श्री राम इस देश के रग रग में बसा है। कण कण में समाया हुआ है। हर हृदय में राम है। श्वास श्वास में राम का वास है। रोम रोम में राम है भारत भूमि पर। रामलला हर घर के आंगन में खेलता है आज भी। कहाँ कहाँ परदा डालोगे? कब तक सुनवाई टालोगे? राम त्रेता में प्रकट हुए थे। राम आज भी प्रकट हो रहे हैं। राम आज भी सर्वव्यापक हैं। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का टाइटल सूट उच्चतम न्यायालय में उलझा हुआ है किंतु झारखंड प्रदेश के खूंटी जिले के भंडरा पंचायत के जिलिंगा गाँव में शुक्रवार, 4 जनवरी को श्री राम भूमि के अंदर से प्रकट हुए। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का विग्रह सोमा टूटी नाम के ग्रामीण व्यक्ति को तब मिला जब वह गाँव में आयोजित होने वाले इंद मेले की तैयारी में लिपाई पुताई के लिए मिट्टी खोद रहा था। मिट्टी की खुदाई करते हुए उसकी कुदाल किसी कठोर वस्तु से टकराई। उसने मिट्टी हटाकर देखा तो श्रीराम, लक्षमण और सीता की मूर्तियाँ थी। साथ में एक बड़ा और एक छोटे आकार का शंख, एक धूपदानी, एक किसी धातु का बना बैल, दो छोटे गोलाकार पत्थर मिले हैं जो शालिग्राम जैसे प्रतीत होते हैं। शालिग्राम पत्थर को साक्षात विष्णुरूप मानकर सदियों से पूजा होता रहा है भारत में।

ग्राम प्रधान झिरगा मुंडा ने बताया कि लगभग पाँच पीढ़ी पहले जिलिंगा गाँव के राजा महेंद्र नाथ ठाकुर थे। प्रधान ने संभावना व्यक्त किया कि ये मूर्तियाँ उन्हीं राजा के मंदिर के होंगे। ग्राम प्रधान ने बताया कि मूर्तियों के साथ वहाँ कुछ ईंट भी मिले हैं। लगता है कि राजा ने यहाँ मंदिर बनवाया था। मूर्ति का पता चलते ही सोमा टूटी ने गाँव के सभी लोगों को बताया। मूर्तियों के दर्शन को भीड़ उमड़ पड़ी। सबको जब मूर्ति के प्राचीन होने का पता चल गया तो ग्राम प्रधान झिरगा मुंडा ने तत्काल ग्रामीणों की एक बैठक बुलावाया। जिलिंगा ग्रामसभा की बैठक में इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई। ग्रामसभा ने पत्रकारों को बुलाने का निर्णय लिया जिससे जानकारी सबको मिल सके। ग्रामसभा ने मूर्तियों को यथास्थान बांस से घेरने का निर्णय लिया। तत्काल मूर्तियों को झाड़ियों के बीच ही बांस का घेरा बनाकर सुरक्षित कर दिया गया है। गाँव में निर्धनता होने के कारण धन की समस्या आड़े आ रही है। गांव के लोग वहाँ पुनः मंदिर बनाना चाहते हैं। निर्धन सुदामा को कृष्ण मिल गए थे और झारखंड के निर्धन जिलिंगा वासियों को श्रीराम मिल गए हैं।

झारखंड में खुदाई में श्री राम लक्ष्मण सीता की प्राचीन मूर्तियाँ मिलीं
खुदाई में श्री राम लक्ष्मण सीता की प्राचीन मूर्तियाँ मिलीं

