लेखक:- आचार्य वासुदेव मिश्र
वेद विज्ञाता
यत्रौषधीः समम्मत राजानः समिताविव ।
विप्रः स उच्यते भिषग् रक्षोहामीवचातनः ॥
ऋग्वेदः १०-९७-६ ॥
राजा जिसप्रकार सङ्ग्राममें अपने सैनिकोंके साथ विराजते हैं, उसीप्रकार शल्यादि अष्टतन्त्रज्ञ नाडीविज्ञान विशारद जिस विद्वानपुरुष नाना प्रकारके औषधीगणेंको एकत्रकर उनके साथ प्रतिष्ठित होता है,...
'गावो जगन्मातरः'
लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’
मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या
मार्गदर्शक:- श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर
'गावो जगन्मातरः' - ग्रन्थ परिचय
वेदादिशास्त्रों में गोमाता की महिमा का सर्वाधिक वर्णन किया गया है । गोमाता सम्पूर्ण देव, ऋषि और पितरों की आश्रयभूता हैं । इनके विग्रह...
श्रीसुरभिस्तोत्रावलिः
लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’
मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या
श्रीवृन्दावन धाम
मार्गदर्शक:- श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर
'श्रीसुरभिस्तोत्रावलिः' - ग्रन्थ परिचय
वेदादिशास्त्रों में गोमाताकी महिमाका सर्वाधिक वर्णन किया गया है । गोमाता सम्पूर्ण देव, ऋषि और पितरोंकी आश्रयभूता हैं । इनके विग्रहमें तैंतीसकोट देवगण निवास करते...
'श्रीसुरभियागपद्धति:'
लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’
मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या
मार्गदर्शक:- श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर
'श्रीसुरभियागपद्धति:' - ग्रन्थ परिचय
वेदादिशास्त्रों में गोमाताकी महिमाका सर्वाधिक वर्णन किया गया है । गोमाता सम्पूर्ण देव, ऋषि और पितरोंकी आश्रयभूता हैं । इनके विग्रहमें तैंतीसकोट देवगण निवास करते हैं।...
सनातन धर्म के सभी शास्त्रों में भारतभूमि को साक्षात देवभूमि माना गया है, जहाँ ईश्वर के अवतार हुए, असंख्य ऋषि मुनि, तपस्वी हुए। समस्त शास्त्र जहाँ प्रकट हुए। इस भारतभूमि पर जन्म अनेक पुण्यों के फलस्वरूप कहा गया है...
॥ नमः प्रकृत्यै ।।
लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’
मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या
मार्गदर्शक:- श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर
शिवदूति महाकालि भैरवि प्रलयेश्वरि ।
रक्ष रक्ष जगन्मातर्मा मां स्पृशतु कोपतः ॥
वेदादिशास्त्रों में आधिभौतिक आधिदैविक आध्यात्मिक अथवा भौम दिव्य आन्तरिक्ष तापों एवं...
लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’
(मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या)
साङ्गोपाङ्गाय वेदाय ज्योतिषां ज्योतिषे नमः ।
सूर्याय सूर्यसिद्धान्तज्योतिर्विद्भ्यो नमो नमः ।।
व्रतोत्सवादि सम्पादनार्थ एवं यज्ञोपनयनादि धार्मिककृत्यों के लिये सम्यक् कालपरिज्ञानार्थ तिथि-वार-नक्षत्र-योग-करणात्मक विशुद्ध आर्षपञ्चाङ्ग की आवश्यकता होती है। परन्तु विविध भारतीय पञ्चाङ्गों में भी व्रतोपवासादि के...
विक्रमादित्य के नवरत्न वराहमिहिर की पञ्चसिद्वान्तिका−१⁄३१ में सूर्यसिद्धान्त को “सौर” सिद्धान्त की संज्ञा दी गयी तथा पञ्चसिद्वान्तिका−१⁄४२ में इसे “सावित्र” सिद्धान्त कहा गया। अतः वराहमिहिर के अनुसार गायत्री मन्त्र के वैदिक देवता सविता ही सूर्यसिद्धान्त के प्रतिपादक हैं, तथा...
भारत के वास्तविक चरित्र और स्वरूप को ईसाई जनता तक या पश्चिमी लोक तक न पहुँचने देने में चर्च नियंत्रित मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी तक यह तन्त्र पूर्ण सफल होने के कारण अत्यन्त...
"जहाँ तक ईसाइयों का सम्बन्ध है, ऊपरी तौर से देखने वाले को तो वे नितान्त निरूपद्रवी ही नहीं वरन् मानवता के लिए प्रेम एवं सहानुभूति के मूर्तिमान स्वरूप प्रतीत होते है। उनकी वक्तृतायें 'सेवा' एवं 'मानवोद्धार' जैसे शब्दों से...