Sunday, June 8, 2025
यजुर्वेद में एक बहुत सुंदर मन्त्र(१) है, वह कहता है ब्रह्मचर्य आदि व्रतों से ही दीक्षा प्राप्त होती है अर्थात् ब्रह्मविद्या या किसी अन्य विद्या में प्रवेश मिलता है। फिर दीक्षा से दक्षिणा अर्थात् धन समृद्धि आदि प्रतिष्ठा प्राप्त...
मानव जीवन का परम एवं चरम लक्ष्य है अमृत्व की प्राप्ति। पुराण वर्णित देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन से अमृत कलश प्रकट हुआ था| भगवान विष्णु ने स्वयं मोहिनी रूप धारण कर दैवी प्रकृति वाले देवताओं को...
ज्योतिष अपने आप में एक क्लिष्ट विद्या है। उसमें भी मेदिनी ज्योतिष तो बहुत ही कठिन है। कोई बहुत समय लगाकर व्यक्तिगत कुण्डली पर तो महारत हासिल कर सकता है, पर मेदिनी ज्योतिष पर कोई भी पूरी तरह दखल...
लोगों की ओर से एक सामान्य जिज्ञासा ये सामने आई है कि अगर किसी बच्चे का जन्म चाँद पर हो तो उसकी कुंडली कैसे बनाई जायेगी और उसके भविष्य के बारे में कैसे बताया जायेगा? इस प्रश्न का दायरे...
॥ नमः प्रकृत्यै ।। लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’ मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या मार्गदर्शक:-  श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्गम्, जयपुर   शिवदूति महाकालि भैरवि प्रलयेश्वरि । रक्ष रक्ष जगन्मातर्मा मां स्पृशतु कोपतः ॥         वेदादिशास्त्रों में आधिभौतिक आधिदैविक आध्यात्मिक अथवा भौम दिव्य आन्तरिक्ष तापों एवं...
चैत्र अमावस्या, २०७७, 12 अप्रैल, 2021 को केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के डॉ. हिन्दकेसरी सभागार में राजस्थान के एकमात्र सूर्यसिद्धान्त गणना पर आधारित पञ्चाङ्ग श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग का विमोचन विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. अर्कनाथ चौधरी तथा श्रीनिम्बार्क परिषद् के...
लेखक:- पण्डित गङ्गाधर पाठक ‘वेदाद्याचार्य’ (मुख्याचार्य- श्रीरामजन्मभूमिशिलापूजन, अयोध्या) साङ्गोपाङ्गाय वेदाय ज्योतिषां ज्योतिषे नमः । सूर्याय सूर्यसिद्धान्तज्योतिर्विद्भ्यो  नमो नमः ।। व्रतोत्सवादि सम्पादनार्थ एवं यज्ञोपनयनादि धार्मिककृत्यों के लिये सम्यक् कालपरिज्ञानार्थ तिथि-वार-नक्षत्र-योग-करणात्मक विशुद्ध आर्षपञ्चाङ्ग की आवश्यकता होती है। परन्तु विविध भारतीय पञ्चाङ्गों में भी व्रतोपवासादि के...
नम्र निवेदन - श्रीनिम्बार्क परिषद् सादर सूचित किया जा रहा है कि आराध्यदेव ठाकुर श्रीगोविन्ददेवजी एवं ठाकुर श्रीसरसबिहारीजी की असीम अनुकम्पा से प्राचीन गणित श्रीसूर्यसिद्धान्त पर आधारित राजस्थान का एकमात्र पञ्चाङ्ग श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग जयपुर से श्रीनिम्बार्क परिषद् के द्वारा इस...
विक्रमादित्य के नवरत्न वराहमिहिर की पञ्चसिद्वान्तिका−१⁄३१ में सूर्यसिद्धान्त को “सौर” सिद्धान्त की संज्ञा दी गयी तथा पञ्चसिद्वान्तिका−१⁄४२ में इसे “सावित्र” सिद्धान्त कहा गया। अतः वराहमिहिर के अनुसार गायत्री मन्त्र के वैदिक देवता सविता ही सूर्यसिद्धान्त के प्रतिपादक हैं, तथा...
◆संवत् २०७८ है राक्षस संवत्सर◆ ◆लुप्तसंवत्सर में विवाद क्यों ?◆ -- आचार्य श्री विनय झा, त्रिस्कन्ध ज्योतिर्विद्, सूर्यसिद्धान्तीय गणितज्ञ संरक्षक, अखिल भारतीय विद्वत्परिषद, वाराणसी गणितज्ञ, आदित्य पञ्चाङ्ग (काशी), श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग (जयपुर) आदि आदित्य पञ्चाङ्ग के सम्पादक डा⋅ पारसनाथ ओझा तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के...
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