जिलिंगा, झारखंड में प्राप्त मूर्तियों के संदर्भ में दिल्ली इंस्टीच्यूट ऑफ हेरिटेज मैनेजमेंट एंड रिसर्च में कला इतिहास के प्रोफेसर डॉ आनंद वर्द्धन इन मूर्तियों को अठारहवीं सदी का मानते हैं। डॉ आनंद वर्द्धन जो म्यूजियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं उनका मानना है कि अयोध्या से लेकर बंगाल तक सम्पूर्ण क्षेत्र में अठारहवीं सदी में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के विग्रह को राज्य का शासक मानकर उनके प्रतिनिधि रूप में राजा और जमींदार राज्य संचालन किया करते थे। चूँकि श्री राम मनुष्य रूप में अवतरित हुए थे इसीलिये उनका मंदिर उस समय न बनाकर उनका बाड़ी अर्थात घर बनाने की परम्परा थी जिसे ठाकुरबाड़ी कहा जाता था। ईसमें बीच में सीता की मूर्ति होती थी। राम राजा के रूप में विराजमान होते थे इसीलिये राम दरबार स्थापित किया जाता था। चूँकि राम शिव के उपासक थे इसीलिये वृषेश्वर नंदी के साथ शिव भी स्थापित किये जाते थे। इसीलिये वृष की प्रतिमा वहाँ भी मिली है। श्रीराम विष्णु के प्रतिरूप माने जाते हैं इसीलिए वहाँ शालिग्राम भी सम्मानपूर्वक एक उत्तम पात्र में प्रतिष्ठित किया जाता है।

नंदी बैल
खुदाई में प्राप्त हुई नंदी बैल की मूर्ति

डॉ आनंद वर्द्धन जी से जब पूछा गया कि सीता जी की मूर्ति के वक्ष का उभार स्पष्ट नहीं है प्राप्त मूर्ति में तो उन्होंने जानकारी दिया कि मंदिर की मूर्तियों में वक्ष का उभार स्पष्ट उत्कीर्णित किया जाता था किंतु ठाकुरबाड़ी की मूर्तियों के संदर्भ में घर और दरबार वाली संकल्पना होने से उन मूर्तियों को वस्त्र पहनाए जाते थे। इसीलिये इन मूर्तियों में वक्ष का उभार अति सामान्य बनाया जाता था। ठाकुर बाड़ी अर्थात ठाकुर जी का घर। यहाँ मंदिर जैसी पवित्रता का भाव होने के उपरांत भी ठाकुर जी के घर का भाव ही श्रद्धा की परिपाटी में मान्य रहता था। और इस मान्यता का स्पष्ट प्रभाव मूर्ति शिल्प पर भी दृष्टिगोचर होता था। उस क्षेत्र में उपलब्ध अन्न का भोग ठाकुर जी को लगाया जाता था।

यद्यपि जिलिंगा, झारखंड में मिली मूर्तियों में लक्ष्मण जी की मूर्ति का सिर टूटा हुआ है। धनुर्धारी श्रीराम के साथ सीता जी भी विराजमान हैं। ठाकुरबाड़ी मूर्ति शैली की मूर्तियाँ हैं ये। राजा उन दिनों श्री राम को ठाकुर मानकर उनके प्रतिनिधि रूप में राज्य संचालन करता था। श्रीराम का ठाकुरत्व मानने से उस ठाकुर परम्परा का वाहक होने के कारण राजा या जमींदार तब अपने नाम के साथ ठाकुर शब्द का उपयोग टाइटिल के रूप में करते थे। राजा महेंद्र नाथ ठाकुर के नाम में उपयुक्त ठाकुर शब्द उसी ठाकुरबाड़ी परम्परा का द्योतक है। यहाँ ठाकुर शब्द जातिसूचक नहीं है। यह एक प्रशासनिक शब्द है जिसका प्रयोग तत्कालीन जमींदार और राजा अपनी प्रशासकीय क्षमता में किया करते थे।

अभी जिलिंगा, झारखंड में प्राप्त इन मूर्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि मिशनरीज के झारखंड में आने से पूर्व तक वहाँ का आदिवासी समाज श्रीराम को अपना आराध्य मानता था। बनवासी राम ही उनका आदर्श था। राजा के स्थान पर राम को विराजमान करके ही आदिवासी समाज उस क्षेत्र में शासन व्यवस्था का संचालन करता था। मुंडारी क्षेत्र की जनता के रामभक्ति का इतना विलक्षण प्रमाण उनके हिंदू वीर पुंगव होने का जीवंत प्रमाण है। आज तक भी मुंडारी क्षेत्र ने श्रीराम का धनुष अपने प्रमुख शस्त्र के रूप में अपनाया हुआ है। धनुर्विद्या आज भी मुंडारी क्षेत्र में जीवंत है। मुंडारी क्षेत्र में अवतरित भगवान बिरसा मुंडा ने भी धनुष धारण किया हुआ था। यह राजा राम की ठाकुर परम्परा का जीवंत प्रमाण है। ईससे आदिवासियों को हिन्दू समाज से भिन्न मानने वाले मिशनरीज के कपोल कल्पित षड्यंत्रों का मुल्लोछेद स्वतः ही जो जाता है। मुंडारी क्षेत्र के विवाह गीतों में, मंगल गीतों में, धार्मिक गीतों में आज भी राम का वर्णन बार बार आता है।

प्राचीन शंख झारखंड
प्राचीन शंख

राम की इस थाती को प्रमाणित करता हुआ हनुमान जी का जन्म स्थान आंजनधाम वहाँ से पास ही गुमला जिले में स्थित है। वने निवसति नरः इति वानरः का संदर्भ भी शास्त्रों में उपलब्ध है जो सिद्ध करता है कि हनुमान वानर नाम की जनजाति के कुलदीपक थे। यह जाती उस नाम से झारखंड में तब प्रसिद्ध रही थी यह प्रतीत होता है। उसी मुंडारी क्षेत्र में रामरेखा धाम भी स्थित है। साथ ही शिव जी का प्रसिद्ध स्थल टांगीनाथ भी वहाँ से निकट ही है। उसी झारखंड में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ धाम भी है जिसे शास्त्रों में चिताभूमि कहा गया है। तीर्थों का यह भूगोल इस सम्पूर्ण क्षेत्र को एक वैष्णव क्षेत्र घोषित करता है। जहाँ गांव गांव में ठाकुरबाड़ी में राजा राम को प्रशासक के रूप में विराजित करने की परंपरा रही है जिसका अवशेष अभी जिलिंगा में प्राप्त हुआ है। विष्णु और शिव के निर्भेद साथ साथ पूजन का अद्भुत सामंजस्य है इस झारखंड प्रदेश में जहाँ शैव वैष्णव के भेद की कथा मिथ्या सिद्ध हो जाती है। इस भेद को अभेद बनाने वाला समाज सौभाग्य से यहाँ का जनजाति समाज है जहाँ दोनो की प्रतिष्ठा एक साथ दृष्टिगोचर हो रही है।

अभी जिलिंगा गांव, झारखंड में इंद नाम का मेला आयोजित होने वाला है। जिसकी तैयारियों के प्रयास में यह मूर्ति प्राप्त हुई है। इंद मेला एक परिव्राजक मेला है जो जतरा के रूप में मनाया जाता है। जतरा का अर्थ है यात्रा। यह मेला फसलों के आगमन की प्रसन्नता से जुड़ा हुआ है। इस समय सभी लोग एकत्र होकर कुछ निर्धारित स्थलों पर ग्राम देवता की पूजा करते हैं। उनसे फसल सुरक्षा और ग्राम सुरक्षा का आशीर्वाद मांगते हैं। एक स्थान पर पूजन करने के बाद दूसरे मेला स्थान के लिए सभी लोग सामूहिक प्रस्थान करते हैं। यह अत्यंत प्राचीन आदिवासी रीति का मेला है जो भारत के अन्य पर्वों के समान ही है। इस मेला की सम्पूर्ण परिपाटी आदिवासी समाज की हिन्दू रीति का दिग्दर्शन है। ज्ञात हो कि भंडरा ही वह गाँव है जहाँ झारखंड में सबसे पहला देशविरोधी पत्थलगड़ी किया गया था माओवादियों और मिशनरीज के द्वारा ग्रामीणों को उकसाकर। अब श्री राम की मूर्ति का वहाँ मिलना उन विधर्मियों के षड्यंत्रों को धरासाई करता प्रतीत होता है।

– श्री मुरारी शरण शुक्ल, लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राष्ट्रवादी विचारक हैं.

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