लाला की छीछी!

सामान्यतया आप कढ़ी चावल का भोजन कर रहे होते हैं, तो कई बार आपके भाई बहिन मित्रों ने हंसी मजाक में उसके रूप की कल्पना किसी मिलती जुलती चीज से करके आपका मन अवश्य बिगाड़ा होगा …
और यहाँ ब्रज में कान्हा के प्रति वृजवासियों का प्रेम अलौकिक है कि यहाँ जन्माष्टमी के दूसरे दिन कदम कदम की दूरी पर लगने वाले भंडारों में कढ़ी चावल का वितरण ‘ नन्दलाला की छीछी’ के नाम से ही किया जाता है।

मंदिरों में नंदोत्सव होते हैं इस दौरान दही में चन्दन हल्दी मिला कर उसका मस्तिष्क पर लेपन भी नन्दलाला की छीछी का नाम देकर ही किया जाता है।

रासलीला में भगवान कृष्ण के जन्म की लीला में ये लाला की छीछी मंच से फैंकी जाती है…….

इन सारी क्रियाओं में छीछी जे नाम पर चेहरे पर हलकी सी शिकन तक नहीं आती वल्कि ब्रज में आये तमाम श्रद्धालू कढ़ी चावल पाकर प्रेम की अनौखी तृप्ति अनुभव करते हैं।

मन्दिर और रासलीला में जिन भक्तों दर्शकों के ऊपर ये दही हल्दी वाली छीछी गिरती है उसके स्पर्श सुख वे भक्त और दर्शक आनंद विभोर हो अपने को धन्य मानते हैं …….

ये है देवकी वासुदेव के जाए जशोदा नन्द के दुलारे कृष्ण कन्हिया के प्रति विलक्षण प्रेम!

नन्द के आनंद भये, जै कन्हिया लाल की!

श्री गिरधारी लाल गोयल, ब्रजमण्डल

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