नम्र निवेदन
– श्रीनिम्बार्क परिषद्

सादर सूचित किया जा रहा है कि आराध्यदेव ठाकुर श्रीगोविन्ददेवजी एवं ठाकुर श्रीसरसबिहारीजी की असीम अनुकम्पा से प्राचीन गणित श्रीसूर्यसिद्धान्त पर आधारित राजस्थान का एकमात्र पञ्चाङ्ग श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग जयपुर से श्रीनिम्बार्क परिषद् के द्वारा इस वर्ष संवत् 2078 से प्रकाशित किया जा रहा है।

विगत कुछ समय से पञ्चाङ्ग निर्माण की विधि को लेकर मतभेद प्रकट हुए हैं तथा भिन्न भिन्न गणना विधि से पञ्चाङ्ग बनने से सामान्य जन में व्रतोपवास एवं पर्वों को लेकर भ्रम उपस्थित हो जाता है। जयपुर में प्राचीन आर्षगणना द्वारा लगभग ढ़ाई शताब्दी से निरन्तर प्रकाशित भारतख्यात सौर पञ्चाङ्ग ऐसे समय में भी धर्म की ध्वजा को थामे हुए था जब नवीन पञ्चाङ्गकर्ताओं की नवीन गणित से प्रत्येक पर्व-त्यौहारों के दो दो दिन पड़ने का क्रम आरम्भ हो गया था। आधुनिक दृक्-गणित के पक्षपातियों ने सूर्यसिद्धान्त को कालबाह्य घोषित कर एकमेव दृक्-गणित आधारित पञ्चाङ्ग को ही सर्वथा ग्राह्य बतलाते हुए समस्त धर्मशास्त्रीय प्रक्रिया का अतिक्रमण कर लिया तब जयपुर से प्रकाशित एकमात्र सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्ग को भी सौर गणना का त्याग करना पड़ा। यह घटना हतप्रभ कर देने वाली थी।

श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग पंचांग पञ्चांग सूर्यसिद्धान्त केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर में श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग का विमोचन करते विद्वद्गण

दृश्यगणित पक्षपातियों का स्वसिद्धान्त के पक्ष में एकमेव कथन यह है कि उनकी गणना से ग्रह दर्शन प्रत्यक्ष होता है। इनके इस कथन पर वह कथा स्मरण हो आती है जब पितामह भीष्म अपने पिता शान्तनु का श्राद्ध कर रहे थे, और उनके पिता का हाथ पिण्डदान लेने को प्रकट हुआ। भीष्म ने पहचान लिया कि ये हाथ पिताश्री का है। परन्तु भीष्म ने पिता के हाथ को छोड़कर कुशाओं पर ही पिण्डदान किया क्योंकि शास्त्र की यही आज्ञा है, “पिण्डो देयः कुशोष्वीति।” पुत्र भीष्म की इस शास्त्रनिष्ठा पर शान्तनु अत्यन्त प्रसन्न हुए।

स्पष्ट है धर्माधर्म का शास्त्राधारित विवेक सूक्ष्म और अदृष्ट है उसी प्रकार ज्योतिष का प्रमाण भी फलादेश होता है, भौतिक ग्रहों की स्थिति नहीं। केवल ग्रहदर्शनार्थ ही दृक्कर्म संस्कार का शास्त्र में आदेश है, तिथ्यादि में नहीं। ग्रहों के उदयास्त, शृङ्ग तथा ग्रहण में ही दृक्कर्मसंस्कार करना चाहिये। हमारे वृद्धजन अविवेकी नहीं थे जो अभी कुछ समय पूर्व तक सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों का प्रयोग करते थे और ना ही आधुनिक पञ्चाङ्गकर्ता इतने मनोनिग्रही हैं कि उनके द्वारा सूर्यसिद्धान्त गणना को भ्रमजाल कहा जाना स्वीकार किया जा सके।

