मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार गये हुए 15 साल से भी ज्यादा गुजर चुके हैं, पर आज तक मध्यप्रदेश कांग्रेस पर दिग्विजय सिंह राज करते हैं| कहने को तो मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में दिग्विजय सिंह चुनाव प्रचार में बहुत सक्रिय नहीं दिखे| पूरे चुनाव प्रचार में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की अहम भूमिका रही पर फिर भी आप ये जानकर हैरान रह जाएँगे कि मध्यप्रदेश में 230 में से 150 टिकट दिग्विजय सिंह के लोगों को दिए गए थे। कुछ सीधे दिग्विजय के कोटे से दिए गये तो कुछ को कमलनाथ के कोटे से दिलवाए गये। बची हुई सीटों पर सिंधिया के समर्थकों को टिकट मिला था।
क्यों है सिंधिया परिवार से दिग्विजय की पुरानी रंजिश?
दिग्विजय का कमलनाथ को पूरा समर्थन है क्योंकि वो किसी भी हालत में ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोकना चाहते थे। इसका कारण है सिंधिया और दिग्विजय की पुरानी रंजिश। इसकी जड़ें दबी हैं नब्बे के दशक में|तब अभी पिछले दशक जैसे ही कांग्रेस मध्यप्रदेश में खत्म हो चुकी थी तो पार्टी को एकजुट कर के वापसी करवाने का काम किया माधवराव सिंधिया ने और सी.एम. बना दिया गया दिग्विजय सिंह को| जबकि सिंधिया को बोला गया था कि इंतजार करना फोन आएगा, शपथ लेने को तैयार रहो। सिंधिया हेलीकाप्टर तैयार कर के दिल्ली में इंतजार कर रहे थे। लेकिन अर्जुन सिंह माधवराव के नाम पर आपत्ति जता चुके थे। इसलिए एन मौके पर दिग्विजय सिंह की ताजपोशी कर दी गयी|

इसके बाद माधवराव सिंधिया ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी। यहीं पर सिंधिया परिवार और दिग्विजय के बीच एक दीवार बन चुकी थी| पर बात केवल इतनी सी नहीं है। दरअसल दिग्विजय सिंह की रियासत राघोगढ़ ग्वालियर के अधीन आती थी, और ग्वालियर रियासत तो सब जानते ही हैं सिंधिया घराने की रियासत थी| दिग्विजय के पिता बलभद्र सिंह, माधवराव के पिता जीवाजीराव सिंधिया को अन्नदाता कहते थे। दिग्विजय के पिता खुद हिन्दू महासभा की तरफ से विधायक चुने गए थे। पर बेटे दिग्विजय को किसी दूसरी ही राह जाना मंजूर था|
दिग्विजय युवा हुए तो पिता बलभद्र सिंह के हिन्दू महासभा के कद्दावर नेता होते हुए भी उन्होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन की क्योंकि दिग्विजय सिंह को पावर और ज्यादा पावर की इच्छा थी। राजमाता विजयाराजे सिंधिया चाहती थीं कि दिग्विजय जनसंघ जॉइन करें, पर दिग्विजय को अब और सिंधिया परिवार से दब के रहना मंजूर नही था। इसलिए पिता राघोगढ़ नरेश बलभद्र सिंह के सिंधिया परिवार के निष्ठावान होते हुए भी वो राजमाता की इच्छा के विपरीत कांग्रेस में आए। वक़्त का फेर हुआ कि माधवराव की अपनी माँ से अनबन हो गई और वो भी कांग्रेस में आ गए और राजीव गाँधी के दोस्त हो गए।

दिग्विजय के आशीर्वाद से कमलनाथ बने म.प्र. के मुख्यमंत्री
इसलिए दिग्विजय के वरदहस्त के कारण मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने कमलनाथ, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया रेस में कहीं भी कमलनाथ से पीछे नहीं थे| दिग्विजय सिंह ने अपनी राजनितिक कूटनीति से ज्योतिरादित्य को मध्यप्रदेश का उपमुख्यमंत्री भी नहीं बनने दिया जैसे सचिन पायलट को राजस्थान का उपमुख्यमंत्री बनाया गया| आखिर दिग्विजय सिंह गांधी खानदान की तीन पीढ़ियों, इंदिरा, राजीव, सोनिया और राहुल गाँधी के खासमखास व्यक्ति रहे हैं| दिग्विजय सिंह ने ही राहुल गाँधी को राजनीती का ककहरा सिखाया इसलिए राहुल गाँधी भी दिग्गी राजा की बात को हल्के में नहीं लेते|
चुनावी प्रचार से दूर रहते हुए और किसी पद पर न रहते हुए भी मध्यप्रदेश की अदृश्य बागडोर दिग्विजय के हाथों में है, जिसमें कमलनाथ एक मुखौटे की तरह पेश किये गये हैं यह हाल में तब भी साबित हो गया जब मध्यप्रदेश के नवनियुक्त मंत्रिमंडल की कांग्रेस मुख्यालय में बैठक हुई और दिग्विजय कमलनाथ के एकदम पास बैठे हुए मंत्रिमंडल को दिशानिर्देश देते हुए दिखे!! हालाँकि यहाँ ज्योतिरादित्य सिंधिया कहीं नहीं दिखे…
