प्रयागराज में आगामी मकर संक्रांति से महाशिवरात्रि तक अर्धकुम्भ का आयोजन हो रहा है जो हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति का एक अद्भुत और महत्वपूर्ण अंग है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुम्भ की तैयारियों में जोरशोर से जुटे हुए हैं। प्रयागराज कुम्भ को पूरे विश्व में पहचान दिलाने की योगी आदित्यनाथ की महती कोशिश ने इसे महाकुंभ बना दिया है। पर इतने बड़े आयोजन में भूल चूक, अड़चनें और कुछ समस्याएं आना स्वाभाविक है। घर परिवार में विवाह के अवसरों पर भी कुछ न कुछ भूलचूक हो ही जाती है फिर कुम्भ तो इतना बड़ा आयोजन है। किसी न किसी का नाराज होना भी स्वाभाविक है।
कुम्भ मेले में जमीन आवंटन को लेकर पुरी शंकराचार्य ने जताई थी नाराजगी
प्रयाग कुम्भ में जमीन आवंटन को लेकर पुरी गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी ने इस विषय में आपत्ति जताई थी कि उन्हें गलत जगह पर व कम जमीन आवंटित हुई है। इसे लेकर अनेक लोग योगी आदित्यनाथ की सरकार पर लगातार हमले कर रहे थे। कुम्भ आयोजन की चक चौबंद तैयारियों के बीच लोगों को योगी सरकार को घेरने का एक मौका मिल गया था। पर पर्दे के पीछे की कहानी क्या है आइये समझते हैं।
सर्वप्रथम तो यह कि जहाँ पुरी शंकराचार्य जी को जमीन आवंटित हुई है वह नाला नहीं मनसइता नदी है। जो कि गंगा में मिलती है। इसके एक तरफ स्थाई आश्रम है और दूसरी तरफ कुंभ आश्रम है। पर फिर भी वहाँ कुछ खुली नाली की वजह से दुर्गंध आदि की समस्या है। अब प्रश्न उठता है कुम्भ की जमीन का वितरण किसने किया? क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बैठकर यह अन्याय का खेल रचा? तो सच ये है कि सभी अखाड़ों व सन्तों को जमीन वितरण अखाड़ा परिषद द्वारा किया गया है जिसके अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि हैं। उक्त गलत आवंटन में अखाड़ा परिषद ने गलती की है जिन्होंने शंकराचार्य पद की गरिमा को उपेक्षित किया है। कुम्भ मेले में अखाड़ा परिषद के आगे किसी की नहीं चलती है, न प्रशासन की न राज्य सरकार की। प्रशासन को मजबूर होकर उन्हीं का निर्णय मानना पड़ता है।
प्रयाग के महंत नरेंद्र गिरि अपनी दबंगई व राजनीतिक स्थिति के लिए मशहूर हैं। वे प्रयाग के प्रसिद्ध लेटे हनुमान मंदिर व बाघम्बरी पीठ के महंत हैं। समाजवादी पार्टी से भी उनकी घनिष्ठता रही है। इन्हीं की अध्यक्षता में सारा कुम्भ जमीन आवंटन हुआ। यदि योगी सरकार इन्हें दरकिनार करती तो भी उनपर लांछन लगता कि सन्तों की बात नहीं मानी जा रही। प्रशासन, व राज्य सरकार अपने क्षेत्रीय मठाधीश के आगे मजबूर है। तो इसमें सीधे तौर पर योगी सरकार की गलती कैसे मानी जा सकती है? प्रत्येक व्यवस्था योगी आदित्यनाथ स्वयं नहीं देखते हैं। जैसे गठित समितियों व संगठनों की व्यवस्था होती है उसी अनुसार काम होता है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का चयन व हटाना भी सरकार के हाथों में नहीं बल्कि शंकराचार्य पीठों व विद्वत परिषद आदि के हाथ में होता है। तो यह पूरा मामला पीठों अखाड़ों की आपसी खींचतान का है न कि योगी सरकार ने जानबूझकर पुरी के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी का निरादर या अपेक्षा किया है जैसा कि कुछ लोगों द्वारा दुष्प्रचार किया गया है।

योगी सरकार ने पुरी शंकराचार्य की शिकायतों का किया निस्तारण
योगी सरकार ने पुरी शंकराचार्य जी द्वारा उठाई गई वाजिब आपत्ति का संज्ञान लिया। व शंकराचार्य महाभाग के शिकायत का निस्तारण प्रयाग कुम्भ प्रशासन ने योगी जी के निर्देश पर कर दिया गया है। उन्हें आवंटित जमीन पर स्वच्छता, नालियां ढंकने व जमीन बढाने के आदेश दिया गया है। सुविधा देने का काम युद्धस्तर पर शुरू हो चुका है। स्वयं घटनाक्रम की जिम्मेदारी लेते हुए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने राज्य सरकार व कुम्भ मेला प्रशासन की ओर से शंकराचार्य जी से क्षमा मांगी है व शंकराचार्य जी के सम्मान, सेवा व सुविधा की प्रतिबद्धता जताई है। इस बारे में उत्तरप्रदेश आदित्यवाहिनी के महामंत्री प्रशांत कुमार मिश्र ने भी बयान जारी करके यह बात दोहराई।
क्या प्रयाग अर्धकुम्भ को कुम्भ कहना गलत है?
यह मुद्दा तो सुलझ गया पर फिर कुछ लोगों द्वारा योगी सरकार को घेरने के लिए अजीबोगरीब मुद्दा बनाया गया कि यह कुम्भ नहीं अर्धकुम्भ है फिर इसे कुम्भ क्यों कहा जा रहा है। जबकि पूर्णकुम्भ और अर्धकुम्भ दोनों को ही कुम्भ कहना उचित है क्योंकि पूर्ण हो या अर्ध, कुम्भ तो कुम्भ ही होता है। जनमानस सदैव कुम्भ को कुम्भ ही कहता है। अर्ध कुम्भ का तात्पर्य सिर्फ इतना होता है कि पूर्ण कुम्भ की अर्ध अवधि में यह आता है। The Analyst ने इसपर शास्त्रीय मत जानने के लिए ऋषिकेश के स्वामी राघवेंद्रदास जी से बात की, उन्होंने कहा, “अर्ध कहना केवल तभी जरुरी होता है जब वह सन्दर्भ विवक्षित हो। अब यदि कोई नाटे कद का व्यक्ति आये तो क्या उसे बौना व्यक्ति कहना अनिवार्य होता है? या व्यक्ति कहना ही पर्याप्त है? यह विवाद व्यर्थ है। पूर्णकुम्भ और अर्धकुम्भ दोनों ही कुम्भ होते हैं।”

महंत योगी आदित्यनाथ कुम्भ के महान पर्व को अति भव्य रूप देने में जुटे हैं। अभूतपूर्व रूप से प्रयागराज का कायाकल्प किया जा रहा है। करीब 70 से भी अधिक देश कुम्भ में सम्मिलित होंगे। भारत का राष्ट्रीय पर्व अंतराष्ट्रीय धमक दिखाएगा। सभी व्यवस्था चाक चौबंद हैं। दुर्लभ अक्षयवट को भी इस बार दर्शन के लिए खोल दिया गया है, ये भी उपलब्धि है वरना वो हमेशा सेना के कब्जे में रहता है। प्रयाग में अभूतपूर्व विकास कार्य कुम्भ के मद्देनजर हुए हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने प्रयागराज के नए बमरौली एयरपोर्ट का उद्घाटन किया था जो शीघ्र ही अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनने जा रहा है। कुछ भूल चूक स्वाभाविक है उसका निराकरण प्रशासन करने का प्रयास कर रहा है। अतः अफवाहों, व्यर्थ के विवादों से बचकर इस कुम्भ को हम भारतीय महाकुंभ बनाएं…