व्रत पर्व धर्मशास्त्रीय कृत्यों के निर्धारण हेतु श्रीसूर्यसिद्धान्तीय गणित ही ग्राह्य है। समस्त शास्त्र इसके प्रमाणों से यत्र तत्र पटा हुआ है। मत्स्यमहापुराण, स्कन्द महापुराण एवं नारद पुराण में भगवान् वेदव्यास, माधवाचार्य विद्यारण्य, ब्रह्मगुप्त, निर्णयसिन्धु एवं सिद्धान्ततत्त्वविवेककार कमलाकर भट्ट, शाकल्य संहिता, काल निर्णय, भास्कराचार्य, वासनाकार, नृसिंह-दैवज्ञ, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, कालार्क, ज्योतिःसिद्धान्त संग्रह, लल्ल, मुंजाल, धर्मसम्राट स्वामीश्री करपात्रीजी महाराज, महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी आदि समस्त शास्त्रों और ज्योतिषदिवाकर आचार्यों ने श्रीसूर्यसिद्धान्तीय गणित की वेद मानकर पूजा की है। इस विषय को जिनका नाम किसी परिचय की अपेक्षा नहीं रखता उन श्रीरामजन्मभूमि शिलापूजन के मुख्याचार्य वेदाद्यनेकविषयाचार्य श्री पण्डित गङ्गाधर पाठक जी ने अपने विस्तृत प्रमाणबहुल लेख में पञ्चाङ्ग में पुष्ट किया है।

Shri Sarveshwar Jayaditya Panchang पञ्चांग सूर्यसिद्धान्त जयपुर

इसी बीच जब जयपुर से प्रकाशित एकमात्र सौर पञ्चाङ्ग भी दृग्गणित से ही प्रकाशित होने लगा तब से शास्त्रनिष्ठों में हृदय में एक टीस बनी हुई थी कि कैसे इस अज्ञान तिमिर का शमन हो। जब श्रीनिम्बार्क परिषद् को ज्ञात हुआ की दरभङ्गा निवासी वेद-वेदाङ्गों एवं सूर्यसिद्धान्त के सूर्योज्ज्योतिज्योतिस्सूर्य मनीषी परमतपस्वी आचार्य श्री विनय झा जी ने शाश्वतकालीन सौरपक्षीय गणना पर अत्यधिक अनुसंधान किया है, तथा उनकी गणना से काशी, दरभङ्गा आदि अनेक स्थानों से पञ्चाङ्ग प्रकाशित होते हैं। आचार्यश्री को यह प्रसङ्ग निवेदित किया तो कृपावशात् उन्होंने अखिल भारतीय विद्वत् परिषद्, काशी के माध्यम से जयपुर के अक्षांशों पर पञ्चाङ्ग हेतु सौरपक्षीय सूक्ष्मगणितसाधन किया।

इस कार्य में अखिल भारतीय विद्वत्परिषद, काशी के महासचिव, सकलशास्त्रविशारद, ज्योतिष के गुह्यतत्त्ववेत्ता आचार्य श्री कामेश्वर उपाध्याय जी की प्रारम्भ से ही प्रेरणा व निरन्तर निर्देशन रहा। उन्होंने पञ्चाङ्ग के धर्मशास्त्रीय-ज्योतिषीय लेखों में इसकी शास्त्रीय प्रामाणिकता सर्वत्र पुष्ट की है। उनकी सारस्वत लेखाओं से यह पञ्चाङ्ग सुशोभित है। आचार्य श्री विनय झा जी द्वारा ग्रह-गणित मिलने पर, पण्डित श्री गोविन्द द्विवेदी जी के निरन्तर सहयोग से अत्यन्त अल्पकाल में पण्डित श्री साकेत झा आदि ने पञ्चाङ्ग को जिस स्वरूप में प्रस्तुत किया है वैसा परिश्रम बिना धर्मनिष्ठा के सम्भव ही नहीं है क्योंकि अनेक बार ऐसी स्थितियाँ आईं कि लगने लगा था कि यह कार्य तो सम्भव ही नहीं हो पायेगा। परन्तु अथक परिश्रम कर इस महनीय कार्य को मूर्त्त स्वरुप प्रदान किया गया।

श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग पंचांग पञ्चांग सूर्यसिद्धान्त केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर
पंचांग सम्पादन कार्यशाला के दौरान पंचांग के सूक्ष्म अवयवों पर विचार करते, दाएं से प्रो. मोहनलाल शर्मा, प्रो. श्यामदेव मिश्र, प्रो. सतीशचन्द्र शास्त्री, प्रो. विजेन्द्र शर्मा, डॉ. अमित तिवारी, डॉ. नीरज त्रिवेदी, एवं डॉ. रामेश्वर शर्मा

पञ्चाङ्ग की गणना भी प्राप्त हो गई, उसका कलेवर भी निर्मित हो गया परन्तु उसके व्रतपर्वोत्सवों-मुहूर्त्तादि का निर्धारण हुए बिना पञ्चाङ्ग का क्या अर्थ? परन्तु निगमागम-धर्मशास्त्रवेत्ता कर्मकाण्डविशारद आचार्य श्री मोहन लाल शर्मा जी ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर के संस्कृति संरक्षण में सदा संलग्न कर्मयोगी निदेशक प्रो. अर्कनाथ चौधरी जी तथा ज्योतिष के अत्यन्त वरिष्ठ विद्वान् जिनकी जिह्वा पर शास्त्र निवास करते हैं, उन सूक्ष्मदृष्टा दैवज्ञ पण्डित श्री सतीशचन्द्र शास्त्री जी से विचार-विमर्श कर इसकी कार्ययोजना निर्धारित की।

व्रतपर्वोत्सवों-मुहूर्त्तादि के निर्धारण कार्य को केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के विद्यासंवर्धन के उपक्रमों में सदैव तत्पर रहने वाले ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीश्यामदेव मिश्र जी के सुयोग्य नेतृत्व में ज्योतिष विभाग के सहायक आचार्य/वरिष्ठ अध्यापक /शोध अध्येता श्री विजेन्द्र शर्मा जी, श्रीरामेश्वर दयाल शर्मा जी, श्री नीरज त्रिवेदी जी, श्री भोजराज शर्मा जी, श्री अमित तिवारी जी ने निरन्तर परिक्षण/सम्पादन कर इस गुरुत्तर कार्य को श्रीसर्वेश्वर प्रभु की सेवा मानकर किया वह वन्दनीय है। आदरणीय श्री शचीन्द्र नाथ उपाध्यायः जी ने सौरगणित की सेवार्थ इस पञ्चाङ्ग में अपना कार्य मानकर अपना अमूल्य योगदान दिया है।

श्रीसर्वेश्वरजयादित्य पंचांग पञ्चाङ्ग पञ्चांग सूर्यसिद्धान्त केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर
प्रो. अर्कनाथ चौधरी, निदेशक, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर का शॉल ओढाकर एवं श्रीफल भेंट कर सम्मान करते पं. अमित शर्मा, अध्यक्ष, श्रीनिम्बार्क परिषद्, जयपुर

अन्त में यही कहना है कि आधा कार्य तभी हो जाता है जब विधिवत सङ्कल्प हो जाता है अर्थात् धर्म की हानि से खिन्न मन वाले आदरणीय पण्डित श्री अमित शर्मा जी के मन का यह शिवसंकल्प, तन मन धन से की हुई कठोर कार्यसाधना आज श्रीसरसबिहारीजी सरकार की अहैतुकी कृपा से शास्त्रनिष्ठ धर्मप्रेमियों के उल्लासार्थ फलीभूत हो रही है।

समस्त विद्वानों तथा धर्मप्राण महानुभावों के सम्मुख यह “श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग” प्रस्तुत करते हुए निवेदन है कि इस प्रथम प्रयास को अपना आशीर्वाद प्रदान करें। धर्मानुरागी जन धर्मफल की सिद्धि हेतु धर्मशास्त्र अनुमोदित इस पञ्चाङ्ग के अनुसार व्रतपर्वोत्सवों का पालन करें। इस पञ्चाङ्ग में जो कुछ भी श्रेष्ठ है वह सब श्रीसर्वेश्वर प्रभु के कृपाप्रसाद स्वरुप विद्वानों का अवदान है तथा प्रमादवश जो कुछ भी त्रुटि दिखाई दे वह हमारी है जिनका परिमार्जन आप सभी के सहयोग एवं श्रीसर्वेश्वर प्रभु की कृपा से ही सम्भव हो सकेगा। नमन है श्रीसर्वेश्वर जयादित्य भगवान् श्रीकृष्ण एवं श्री जयादित्य भगवान् श्रीसूर्यनारायण के श्रीचरणों में…

विश्वरूप जयादित्य जय विष्णो जयाच्युत।
जय केशव ईशान जय कृष्ण नमोऽस्तु ते।।
– वराहपुराणम्/अध्यायः १६९/ श्लोकः २३
जयादित्य जय स्वामिञ्जय भानो जयामल।
जय वेदपते शश्वत्तारयास्मानहर्पते।।
— स्कन्दपुराणम्/खण्डः १/अध्यायः ५१/श्लोकः ५४

श्री सर्वेश्वर जयादित्य पंचांग पञ्चांग सूर्यसिद्धान्त जयपुर

‘श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पंचांग’ केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में विमोचित

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में पंचांग सम्पादन कार्यशाला आयोजित

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