आगामी संवत् 2078 से श्रीनिम्बार्क परिषद्, जयपुर द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर के सहयोग से राजस्थान का एकमात्र सूर्यसिद्धान्तीय पंचांग ‘श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पंचांग‘ प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है। इस हेतु पंचांग में व्रतपर्वोत्सवों-मुहूर्त्तादि के निर्धारण कार्य के लिए श्रीनिम्बार्क परिषद् एवं केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में ज्योतिष विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर में फाल्गुन शुक्ल षष्ठी, दिनांक 19 मार्च 2021 से फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी, 26 मार्च 2021 तक 8 दिवसीय पंचांग सम्पादन कार्यशाला का आयोजन किया गया।
पंचांग सम्पादन कार्यशाला का आयोजन पंचांग सम्पादन के अनुभवी विशेषज्ञ ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. श्यामदेव मिश्र के निर्देशन में किया गया, जिसमें मुक्त.स्वाध्याय.पीठ के वरिष्ठ आचार्यों, ज्योतिषाचार्य प्रो. सतीशचन्द्र शास्त्री, प्रो. मोहनलाल शर्मा, ज्योतिष विभाग के सहायक आचार्य/ वरिष्ठ अध्यापक/ शोध अध्येता प्रो. विजेन्द्र शर्मा, डॉ. रामेश्वर दयाल शर्मा, डॉ. नीरज त्रिवेदी, डॉ. भोजराज शर्मा, डॉ. अमित तिवारी, श्रीनिम्बार्क परिषद के पं. अमित शर्मा, पं. पुरुषोत्तम शर्मा द्वारा धर्मसिंधु, निर्णय सिन्धु, मुहूर्त्त चिन्तामणि आदि शास्त्रों के आधार पर सूक्ष्म विश्लेषण करते हुए श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पंचांग का सम्पादन कार्य किया किया।

पंचांग सम्पादन के बृहद कार्य हेतु श्रीनिम्बार्क परिषद्, जयपुर एवं आचार्य प्रो. मोहन लाल शर्मा द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर के निदेशक प्रो. अर्कनाथ चौधरी, ज्योतिषाचार्य प्रो. श्री सतीशचन्द्र शास्त्री, तथा विश्सेवविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. श्यामदेव मिश्र के साथ विचार-विमर्श कर पंचांग सम्पादन कार्यशाला की कार्ययोजना निर्धारित की गई थी, जिसमें जयपुर व देश के अनेक विद्वानों ने सम्मिलित होकर राजस्थान के इस एकमात्र सूर्यसिद्धान्तीय पंचांग को प्रमाणिक स्वरूप प्रदान किया। पंचांग निर्माण हेतु जयपुर के अक्षांशों पर सूर्यसिद्धान्तीय गणित साधन आचार्य विनय झा ने किया एवं डॉ. कामेश्वर उपाध्याय, अखिल भारतीय विद्वत्परिषद्, वाराणसी का महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ।
पंचांग के प्रधान सम्पादक आचार्य प्रो. सतीशचन्द्र शास्त्री ने कहा कि, “सुदीर्घकाल से मन में एक अभिलाषा घर किए हुए थी कि विशुद्ध सूर्यसिद्धान्त पर आधारित एक पञ्चाङ्ग का प्रकाशन हो। अतः आज श्रीनिम्बार्क परिषद्, जयपुर द्वारा सूर्यसिद्धान्तीय “श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग” के प्रकाशन के निर्णय एवं केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर द्वारा इसके सम्पादन कार्य में असीम प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। संवत्सर ही प्रजापति है, ‘सम्वत्सर एव प्रजापतिः‘ (शतपथ, १।६।३।५)। काल ही सर्वेश्वर और प्रजापति का भी पिता है। “कालो ह सर्वस्येश्वरो यः पितासीत् प्रजापतेः”(अथर्व० १९.५३.८)। भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं को गीता में अक्षय काल “अहमेवाक्षयः कालः” कहा है। कालरूपी सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के नाम वाला यह पञ्चाङ्ग भगवान् आदित्य की जय का हेतु बन रहा है।”

इस अवसर पर पंचांग के सम्पादक ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. श्यामदेव मिश्र ने कहा कि, “जब इस पंचांग के निर्माण का विचार बना तभी परामर्शकों के द्वारा यह निर्णय लिया गया कि चूंकि उक्त पंचांग का प्रकाशन ‘निम्बार्क-परिषद्’ जैसी सनातन-धर्मध्वजा-संवाहक-संस्था के द्वारा किया जाना है इसलिए ग्रह-गणना का आधार भी सनातन-परम्परा-पोषक सूर्य-सिद्धान्त ही होगा। इसलिए ‘श्री सर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग’ की गणित सूर्यसिद्धान्तीय-गणना को आधार बनाकर की गयी है। वर्तमान में प्रचलित प्रमुख पञ्चाङ्गों में काशी-हिन्दू-विश्वविद्यालय का ‘विश्वपञ्चाङ्गम्’ भी सूर्य-सिद्धान्तीय-पक्ष का पञ्चाङ्ग है। इस पंचांग को जयपुर के अक्षांश पर बनाया गया है। वर्त्तमान समय में प्रकाशित पंचांगों में जो विवाहादि-मुहूर्त्त, ग्रहण-आदि की जानकारी दी जाती है उन सभी महत्त्वपूर्ण विषयों का इस पंचांग में समावेश किया गया है। किन्तु इसकी विशेषता यह है कि इस पंचांग में, सनातन-समाज में प्रसिद्ध सभी व्रत-पर्व-उत्सव-सम्बन्धी काल-निर्णय और विधि-विधान-विषयक-ज्ञान के अतिरिक्त राजस्थानी-संस्कृति से जुड़े व्रत-पर्व-त्यौहारों का भी विशेष-रूप से उल्लेख किया गया है, जिसके कारण यह पंचांग समाज के लिए अत्युपयोगी हो गया है।”
राजस्थान का एकमात्र सूर्यसिद्धान्तीय श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग प्रकाशित
‘श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पंचांग’ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में विमोचित
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