गदर्शक:-  श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर   शिवदूति महाकालि भैरवि प्रलयेश्वरि । रक्ष रक्ष जगन्मातर्मा मां स्पृशतु कोपतः...

शास्त्रानुसार व्रतोपवासादि में सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्ग ही ग्राह्य

लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’ (मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या) साङ्गोपाङ्गाय वेदाय ज्योतिषां ज्योतिषे नमः । सूर्याय सूर्यसिद्धान्तज्योतिर्विद्भ्यो  नमो नमः ।। व्रतोत्सवादि सम्पादनार्थ एवं यज्ञोपनयनादि धार्मिककृत्यों के लिये सम्यक् कालपरिज्ञानार्थ...

सूर्यसिद्धान्त सार्वकालिक और सार्वभौमिक है

विक्रमादित्य के नवरत्न वराहमिहिर की पञ्चसिद्वान्तिका−१⁄३१ में सूर्यसिद्धान्त को “सौर” सिद्धान्त की संज्ञा दी गयी तथा पञ्चसिद्वान्तिका−१⁄४२ में इसे “सावित्र” सिद्धान्त कहा गया। अतः...

पश्चिमी प्रचार तन्त्र की पिपासा और हिन्दू जागरूकता

भारत के वास्तविक चरित्र और स्वरूप को ईसाई जनता तक या पश्चिमी लोक तक न पहुँचने देने में चर्च नियंत्रित मीडिया का बहुत बड़ा...

खतरनाक ईसाई चरित्र पर श्रीगुरुजी गोलवलकर के विचार

"जहाँ तक ईसाइयों का सम्बन्ध है, ऊपरी तौर से देखने वाले को तो वे नितान्त निरूपद्रवी ही नहीं वरन् मानवता के लिए प्रेम एवं...

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