मेरी विधानसभा सीट पर राजस्थान के एक 28 वर्षीय उभरते हुए प्रतिभावान युवा जाट छात्र नेता मुकेश भाकर कांग्रेस की टिकिट पर प्रत्याशी है|मुकेश एक सामान्य किसान सैनिक परिवार से आते हैं| मुकेश के दादाजी और उनके 3 अन्य भाई यानी कुल 4 भाई भारतीय सेना में रहे हैं और 1962 का युद्ध लड़े हैं| मुकेश के पिताजी सैनिक रहे है और कारगिल युद्ध लड़े हैं|मुकेश ने राजस्थान विश्वविद्यालय से अध्यक्ष का चुनाव लड़ा किन्तु चुनाव हार गए| राजस्थान विश्वविद्यालय को सूबे की मिनी विधानसभा कहा जाता है| किन्तु अगले साल ही मुकेश ने अपने दम पे राजस्थान विश्वविद्यालय में अपने कैंडिडेट को छात्र संघ अध्यक्ष पद का चुनाव जीतवा दिया|

मुकेश राजस्थान एन.एस.यू.आई. के प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं| यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव रहे हैं| वर्तमान में यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं| देश के अनेक राज्यों में कांग्रेस के प्रभारी भी बन के मुकेश ने अपनी प्रतिभा का लोहा राष्ट्रीय स्तर पर मनवाया है|मुकेश नागौर जिले के और सूबे के सबसे कद्दावर जाट किसान नेता हनुमान बेनीवाल के करीबी भी माने जाते हैं|

कहानी में ट्विस्ट जब आता है, जब मेरी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे युवा मुकेश के सामने हनुमान बेनीवाल अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आर.एल.पी.) से एक बेहद शक्तिशाली जाट प्रत्याशी मैदान में उतार देते हैं| राजस्थान के पूर्व कृषिमंत्री जी के पुत्र को….

कहानी में दूसरा ट्वीस्ट तब आता है जब आर.एल.पी. से सचिन पायलट, अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे सिंधिया और राजेंद्र सिंह राठौड़ के सामने एक भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतारा जाता है!!

जबकि ….

आर.एल.पी. की स्थापना जिन मुद्दों पर हुई है उनमें मुख्य मुद्दा पायलट गहलोत वसुंधरा राठौड़ को चुनाव में हरवा के घर बैठाना था!!

यहां तक कि हनुमान बेनीवाल जिस खींवसर (नागौर) से आते है और विधायक है उसी खींवसर के जागीरदार गजेंद्र सिंह जी लोहावट (जोधपुर) से भाजपा के 2 वार से विधायक व वर्तमान मंत्री हैं| गजेंद्र सिंह जी भी हनुमान बेनिवाल के चिर प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं| किन्तु गजेंद्र सिंह जी के सामने भी आर.एल.पी. ने अपना प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं उतारा है|

अपने ही गढ़ नागौर जिले की 10 में से 4 सीटों पे आर.एल.पी. ने अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं उतारे हैं| पश्चिमी राजस्थान सहित सम्पूर्ण राजस्थान की राजनीति की धुरी जिला नागौर और नागौर की 10 बड़ी विधानसभा सीटों के इर्दगिर्द घूमती है|आर.एल.पी. ने अपने अधिकांशत प्रत्याशी अपने ही समाज के उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में उतारे हैं|

तो क्या ये समझा जाए कि ….

आर.एल.पी. का मुख्य उद्देश्य/टारगेट गहलोत वसुंधरा पायलट राठौड़ खींवसर जी नहीं है/थे, बल्कि अपने ही समाज के उभरते हुए युवा चेहरे या कद्दावर नेता थे/है!! ताकि एक जाति विशेष की राजनीति में आर.एल.पी. चीफ को भविष्य में कोई दिक्कत ना हो और वो किसानों के नेता के तौर पे सूबे में एकछत्र राज कर सकें|

क्या समाज की हमदर्दी के सहारे ही सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना इनका एकमात्र लक्ष्य है?

माफ कीजियेगा किन्तु स्तिथि बड़ी विकट है…

सवालिया निशान तो लगेंगे ही !!

 – श्री रितेश प्रज्ञांश, लेखक राजस्थान की राजनीति के गहन जानकार हैं

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