फेमिनिस्टों का कहना है कि चूँकि अब महिलाएँ पैसे कमाने में सक्षम हो गयी हैं, उन्हें पुरुषों से कम ना समझा जाए और यह उनकी परिभाषा है Gender Equality की|

लेकिन वोह लोग कुछ बातें या तो भूल रहे हैं या भूले ही रहना चाहते हैं| सबसे पहली बात, केवल मात्र पैसे कमाना और पैसे कमाके परिवार पालना – इन दोनों में ज़मीन आसमान का फर्क है |

जब आप का ध्यान सिर्फ पैसे कमाने पर होता है तो आप सिर्फ वही करते हो, कुछ काम कर लिया जिससे थोड़े बहुत पैसे मिल गए और उसको लाली-लिपस्टिक में उड़ा दिया, लेकिन जब आप एक परिवार पालने के लिए पैसे कमाते हो तो आप पर उस परिवार के सभी सदस्यों की सारी मनोकामनों एवं अभिलाषाओं का भार होता है |

आप सिर्फ उनके रहने खाने का इंतज़ाम नहीं करते बल्कि उनकी हर ज़रुरत को पूरा करते हो | केवल यही नहीं, इस पहाड़ जैसे लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आप बहुधा वो काम करते हो जो आपकी पसंद का नहीं होता मगर इतने पैसे देता है जिससे की आपकी और आप के परिवार की ज़रूरतें पूरी हो सकें |

आप कार्यस्थल पर प्रायः अपमानित होकर के खून का घूँट भी पीते हो क्यूंकि काम और काम से आने वाला पैसा अनिवार्य है | और आप इस बात का भी ध्यान रखते हो कि कल को यदि कोई ऊंच-नीच हो जाए और पैसा आना बंद हो जाए, तब भी अल्प समय तक घर चलता रहे, जब तक कि आय के अन्य स्त्रोत का प्रबंध नहीं हो जाता |

संक्षेप में आप अपने स्वयं के अस्तित्व, महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं इत्यादि, इन सब का गला घोट कर, अपने आप को एक परिवार के, जिसमे आपके बूढ़े माँ-बाप, पत्नी, बच्चे होते हैं, उनके भरण पोषण में न्योछावर कर देते हो और यह काम आप निरंतर पीढ़ी दर पीढ़ी करते रहते हो| कार्यस्थल पर कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों ना हो, आप काम नहीं छोड़ सकते क्यूंकि आपको एक पूरा परीवार पालना है ना केवल अपने लिए पैसा कमाना है |

और आपको यह सब करने के लिए श्रेय तो दूर, यह ताना तक कसा जाता है कि – नया क्या कर लिया तुमने, सारे तो यही करते हैं और तुमसे बेहतर करते हैं, यह तो तुम्हारा कर्त्तव्य है |

अब ज़रा इतिहास पर ध्यान दीजिये और comments में बताइये की आदिकाल से कौन परिवार चलाता आ रहा है, कुर्बानियाँ देता आ रहा है? महिला या पुरुष?

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