0.8 C
Munich
Saturday, December 13, 2025

हिन्दूराष्ट्र का स्वर्णिम संकल्प

Must read

भारत केवल हिंदुओं का, केवल हिंदुओं के लिए और केवल हिंदुओं के द्वारा है यह हमारा अटल विचार है। और यह हमारे हिन्दूराष्ट्र की संकल्पना भी है। जब यह विचार हम व्यक्त करते हैं तो बहुत से हिंदू भी सदियों से पैठी हुई भीरुता के वशीभूत होकर इस संकल्प को हास्यास्पद कह बैठते हैं। वे यह कहने में भी हिचकिचाने लगते हैं कि भारत केवल हिंदुओं का है।

जब मैं हिन्दू राष्ट्र की बात करता हूँ तो निश्चित तौर पर मैं केवल इस भूखण्ड की बात नहीं करता। बल्कि अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, भारत, म्यांमार से लेकर लाओस, थाईलैंड, कम्बोडिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया तक का नक्शा मेरे मस्तिष्क में उभर कर आ जाता है और महान मौर्य, गुप्त, चालुक्य, राष्ट्रकूट, चोल से लेकर चम्पा और ख्मेर साम्राज्य तक मुझे याद आ जाते हैं जिनका हम नाम भी भुला चुके हैं। पूज्य श्री गुरूजी गोलवलकर ने हिन्दूराष्ट्र को “पृथिव्यैसमुद्रपर्यन्ताया एकराट्” घोषित किया। 

स्वामी विवेकानन्द की पुस्तक
“हे हिन्दूराष्ट्र ! उत्तिष्ठत ! जाग्रत !”

डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

मेरे हिन्दूराष्ट्र की संकल्पना यह नहीं कहती कि इस विशाल भूभाग को मिलाकर एक शासक उसपर थोपा जाए। बल्कि हिन्दूराष्ट्र वह है जिसमें यह पूरा भूभाग हिन्दू शासनों के संघ द्वारा संचालित होगा और जहाँ केवल हिन्दू प्रथम नागरिक होंगे। वहाँ विदेशी आक्रमणकारी संस्कृति के चिन्ह भी शेष न होंगे। घड़ों के सदृश थनों वाली गायें काबुल से लेकर कानपुर और कोहिमा से लेकर कुआलालंपुर तक निर्भय होकर विचरण करेंगी। जहाँ हिन्दू स्वराज्य से अर्थात स्वयं से संचालित होंगे परकीय विदेशी शासकों और मलेच्छों द्वारा नहीं। जहाँ हिन्दू अपनी परंपराओं और स्वधर्म का निर्बाध और स्वतंत्र होकर पालन कर सकेंगे और गैर धार्मिक संस्थाएं उनके मन्दिरों पर अधिकार नहीं रखेंगी। इस हिन्दूराष्ट्र का एक ध्वज होगा भगवा ध्वज जिसपर प्रत्येक राज्य गरुड़, व्याघ्र, सिंह, कलश, वराह, त्रिशूल, सूर्य जैसे चिन्ह अंकित करेगा।

देश तो बनते बिगड़ते रहते हैं। पर धर्म ही होता है जो सनातन है। धर्म के बिना इस भूमि का क्या मूल्य है। धर्म ही है जिससे एक भूमि भारत कहलाती है तो दूसरी पाकिस्तान। एक धरा काशी कहलाकर हृदय में पवित्रता का संचार करती है तो दूसरी कराची कहलाकर हृदय को भयभीत, विकल और अशांत बना देती है। धर्म ही है जो वस्तु वस्तु भूमि भूमि में अंतर कर देता है।

आज अधिकांश हिंदूवादी भी हिन्दूराष्ट्र के इस पावन स्वप्न को असंभव मानते हैं। पर मैं कैसे इसे असंभव मानूँ जब हमारा वेद ही हमारा जीवनोद्देश्य “कृण्वन्तो विश्वमार्यम” बताता है। सारे विश्व को आर्य बनाओ। हम ये क्यों भुला बैठे हैं कि गंगा तट से कौण्डिन्य नाम का एक ब्राह्मण जब दो हज़ार साल पहले कम्बोडिया पहुंचा तो फुनान हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करदी और “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” की पताका फहरा दी। हम ऐसे भगीरथ की संतान हैं जिनकी चार चार पीढ़ियों ने पितरों की तृप्ति हेतु हज़ारों वर्ष तपस्या की थी। हम ऐसे विश्वामित्र की संतान हैं जिन्होंने ब्रह्मर्षि बनने हेतु बार बार हज़ारों वर्ष तक भयंकर तप किया था कि उनके कपाल से धुंआ उठने लगा था। ऐसे चाणक्य की संतान जिन्होंने एक गरीब लड़के को उठाकर महान नंद साम्राज्य को उखाड़कर सम्राट बना डाला था। विश्वामित्र, भगीरथ और चाणक्य की सन्तानों को क्यों हिन्दूराष्ट्र का संकल्प असंभव और बोझ लगने लगा है। क्यों यह कहते हुए उनके हृदय स्तंभित हो जाते हैं कि, “भारत केवल हिंदुओं का है।”

हिन्दूराष्ट्र का स्वप्न कोई छोटा स्वप्न नहीं है। यह वह स्वप्न है जिसके लिए गोडसे की आत्मा मुक्ति का लोभ छोड़कर भारत की भूमि में इसलिए विचरण कर रही है क्योंकि सिंधु नदी के आर पार भगवा फहरने पर ही उनका अस्थि विसर्जन होगा। 700 वर्ष से मजहबियों ने “गज़वा ए हिन्द” और “उम्मा” का सपना नहीं छोड़ा और आज भी उस पर दृढ़ हैं। पर क्यों ऋषियों की सन्तानों को “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” तो क्या “अखण्ड भारत हिन्दूराष्ट्र” का सपना भी असंभव और बोझ लगने लगा है। वहीं मजहबी केवल एक सपने के बल पर 52 से ज्यादा देशों में निष्कंटक राज्य चलाते हैं।

जो कौम बड़े सपने देखती है वही विजय पाती है। जो अपने इतिहास को भुला देता है इतिहास उसे भुला देता है। यदि हिन्दूराष्ट्र का विचार एक घर में भी जीवित रहेगा तो आज नहीं तो कल, 100 साल बाद, 200 साल बाद हिन्दूराष्ट्र बनकर रहेगा। समां बदलने में देर नहीं लगती और अखण्ड भारत हिन्दूराष्ट्र बनाने के लिए केवल एक चक्रवर्ती की दरकार है जो समय कभी भी आ सकता है। बस हमें ये सपना बचाकर रखना है, जगाकर रखना है, दिल में रखना है और दिलों में जगाना है।

युधिष्ठिर – सार्वभौम दिग्विजयी हिन्दूराष्ट्र निर्माता सम्राट

6 दिसम्बर 1992, अयोध्या, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक निहितार्थ

दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ने वाली अद्भुत परंपरा: श्राद्ध

ऐसा हो अयोध्या में श्री राम मन्दिर का भव्य नवनिर्माण…

 

- Advertisement -spot_img

More articles

3 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest article