3 C
Munich
Saturday, December 13, 2025

आधुनिक विज्ञान से भी सिद्ध है पितर श्राद्ध की वैज्ञानिकता

Must read

मरने के बाद यह मृतात्मा कहाँ जाती है? इसका विवरण सामवेद के ताण्ड्यमहाब्राह्मण के छान्दोग्य उपनिषद में विस्तार से मिलता है। वहाँ जीव की तीन गति बताई गईं हैं जिसमें से हम चन्द्रलोक गति की बात करेंगे जिसमें पितर का श्राद्ध आवश्यक होता है। हमारे सरे पूर्वज पितर कहलाते हैं। यह सामान्य अनुभूत बात है कि मृतक का स्थूल शरीर कहीं आता जाता नहीं है, प्राण रहित जड़ मृतदेह में कोई गति नहीं होती, और आत्मा तो विभु व्यापक है, व्यापक में भी गति नहीं होती। इसलिए पांच कर्मेन्द्रियों, पांच ज्ञानेन्द्रियों, पांच प्राण, मन और बुद्धि तत्व से बना सूक्ष्म शरीर ही शरीर से निकलकर दूसरे लोकों और जन्मों में जाता है। इन 17 तत्वों में मन ही प्रधान है और वही मन चन्द्रमा की ओर वाहिक शरीर के आकर्षण का कारण है। पर क्यों? विज्ञान का यह नियम है कि सजातीय पदार्थों में आकर्षण होता है। प्रत्येक वस्तु अपने सजातीय घन की ओर जाती है। मिट्टी का ढेला पृथ्वी पर आता है। विज्ञान में प्रत्येक mass का दूसरे mass पर आकर्षण पढ़ाया जाता है। इसी तरह मन चंद्ररूप है, ‘चन्द्रमा मनसो जातः (पुरुष सूक्त)’ इससे मनप्रधान सूक्ष्म शरीर का उसी सजातीय चन्द्रमा की ओर आकर्षण होता है।

अपने सूक्ष्म शरीर में यह अंश आते कैसे हैं? तो इसका उत्तर यह कि जैसे पुष्प पर से गुजरकर वायु पुष्प के कुछ सुगन्धित अंश साथ ले जाती है और सुगंधमय हो जाती है, जैसे लोटे में रखा पानी निकाल लेने पर भी पानी का कुछ अंश लोटे में रह जाता है यानि जो पदार्थ साथ रहते हैं उन्हें अलग भी किया जाए तो एक दूसरे का कुछ अंश उनपर रह जाता है उसी प्रकार जिस सूक्ष्म शरीर ने बहुत काल तक जिस स्थूल शरीर में वास किया वह उसके कुछ अंश को साथ लेकर निकलता है। यहाँ पर लेख छोटा ही रखना है इसलिए बहुत सी गहराई में नहीं जाएंगे।

श्राद्ध का मुख्य सम्बन्ध चन्द्रलोक गति के साथ ही है, क्योंकि श्राद्ध के भोक्ता पितर हैं जो चन्द्रलोक में ही रहते हैं। प्रकृति का यह नियम है कि आवागमन की प्रक्रिया में संसार के प्रत्येक पदार्थ में क्षीणता आती है। आपने सुबह भोजन किया, क्षीणता आई, रात को पुनः भूख लग आई। पौधे में आज पानी डाला और क्षीणता के कारण कल पुनः डालना पड़ा। और गहराई से समझें तो रदरफोर्ड ने एक एटम का एक मॉडल दिया था जिसमें कि इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस के चारों ओर बेहद तीव्र गति से घूमता है, पर उस थ्योरी में एक दोष था कि प्लैंक मैक्सवेल की थ्योरी के अनुसार इलेक्ट्रान के पास आवश्यक रूप से acceleration (आवागमन का कारक) है जिसके कारण वो निरन्तर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन का स्कंदन (यही स्कंदन क्षीणता है) करेगा जिससे अंततः इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस में ही गिर जाएगा, और विस्फोट होगा जो कि स्थायित्व होने के लिए असम्भव है।

श्राद्ध पिंडदान पिण्डदान

हम आप अपनी क्षीणता की पूर्ति में समर्थ हैं किन्तु मृतात्मा जो लोकान्तर में जा रहे हैं, उनके वाहिक सूक्ष्म शरीर में जो क्षीणता आती है, उनकी पूर्ति करने की शक्ति उनमे नहीं होती। उसकी पूर्ति ही हम श्राद्ध द्वारा किया करते हैं। अगर हम श्राद्ध न करें तो क्या होगा? वेद के अनुसार, मन चंद्रमा का और बुद्धि सूर्य के अंश हैं। अतः इन पर चन्द्रमा और सूर्य का आकर्षण हो सकता है, पर वायु पर उनका कोई आकर्षण नहीं हो सकता । यदि सूर्याभिमुख व चंद्राभिमुख उन आत्माओं की गति रुक गई, तो वे उन लोकों में न जाकर वायु में ही भ्रमण करते रहेंगे। वायवीन शरीर प्रेत-पिशाचादि का होता है, अतः वे भी प्रेत-पिशाच योनि में ही माने जाएँगे। इसी कारण सनातन धर्म के अनुयायियों में प्रसिद्ध है कि – “अमुक व्यक्ति का श्राद्ध नहीं हुआ, वह तो वायु मे उड़ता फिरता हैं। “ इसी आपत्ति से, पिता-माता के सूक्ष्म शरीरों को बचाने के लिए वेद पुत्रों को आदेश देते हैं कि – “जिस समय तुम शरीर-विरहित थे, उस समय माता पिता ने ही अपने अंशों से तुम्हारा शरीर बनाया था, आज वे माता-पिता शरीर रहित होते जा रहे हैं, तो तुम्हारा कर्तव्य है कि उनका शरीर बनाओ। इसी वेदाज्ञा के अनुसार चावल आदि के पिण्डों में से सोम (सोम ही चन्द्र है) भाग पहुंचाकर, अनुशय भाग (शरीर) की पुष्टि करना ही गात्र पिण्डों का उद्देश्य है। आधुनिक विज्ञान से भी श्राद्ध पुर्णतः वैज्ञानिक सिद्ध होता है। बस अंतर इसी बात का रह जाता है कि आधुनिक विज्ञान आध्यात्म को नहीं मानता जबकि श्राद्ध वैज्ञानिक के साथ साथ पुर्णतः आध्यात्मिक भी है।

तपस्वी, संन्यासी आदि देवयान मार्ग से जाते हैं, उन्हें सोम द्वारा इस शरीर की पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती, वे तो स्वयं अग्निरूप हैं, उन पर सूर्य के आकर्षण को कोई नहीं रोक सकता, इसीलिए संन्यासियों के गात्र-पिंड नहीं किए जाते।

जिनके यहाँ से पितरों को अर्ध्य-कव्य मिलता है, उनके पितर तृप्त होकर जाते हैं, आशीर्वाद देते हैं। उनका आशीर्वाद कल्याणप्रद होता है। जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितर अतृप्त होकर ‘धिक्कार’ का नि:श्वास छोड़कर जाते हैं। इस तरह संक्षेप में श्राद्ध पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है, इस विषय का बहुत अधिक विस्तार मिलता है, आशा है न जाने समझे श्राद्ध का विरोध करने वाले और श्राद्ध का महत्व समझे बिना बस ढोने वाले कुछ समझने का प्रयास करेंगे। अतः सभी को अपने पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध कर्म करना चाहिए।

यह भी पढिए,

The Science Behind Shraddh

 

पितृपक्ष में क्यों है श्राद्ध का महत्व?

 

आधुनिक विज्ञान की नजर में मटकों से सौ कौरवों का जन्म

कोर्ट के भी पहले से हिन्दू क्यों मानते हैं गंगा-यमुना को जीवित

दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ने वाली अद्भुत परंपरा: श्राद्ध

- Advertisement -spot_img

More articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest article